Thursday, January 30, 2020

शायरी

पहले जैसा अब गुफ्तगु नहीं होता
कभी मैं नहीं तो कभी तुं नहीं होता
मिलते फिर कभी उसी ठिकाने पे
बारहा "इंदर" ऐसा क्यूं नहीं होता

शायरी

कइ दर्द.......बेशुमार लिखा है
बरसों का.....इंतेज़ार लिखा है
जिसके ज़ुबाँ पे मेरा ज़िक्र तक नहीं
हमने उस पे अखबार लिखा है

ग़ज़ल

चलो फिर से दिल लगाते हैं कहीं
फिर मोहब्बत आजमाते हैं कहीं

जिस्म तो कहीं और हार चुके हैं
सांसो को दांव पे लगाते हैं कहीं

ज़िंदगी का क्या है ये चलती रहेगी
फिर इसका साथ निभाते हैं कहीं

इक बेवफ़ा के नाम आधी गुजरी है
आधी ज़िंदगी फिर गवाते हैं कहीं

           

                 ......इंदर भोले नाथ