Monday, May 17, 2021

गिरते  संभलते  कदमों  के  थकान कह रहे हैं
घर घर नहीं रहा,लौट जाओ, मकान कह रहे हैं

कोई पहले भी गुजरा है यहाँ से मुझ-सा बे-घर हुआ
ये   रास्ते  मे  पड़े हुए सामान  कह  रहे हैं

दीवाली मे तेल ब्यर्थ,होली मे गुलाल है ब्यर्थ होता
ऐसा  नये  जमाने के  नये  इंसान कह रहे हैं

कभी, दो रोटी भी न दी किसी ग़रीब को, लेकिन 
वो  लोग भी खुद को अब  भगवान कह रहे हैं

एक उँची जाति की अस्थियाँ एक शूद्र से जा मिली
ये  आँखों  देखा  हाल  श्मशान  कह  रहे हैं 

वो दुआ है रोज करतें कोई अर्थी उस गली से न गुज़रे
ये  बात कफ़न बेचने  वाले  दुकान कह रहे हैं 

- इंदर भोले नाथ 

Friday, May 14, 2021

मरुस्थल हो गया है

सोंख जाता है समंदर ये, बहुत प्रबल हो गया है  
खो कर जहाँ  सारा  पागल मुकम्मल हो गया है

न आँधियों का डर रहा न अब बाढ़ से घबराता है
लगता है  दिल तुम्हारे बाद मरुस्थल  हो गया है

- इंदर भोले नाथ
बागी बलिया,उत्तर प्रदेश
# 6387948060
धन्यवाद

इसे मौत दे दी जाय

दिल इश्क़ का गुनहगार है  इसे मौत दे  दी जाय
कम्बख़त इसी का  हक़दार है इसे मौत दे दी जाय

यूँ  भी  मर मर के जी रहा है,ज़िंदा  कहाँ है ये
इस क़दर जीना भी बेकार है इसे मौत दे दी जाय 

बहुत गुज़ारिश करेगा तुम से हज़ारों मिन्नते करेगा
मगर  सुनती कहाँ सरकार है इसे मौत दे दी जाय

गर्दिश मे कश्ती आ फँसी है और मुस्करा रहा है वो
ऐसे प्यार पे  धिक्कार है  इसे  मौत दे  दी जाय 

अब अगर बख़्श दोगे "इंदर"तो बग़ावत ही करेगा ये
इसके  सर पे खून सवार है, इसे  मौत दे दी जाय

- इंदर भोले नाथ

तेरी  गली मे आउँ और रुसवा हो जाउँ    
इससे  बेहतर  है कि  मै  मर ही जाउँ