Sunday, April 25, 2021

किसी के बरसों की क़ैद का तासीर हूँ मैं
अंधेरी ताख पर रखा हुआ जंजीर हूंँ मैं 

किसी और की खातिर मुझे गंवा न देना
तुम्हारी  भूली  बिसरी हुई जागीर हूंँ मै

मिल कर शायद फिर मुकम्मल हो जायें
तुम  हमारी और तुम्हारी तक़दीर हूँ मैं

सुना है कि दर्द बहुत ही अजीज है तुम्हें 
गले लगा लो मुझे दर्द की तस्वीर हूं मैं

©इंदर भोले नाथ

बागी बलिया, उत्तर प्रदेश 

ग़ज़ल

हो कर तुम से जो जुदा चला हूँ
महफ़िल महफ़िल रुस्वा हुआ हूँ

सब अपनी धुन मे बेखबर हुए हैं
है किसे खबर मैं कहाँ चला हूँ

हो तुम्हे मुबारक जहाँ तुम्हारा
मैं किसी शहर में लापता हुआ हूँ

हमसे अब न पूछो हाल ए ज़िंदगी तुम
कहाँ  का था  और  कहाँ  हुआ हूँ

© इंदर भोले नाथ
 बागी बलिया, उत्तर प्रदेश

#6387948060 

जलने दे चिराग ए दिल तुं सुनता क्यूँ नहीं
ऐ सितमगर बरसात तुं थमता क्यूँ नहीं

खुदा ए खल्क़ का वासिंदा फकत मैं ही तो नहीं
यहाँ और भी हैं मुझ सा उनपे बरसता क्यूँ नहीं

© इंदर भोले नाथ 

आज फिर सोते वक़्त तेरा नाम लेना है
मुझे हिज्र की रातों का इम्तिहान लेना है

इक ख़्वाब जो आखों मे सजाये बैठे हैं
वो निशानी जो किताबों मे छुपाये बैठै हैं
तेरी तसवीर फिर हाथों में थाम लेना है
मुझे हिज्र की रातों का इम्तिहान लेना है

वो खत जिन्हे इस क़दर महफूज़ रखा है
कोई देखे तो कहे क्या खूब रखा है
वो हर लफ्ज़ पढ़के सब्र से काम लेना है
मुझे हिज्र की रातों का इम्तिहान लेना है

Continue....... 

©इंदर भोले नाथ 

गज़ल

वो शख्स नजरें चुराने का हुनर जानता है 
मिल कर भूल जाने का हुनर जानता है 

उसकी बातों पर क्यों न यकीं करे कोई
वो कई किरदार निभाने का हुनर जानता है

हम बे-गुनाह होकर भी गुनेहगार हो गयें
वो झूठ को सच बनाने का हुनर जानता है

दौलत और शोहरत की ख्वाहिश भी है उसे 
वो फकीरी भी दिखाने का हुनर जानता है

किसी को भी न रास आई मेरी दास्ताँ "इंदर"
वो मुझसे बेहतर सुनाने का हुनर जानता है

© इंदर भोले नाथ 

बहुत रोना है आया ज़िंदगी के लिए
जिसे अपना न समझा किसी के लिए

दिल्लगी को फकत दिल्लगी जिसने जाना
ख़ुद को ज़ाया किया है उसी के लिए

© इंदर भोले नाथ

 

तुं आ भी जाये गर हम आ नहीं सकतें
तेरे जाने का और मातम मना नहीं सकतें

क्यूँ यादें रखें तुम्हारी निशानी के वास्ते 
तुने दिया ही क्या जिसे हम भुला नहीं सकतें

कर ले बदनाम मुझे तेरे शहर की गलियों में
लेकिन वादा रहा तुम मुझे झुका नहीं सकते

© इंदर भोले नाथ

 

उस की बेवफ़ाई को कोई भुलायें भी तो कैसे
दिल फिर उस पे भरोसा कर पाए भी तो कैसे 

जहां लोग भी उसी के और हुकूमत भी उसी की 
भला उस जगह कोई बेगुनाही जताए भी तो कैसे

© इंदर भोले नाथ

बागी बलिया, उत्तर प्रदेश 

जलने दे चिराग ए दिल तुं सुनता क्यूँ नहीं
ऐ सितमगर बरसात तुं थमता क्यूँ नहीं

खुदा ए खल्क़ का वासिंदा फकत मैं ही तो नहीं
यहाँ और भी हैं मुझ सा उनपे बरसता क्यूँ नहीं

© इंदर भोले नाथ 

क़ैद-ए-कफस से हुआ आज़ाद, मगर
रूह-ए-एहसास से वो जंजीर नहीं गई

अश्कों की दिन रात बरसात हुई मगर
आँखों में बसी तेरी तस्वीर नहीं गई

©इंदर भोले नाथ

 

चल रही है शाम ए बज़्म,कोई मेरा भी मिले
गुजर रही सब ए हयात का सबेरा भी मिले

वो दर के जहाँ बैठ के दिल को सुकूँ मिले
ऐ खुदा घडी दो घडी वो बसेरा भी मिले
© इंदर भोले नाथ

हम बे-नसीबों को यूँ सहारे भी आ लगते हैं
कभी किनारे भँवर के मारे भी आ लगते हैं

ये जोश-ए-जुनूँ यूँ ही बस बरकरार तो रहे
सुना है मंज़िल पे सफर के हारे भी आ लगते हैं

न झुकेंगे कभी तुम्हारी ज़िद्द के आगे, कि
हमारे हौसलों मे ज़िद्द हमारे भी आ लगते हैं

दिल जलता है तो होती है शाम ए बज़्म रौशन
उन्हें लगता है उनके आने से उजाले भी आ लगते हैं

जी उठते हैं दीवाने कब्र से भी मुमकिन है
गर बारिस ए इश्क़ के उन्हे फुहारे भी आ लगते हैं

मुसलसल सफर का इंदर नतीजा भी यही आया है
के बह चुकें हैं बहुत अब किनारे भी आ लगते हैं

©® इंदर भोले नाथ
न मिलने की ख्वाहिश न दीदार ए आरज़ू आती है
कि उसके जिस्म से अब बेवफ़ाई की बू आती है

कहाँ ख्वाहिस ए फ़िरदौस थी जहन्नुम बसाये बैठे हैं
कुछ इस क़दर नफरत को दिल से लगाये बैठे हैं

वो बे-वफ़ा हो कर भी वफ़ा की शेर कहता है,हाँ
इक शख़्स ऐसा भी है जो जामुन को बेर कहता है

आज सहमा हुआ सा है वो भी मिट्टी के उड़ानों से
जो कभी चिढ़ जाता था पैरों पे धूल के आ जाने से

बेहद हुआ तो तीर है गर हद मे रहे तो कवच भी है
कड़वा है मगर सच भी है खतरा प्यार टू मच भी है

©® इंदर भोले नाथ
आप का नाम भी बहुत हुजूर हो रहा है
मुहल्ले से निकल के अब दूर दूर हो रहा है

गज़ब का दर्द है उसकी अल्फाज़ मे इंदर
इक शायर शहर मे बहुत मसहूर हो रहा है

ना पाबंदी लगाओ यारों उसे उड़ान भरने दो
जो परिंदा छुट के क़फ़स से दूर हो रहा है

वो खुश है तो फिर क्यों गुमनाम हो चला है
कोई दर्द बेच कर भी मसहूर हो रहा है

©® इंदर भोले नाथ
कितनी उदास होती है  ये रात  सुबह आने तक
हमने महसूस किया ये हालात  सुबह आने तक

इतना  उदास के  हर पहर सिहर के गुजरता है
दफ़न हो जाते हैं कई जज़्बात सुबह आने तक

हिज़्रे आलम यूँ के सफ पे लाश सा बिछ जाते हैं
छोड़ जाते हैं  दर्द   निशानात्   सुबह आने तक

है शज़र भी खामोश परिंदे भी चुप चाप से हैं
कइयों को तोड़ जाती है ये रात सुबह आने तक

©® इंदर भोले नाथ

घोंसला छुट जाने पर.....

यहाँ हुस्न है बंदिशों मे घिरा,वहाँ,इश्क़ भी मजबूर है
किसी को आशियाँ नसीब नहीं,कोई हुआ घर से दूर है

ऐसा कोई मौसम नहीं जब आँख, सर्द  नहीं होता
लोग  झूठ कहते हैं  के  मर्द को  दर्द   नहीं होता

दिल फफक पड़ता है अक्सर ये,हौसला टूट जाने पर
के लड़के भी रोया करते हैं, घोंसला  छुट जाने पर

उसकी वाह की कीमत लगी लाखों हज़ार में
हमारी आह सिसकियां भरती रही बाज़ार में

© इंदर भोले नाथ
कितनी उदास होती है ये रात सुबह आने तक
हमने महसूस किया ये हालात सुबह आने तक

इतना उदास के हर पहर सिहर के गुजरता है
दफ़न हो जाते हैं कई जज़्बात सुबह आने तक

हिज़्रे आलम यूँ के सफ पे लाश सा बिछ जाते हैं
छोड़ जाते हैं दर्द निशानात् सुबह आने तक

है शज़र भी खामोश परिंदे भी चुप चाप से हैं
कइयों को तोड़ जाती है ये रात सुबह आने तक

©® इंदर भोले नाथ
शाम ए रौशन हुई अज़ाब ढूंढते हैं
हम दीवाने नशे के, शराब ढूंढते हैं

उन्हें इल्म है खामोश हवाओं में जलना
हम अक्सर आँधियों मे चिराग़ ढूंढते हैं

सरेराह हो चुके हैं आशियाँ से निकल के
पर्दे वाले लोग अक्सर नक़ाब ढूंढते हैं

© इंदर भोले नाथ

अभागा कर्ण.........


सूत पुत संबोधित कर मुझे तिल तिल कर मारा गया 
मैं वो अभागा कर्ण हूँ जिसे हर बार दुतकारा गया -2

शौर्य अगर परखा जाता फिर कहाँ पार्थ सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर होता
भरी सभा मे विद्वानों द्वारा न मैं दुत्कार का पात्र अगर होता

मिला होता अवसर यदि हमको नष्ट पार्थ का गुरुर कर देता
सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर होने का भरम मैं पल भर मे चूर कर देता

पांडवों पर ही दिनमान रहे क्यों मेरे लिये तुम हुए भगवान नहीं
क्यों मौन रहे मेरे अपमान पे बोलो हे मुरलीधर क्या मैं इंसान नहीं

साथ न देता दुर्योधन का मैं,कभी,महाभारत नहीं करता,अगर
भरी सभा मे सखा मान सर पे अंगराज का मुकुट नहीं धरता

हर बार नीच अधम कहकर शब्दों का बाण हृदय मे उतारा गया
हाँ मैं वो अभागा कर्ण हूँ जिसे हर बार दुतकारा गया -2

सोचो कितना अछुत था मैं जो माँ ने भी मुझको त्याग दिया
ममता की देवी भी निष्ठुर बन मुझे सूत पुत का दाग दिया  

इतनी नफ़रत इतना घृणा बोलो क्यूँ मुझको ही सरकार मिला
तुम्हे भी तो माँ यशोदा ने पाला फिर तुम्हे क्यूँ नहीं दुत्कार मिला

एक पुत्र के लिए दूजे पुत्र का प्राण मांगती है क्या
बोलो हे कन्हैया कोई माँ ये हद्द भी लाँघती है क्या

एक सखा दुर्योधन को छोड़ सभी ने मुझ से छल किया
कवच और कुंडल माँगकर था इंद्र ने मुझको निर्बल किया

पग-पग पर अभिशाप मिला किस्मत से भी मात मिला
सुर्यदेव भी पड़े पार्थ मोह मे,पिता का भी नहीं साथ मिला

बस अपनों के ही हाथों सदैव सर्वस्व उजाड़ा गया, हाँ
मैं वो अभागा कर्ण हूँ जिसे हर बार दुतकारा गया -2
 
नारी को दाव पे रख कर तनिक भी नहीं संताप किया
हमने मित्रता का लाज रखा  तो  कौन सा पाप किया

जुए मे हार गया पत्नी को वो मर्द भी तो लोभी था
फिर बोलो हे मुरलीधर क्या केवल दुर्योधन ही दोषी था

छल से पितामह को मारा शिखण्डी को रण मे खड़ा करके
जयद्रथ को भी तुमने भर्माया सूर्य को मेघ मे छिपा करके

बोलो तुम्हारी छलता का मैं और कितने प्रमाण गिनाउँ
रण मे मुझे विवश किया घटोत्कच पे अमोघ बान चालउँ
 
था जीत ने भी मातम किया जब मैं छल से हारा गया
हाँ मैं वो अभागा कर्ण हूँ जिसे हर बार दुतकारा गया -2

© इंदर भोले नाथ
बागी बलिया,उत्तर प्रदेश
#6387948060
धन्यवाद