Wednesday, April 13, 2016

बरसों से

बरसों से इक अजीब सा रिश्ता
बन गया है इन दीवारों से
कभी-कभी समझ नहीं पाता
ये आँखें रात का इंतेजार सोने या
इन दीवारों से रु-ब-रु होने के लिये
करती हैं….
…इंदर भोले नाथ…
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