Monday, April 27, 2020

कविता

हम चलते ही रहें बे-हिस हुए
फिर दिल में ना ख्वाहिश हुए

कभी रातों के साये में ढलें
कभी तपती धूप मे हैं जलें

सावन में जलें तपन में हैं गलें
हम हर मौसम चलते ही चलें

बेहिसाब चलें लाजवाब चलें
पन्ने से बन कर किताब चलें

टुटें फिर भी जा़हिर न हुआ
दबाये दिल में हैं अज़ाब चलें

गलियों में चलें शहरों में चलें
फूलों पे चलें पत्थरों पे चलें

आंखों में नमी की न कमी रही
दिल में भी उदासी थमी रही

हम बेबस हो लाचार चलें
हम यार चलें बेशुमार चलें

हम चलते ही रहें चलते ही रहें
रस्ते युं ही कटते ही रहें

©इंदर भोले नाथ

Friday, April 24, 2020

बागवानी

                      "बागवानी"

जो  विष फैली है हवाओं में वो, रग रग में बस जानी है
कुछ  इस  क़दर अशुद्ध हुएं हैं, कण कण और पानी है

इक वक़्त ऐसा आयेगा, श्वास लेना भी दूभर हो जायेगा
कटती गिरती हरियाली की हर आह कि सुनी कहानी है

जो  विष फैली है हवाओं में................................

ऊँची  इमारतों की  भूख  में, तुम इस क़दर हो चूर हुए
जो  ज़िंदगी है हम सब की, उसे काटने को मजबूर हुए

गुरुर ओ दम्भ तुम्हारी चूर करेगी, मन में उसने ठानी है
बस बाग नहीं,ये ज़िंदगी है,ये जो उजड़ रही बागवानी है

जो  विष फैली है हवाओं में, वो रग रग में बस जानी है
कुछ  इस  क़दर अशुद्ध हुएं हैं, कण कण और पानी है

©इंदर भोले नाथ














Monday, April 20, 2020

ग़ज़ल

चंद सांस लिये इक आस लिये
कुछ यादें   अपने   पास लिये

गम ए इश्क़  का सौगात लिये
इन आंखों में  कई   रात लिये

कुछ अनकहे    जज्बात लिये
गर्दिश  वाली    हालात  लिये

तेरे  शहर  से  अब गुजरते हैं
हम अश्कों की बरसात  लिये

... इंदर भोले नाथ

शेर ओ शायरी

तेरी हर इक बात मुझसे मेरी औक़ात पूछती है
मेरी तआरुफ़  के वासते  मेरी  जाति पूछती है

तुम  मिजाज़  रखते हो  शायद ऊंचे घराने का
मुफ़लिसी कहां  किसी से   औक़ात  पूछती है

...इंदर भोले नाथ

ग़ज़ल

क्या तड़प दिखाउं मैं तुम्हे
तन्हा   स्याह    रातों  का

यूँ  बेवज़ह हर घड़ी आना
मुसलसल  तेरी  यादों का

इक  वादा  रोज करते हैं
ये  सिलसिला मिटाने को

पर अक्सर  टुट  जाते  हैं  
ये वादे हैं महज़ बातों का

#इंदरभोलेनाथ
@InderBhole

ग़ज़ल

चरागों से कह दो ना बुझे इक आस बाकी है
धड़कनें भी हैं चल रही, अभी सांस बाकी है

कब से दबे हैं दिल में अल्फाजों का काफिला
कई  अनकहे  से वो  अभीं जज्बात  बाकी है

ये  तय  हुआ था कि,  आखिरी दीदार करेंगे
जरा ठहर जाओ अभीं,वो मुलाकात बाकी है

#इंदरभोलेनाथ
@InderBhole

#Corona@lockdown

वो  जिस्म है या कोई साया है, जो
चुपके से हर सय में उतर आया है

बदला हुआ है शहर का मिजाज़,वो
बनके  खौफ़ हर दिल में समाया है

मेहमान बन के शहर  में आया था
क्युं  बैठ गया  वो  हक जमाया है

बे दखल  कर के कोई भगाये इसे
इसने  दिल  को बहोत दुखाया है

#corona#lockdown
#इंदरभोलेनाथ