Friday, January 15, 2016

बड़ी ही पाकीज़ा और इमान थी
चाहतें मेरी....
देखी जो तेरी शोख निगाहें,हसरतें
बेइमान हो गई...

.......................इंदर (IBN)


कुछ यूँ जिया मैं उससे,जुदा होके…
जैसे बिखरा कोई कस्ती,तुफां मे फन्ना होके..!
जुड़ा रिस्ता कुछ इस कदर,उसकी यादों से अब…
जैसे ज़िंदगी बसी है,सांसो मे,रवाँ होके…!!
Acct- इंदर भोले नाथ…

अजीब है ये मोहब्बत,
मुकम्मल हो तो कोई ज़िक्र नहीं...
गर अधूरी रह जाए,
दास्ताँ बन जाती है...

                   ..............इंदर (IBN)