Thursday, October 31, 2019

तुम्ही पे दिल है बेहद मरता
फिर तुम्ही से है नाराजगी क्यों !
इक तुम्हारे बाद कोई जचा ही नहीं
फिर बे-वजह ये आवारगी क्यों !!

....... इंदर भोले नाथ

Saturday, August 3, 2019

वो जून कि गर्मी, वो पीपल का साया

वो जून कि गर्मी, वो पीपल का साया
वो यारों की टोली, वो रिश्तों का माया
वो मिट्टी का घरौंदा, वो खपरैलों का छत
लिए सोंधी सी खुश्बू, वो काग़ज़ का ख़त 

वो ममता की लोरी, वो ख्वाबों की चोरी
वो सांझ की बेला, वो चंदा चकोरी
कोई मुझसे पूछे,  क्या मैने है खोया 
इक मासूम बच्चा, वो बचपन गँवाया,,

कहाँ मिलता वो गुजरा पल,ये मुझको बता दो तुम
मैं सब कुछ रख दूं गिरवी, वो वक़्त दिला दो तुम
बहुत रोएँ जवां होके,तन्हाई मे छुप-छुप के,फिर
जियें खुलके हर इक लम्हा,बचपन से मिला दो तुम

अहम की ज़िद मे हमने ब्यर्थ जीवन गँवाया है
हमें अपनों ने खोया है,हमने अपनों को भुलाया है
किमत अमुल्य होती है, इक मुस्कान का, लेकिन
ये न उनको समझ आई, न हमने समझ पाया है

ज़िम्मेदारियों के भंवर मे खुद को फसा रखा है
कई दर्द सिने मे हमने, अपने  छुपा रखा है
जो कभी देखा था मैने, फ़ुर्सत के आलम मे
वो ख्वाब आँखों मे हमने अब तक बसा रखा है

वफ़ा की चाह मे कभी, गुजर गया सभी हद से
बहुत लाचार होता हूँ, अब जो मिलता हूँ,मैं खुद से
मिले हैं दर्द बेशुमार, वफ़ा की राह  लेकिन
कोई  शिकायत नहीं मेरी है, ऐ-ज़िंदगी तुम से

खुद ही फँसे भंवर मे, तुम्हे हम क्या पनाह देंगे
साहिल पे आ लगें जब, तुम्हारे काम आ सकेंगे
थोड़ा इंतेज़ार कर लो, गर मुझ पे ऐतवार हो
साथ चल ना सकें तो, तुम्हे मंज़िल दिखा देंगे

अब इल्तिज़ा यही है, के कोई इक़्तिज़ा न हो
इंतेज़ार-ए-यार का फिर,कोई सिलसिला न हो
गुजर रहे हैं सम्भल के,रह-ए-उल्फ़त की गली से अब
इश्क़ के सफ़र में फिर तुम-सा कोई बेवफा न हो

लफ्ज़ उर्दू हैं मेरे लेकिन, रगों मे हिन्दी समाई है,
हूँ वंशज राम का लेकिन, रहीम मेरा ही भाई है,
रंग एक सा दिखा है, सभी के, लहू का लेकिन
कोई कहता मैं सिख हूँ कोई कहता  ईसाई है...

सदाये उनकी भी आती है,जो दुनिया से चले जाते हैं,
कभी यादों के ज़रिये, तो कभी ख्वाबों के ज़रिये,
कभी जो लड़खड़ाएँ हम,वो हौसला बढ़ाते हैं
कभी यादों के ज़रिये, तो कभी ख्वाबों के ज़रिये,

ना तुम रहे हम मे, ना अपने आप सा हम हैं
ये आखरी मुलाकात का गम है,तन्हा रात का गम है
रो लेते हैं जी भर के बारिश मे आज कल
ये बरसात का मौसम है किसी की याद का मौसम है

ढोंग रिवाजों का फैला,झूठी रस्मों का बोलबाला है
झूठ के माथे चंदन है, हुआ सच का मुँह काला है
करोड़ों का घोटाला कर भी,ग़रीबों का छीना नीवाला है
माथे पे चंदन घिस घिस के, चोर बना रखवाला है

लुटेरे हो तुम पीढ़ी दर, तुम्हे बस लूटना ही आता है
मनाना तुम कहाँ सीखे, तुम्हे बस रूठना ही आता है
अहंकार की दंभ मे तुम, चूर-चूर हो लेकिन
सत्ते की लालच मे तुम्हे झुकना भी आता है..

Thursday, August 1, 2019

कभी ख्वाबों के ज़रिये....

सदाये उनकी भी आती है,जो दुनिया से चले जाते हैं,
कभी यादों के ज़रिये, तो कभी ख्वाबों के ज़रिये....



......इंदर भोले नाथ

Monday, July 8, 2019

ग़ज़ल (इश्क़ में रुलाया गया हूँ मैं...

फन्ना हुई कस्ती मेरी,मेरे आसूओं मे डूबकर,
कुछ इस क़दर इश्क़ में रुलाया गया हूँ मैं...

उड़ने लगा हूँ आज-कल फिजाओं मे राख-सा,
कुछ इस क़दर गम-ए-इश्क़ में जलाया गया हूँ मैं...

कब रहा है शौक़ मुझे,मयकदे और ज़ाम का,
मैं पीता नहीं हूँ "इंदर", पिलाया गया हूँ मैं...

न मैं रहा दिल में तेरे न मेरे यादों का साया है,
कुछ इस क़दर ज़ेहन से तेरे भुलाया गया हूँ मैं

मैं तोड़ चला था रिश्ता कब का गमों के बज़्म से, 
आज फ़रमाइश पे दिलजलों के बुलाया गया हूँ मैं..... 



.......इंदर भोले नाथ 


शायरी (नींद हमें मयस्सर तो हो..

कहाँ मिलते हैं तुमसे रोजाना,मिलके कुछ असर तो हो,
ख्वाबों मे दीदार कर लेते लेकिन,नींद हमें मयस्सर तो हो...

शायरी (इश्क़ में रुलाया गया हूँ मैं...

फन्ना हुई कस्ती मेरी,मेरे आसूओं मे डूबकर,
कुछ इस क़दर इश्क़ में रुलाया गया हूँ मैं...


https://merealfaazinder.blogspot.com/2019/07/blog-post_73.html

Wednesday, July 3, 2019

"गुलज़ार गली" भाग-१

"गुलज़ार गलीभाग- 


"तुम्हे जाना तो खुद पे हमें तरस आ गया,
तमाम उम्र यूँही हम खुद को कोसते रहें"............



"गुलज़ार गली" यही नाम था उस गली का....

मैने कभी देखा नहीं था बस सुना था, हर किसी के ज़ुबान पे बस उसी गली का चर्चा रहता "गुलज़ार गली" |

तकरीबन डेढ़ महीना हुआ होगा मुझे यहाँ आए हुए, इस डेढ़ महीने मे ऐसा कोई भी दिन नहीं था, जिस दिन मैने उस गली का ज़िक्र न सुना हो | किसी न किसी के ज़ुबान से  पूरे दिन मे 2 या 3 बार तो सुन ही लेता था उस गली का नाम "गुलज़ार गली" |

आख़िर क्या है उस गली मे आख़िर क्यों इतनी मसहूर है वो गली जो हर कोई उस गली का चर्चा करता रहता है |
मैने कभी किसी से पूछा नहीं,सोचा खुद ही किसी दिन जाकर देख लेंगे आख़िर क्या है उस गली में और क्यों इतनी मसहूर है वो गली |

दोस्तों ये कहानी उस गली की है जो हर रोज, शाम होते ही किसी नई नवेली दुल्हन की तरह सज जाया करती थी|
वो गली जो किसी जन्नत से कम न थी,वो गली जो निगाह को किसी एक जगह ठहरने न देती थी,वो गली जो पलकों को झपकने न देती थी,वो गली जिसे देख दिल धड़कने लगता था,वो गली जिसने लाखों अफ़साने बनाए हुए थें,वो गली जिसने कई दर्द छुपाए हुए थे | वो गली जिसके हर धड़कन से बस यही सदा आती थी........

"कई आह बेचते हैं,हम हो लाचार बेचते हैं,
वो ज़िस्म खरीदते हैं,मगर हम प्यार बेचते हैं"...

क़हानी सुनाने की धुन मे दोस्तों मैं आप सब को अपना परिचय बताना भूल गया | मेरा नाम सुशील मिश्रा है मैं उत्तर प्रदेश का रहने वाला हूँ | मैने हिन्दी से स्नातक किया हुआ है आगे भी पढ़ना चाहता था,मगर पिताजी की हुई अचानक निधन के कारण पूरे घर परिवार की ज़िम्मेदारी मेरे उपर आ गई | क्यों कि भाइयों मे सबसे बड़ा मैं ही था | दो भाई और एक बहन की ज़िम्मेदारी मेरे उपर ही आ गई इसलिए मैं आगे नहीं पढ़ पाया,और नौकरी की तलाश मे यहाँ (******) मे अपने एक रिश्तेदार जो रिश्ते में मेरे भैया लगते थे उन्ही के  पास आ गया | उन्ही की मदद से मुझे यहाँ (******) मे एक प्राइवेट फर्म मे काम मिल गया सुपरवाइजरी का |


क्रमश:......







Tuesday, June 25, 2019

शायरी (ज़िंदगी खास नहीं लगती...

हर किसी को आवारगी रास नहीं लगती,
पर हमें बिन आवारगी ज़िंदगी खास नहीं लगती...


शायरी (लेकिन उसे असर ही नहीं...

किस क़दर हैं खाक हुएं इश्क़ में,उसे खबर ही नहीं,
मेरे हस्सर पे जहाँ रोया है,लेकिन उसे असर ही नहीं...





Saturday, May 4, 2019

शायरी (वो तासीर कहाँ...

वो "मीर" सा अब पीर कहाँ 
वो "ग़ालिब" सा नादिर कहाँ
बयां जो दर्द है उन अल्फाजों में 
अब के "हर्फ़" में वो तासीर कहाँ... 

नादिर=दुर्लभ, अमूल्य, अनूठा

शायरी ("ग़ालिब" दिखता है...

इस क़दर इश्क़ में अब दर्द बिकता है,
हर शख्स मे अब "ग़ालिब" दिखता है...

शायरी (इश्क़ है या अवारी है....

ये जो छाई चंद दिनों से खुमारी है 
ऐ-दिल बता इश्क़ है या अवारी है....

शायरी (मैं कैसे तुझे पाऊं...

रु-ब-रु रहूँ या खुद से गुमशुदा हो जाऊं
ऐ - ज़िंदगी बता तूं, मैं कैसे तुझे पाऊं...

Friday, May 3, 2019

शायरी (के हमने ईद मना डाला.....

तेरे दीदार ने हमें युं
तेरा मुरीद बना डाला,
दिल ए चिराग़ हुए रोशन युं
के हमने ईद मना डाला.....

....  इंदर भोले नाथ

Saturday, April 27, 2019

शायरी (ये इनादत की है...

खामोशियों ने अब बगावत की है,
करें गुफ्तगू तुमसे ये इनादत की है... 

शायरी (उस अजनबी के खयालों में....

वक्त गुजरे दिन में,
दिन गुज़र गयें सालों में,
दिल आज भी खोया हुआ है,
उस अजनबी के खयालों में....

शायरी (अब मैं "खास" लिखता हूँ....

बड़ी तस्सली से आज कल "अहसास" लिखता हूँ,
इक तेरे वास्ते ही अब मैं "खास" लिखता हूँ....

खुश्बू बयां करते हैं....

आजकल रुख हवाओं का कुछ यूं बहा करते हैं, 
मेरे कुचे से गुजर के "तेरी" खुश्बू बयां करते हैं....

शायरी (हर रोज बिखर जाता हूं...

मेरी तडप का अहसास
तुझे नहीं है ऐ-जिंदगी,
मैं टुट के हर रोज बिखर जाता हूं...

शायरी (वो शख्स याद आ जाता है...

हमें मोहब्बत तेरे नाम से है,
तेरा नाम जब भी लेते हैं,
वो शख्स याद आ जाता है...

शायरी (अपनी असर चाहता है...

वो शख्स जो तुम्हें इस क़दर चाहता है
तुम्हारे दिल में थोड़ी बसर चाहता है,
जो दुनिया भुला बैठा हो "तेरे वास्ते"
तेरे खयालों में अपनी असर चाहता है...

...इंंदर भोले नाथ

Thursday, April 4, 2019

गज़ल (ज़िंदगी ला-जवाब लिखा है...

गज़ल

तेरे कूचे से गुजर के हमने,
ज़िंदगी ला-जवाब लिखा है...

हर इक पल गुजारा सदियों में,
ज़िंदगी  बे-हिसाब लिखा है....

दिल में है लाखों हसरतें तो,
आंखों में कई खाब लिखा है...

ऐ जिंदगी आज कल हमने,
तेरा नाम मा-हताब लिखा है...


Wednesday, April 3, 2019

गज़ल (.प्यार की किमत क्या होगी

जिंदगी लुटा दी हमने तुम पर
और....प्यार की किमत क्या होगी

फना हुए चाहत में तेरी
और.....यार की किमत क्या होगी

बरसें पतझड़ में बादल बनके
और...बहार की किमत क्या होगी

है बसर अब भी तेरी यादों में
और...एतबार की किमत क्या होगी

उम्र गुजरी इक आस में
और...इंतजार की किमत क्या होगी

जिंदगी लुटा दी हमने उस पर
और......प्यार की किमत क्या होगी

Monday, March 25, 2019

शायरी (इश्क़ में दिखायेंगे उन्हें

ऐ कारवां निशां बना दे तू ,कदमों के मेरे,
किस कदर भटके हैं इश्क़ में दिखायेंगे उन्हें

शायरी (ऐ जिंदगी कभी मील....

ऐ जिंदगी कभी मील,फिर उस बचपन की तरह,
गहरी रंजिशों में डूब गयी है जवानी आज कल....

शायरी (दास्ताँ सफर में गुजर गई....

कभी जीस्म से निकल गई कभी रूह तक उतर गई,
आधी जिन्दगी की दास्ताँ सफर में गुजर गई....

शायरी (मंजिल कि इसे खबर ही नहीं.....

इक अजीब सा मुसाफ़िर है दिल, सफर पे तो निकल पडा़
पर इसे जाना कहाँ है, मंजिल कि इसे खबर ही नहीं.....

शायरी (इंसानी खयालात हो गई है....

कुछ इस कदर इंसानों कि हालात हो गई है,
जानवरों से बद्तर,इंसानी खयालात हो गई है

गज़ल (वो गुरुर सी लगी मुझे...

गज़ल

इक हूर सी लगी मुझे,वो नूर सी लगी मुझे,
थी सादगी निगाह में,वो गुरुर सी लगी मुझे...

जो सादगी चेहरे पे थी,वो दिल में थी रमी हुई,
मदहोश हुआ मैं इस कदर,वो सुरूर सी लगी मुझे...

सफर युंही चलता रहा,नज़र में वो ढ़लता रहा,
मैं गुम सा हुआ कहीं, वो मसहूर सी लगी मुझे

इक अजनबी कि दास्ताँ,इक अजनबी सुना रहा,
थी पास मेरे फिर भी मगर,वो दुर सी लगी मुझे...

था कायल उसकी दिदार का,उसको भी खबर थी ये,
रहे इश्क़ से बे-खबर मेरे,वो मजबूर सी लगी मुझे

......इंदर भोले नाथ

Thursday, February 28, 2019

कविता

जीवन पथ में अगन बहुत है


जीवन पथ में अगन बहुत है
हर कदम पे तुम्हे जलना होगा

पैर लहूलुहान हो कांटो से फिर भी
जोश-ए-जुनूं से तुम्हे चलना होगा

राहों में मुश्किलें आएंगी बहुत
गिर के तुम्हे संभलना होगा

जीवन पथ में अगन बहुत है
हर कदम पे तुम्हे जलना होगा

इक छोटी सी अभीं चिंगारी है तूं
शोलों में तुम्हे ढलना होगा

हैं अधूरी जो किस्मत की रेखाएं
वो लकीरें तुम्हे बदलना होगा

जीवन पथ में अगन बहुत है
हर कदम पे तुम्हे जलना होगा

Saturday, February 23, 2019

कसुर किसका ?

भाई साहब 9:00 बजे वाली पैसेंजर चली गई या अभी है ,मैंने अपने पास ही खड़े एक सज््जन से पूछा I उन्होंने कहा नहीं भाई साहब अभी नहीं गई है बस कुछ ही देर में आने वाली है I थोड़ी देर बाद ट्रेन आ गई,डब्बा खाली था पैसेंजर ज्यादा नहीं थे इसलिए हमें बैठने को सीट मिल गई I जिस सीट पर मैं बैठा हुआ था ठीक उसके सामने वाली सीट पर एक बुजुर्ग बैठे हुए थे,जिनकी उम्र तकरीबन 55 साल की होगी I ट्रेन चल पड़ी मैं पॉकेट से अपना मोबाइल निकाल कर देखने लगा, तभी वो बुजुर्ग जो मेरे सामने वाली सीट पर बैठे हुए थे I मुझसे पूछे, बेटे कहां तक जाओगे आप, मैंने उनको बताया चाचा जी बस बेगूसराय तक जाना है I फिर वो बोलें,अच्छा...क्या नाम है तुम्हारा,
जी जयांश नाम है हमारा जयांश दुबे I
अच्छा तुम्हारा भी नाम जयांश ही है ,मैंने पूछा तुम्हारा भी से मतलब किसी और का भी नाम है क्या जयांश दुबे I

फिर उन्होंने कहा हां मेरे साले साहब का एक लड़का है उसी का नाम है जयांश, और इत्तेफाक से हम भी दुबे ही हैं इसीलिए उसका भी नाम जयांश दुबे ही है I
बहुत ही अच्छा नाम है, मेरे साले साहब का नाम है जयप्रकाश और उनकी पत्नी का नाम है अंशिता इसीलिए उन्होंने अपना और अपनी पत्नी का नाम जोड़कर अपने लड़के का नाम जयांश रखा I

मेरे साले साहब के शादी के कई सालों बाद कोई लड़का नहीं हुआ, न जाने कितने मंदिरों के चक्कर लगायें, कितनी मन्नतें मांगी ऊपर वाले से, तब जाकर कई सालों बाद जयांश पैदा हुआ I
मुझे आज भी याद है जब जयांश पैदा हुआ था, तब उसके पिता दुबे जी कितना खुश थे I पूरे गांव में उन्होंने मिठाई बटवाई थी I दुबे जी के घर लड़का हुआ है,यह बात सुनकर पूरा गांव खुश था, जो भी सुनता बड़ा ही खुश होता और यही कहता है कि चलो भगवान ने आखिर दुबे जी की भी सुनली बड़े अच्छे इंसान है दुबे जी सबका भला ही  चाहते हैं I
समय बीतता गया और धीरे-धीरे दुबे जी का लड़का जयांश बड़ा होता गया, पढ़ने में भी बढ़ा ही तेज था पढ़ाई हो या खेल कूद हर चीज में रुचि रखता था I एक तरह से यह भी कहा जाए कि बड़ा ही तेज तरार और इंटेलिजेंट था उनका लड़का जयांश.
18 साल गुजरने के बाद बड़े ही अच्छे अच्छे घरों से जयांश के लिए रिश्ते आने लगे, दुबे जी और उनकी पत्नी अपने बेटे जयांश की शादी के सपने सजाने लगे I कई रिश्ते आए पर दुबे जी  की एक ही इच्छा थी, कि भैया हमें रुपया पैसा दान दहेज नहीं चाहिए बस लड़की अच्छी चाहिए , जो गुणवान और सुशील हो जो हमारे घर में आए तो हमारा घर स्वर्ग बना दे I

एक दिन एक रिश्ता आया किशनपुरा से, दुबे जी ने रिश्तेदारों की खुब आव भगत की लड़की के पिता लड़की का फोटो भी लेकर आए हुए थेे I
फोटो देखते ही दुबे जी को लड़की पसंद आ गई,और उन्होंने कहा कि ठीक है हमें तो लड़की फोटो में सही लग रही है I अब जल्दी से एक दिन निकाल के  हमारे साथ साथ लड़का और लड़की भीएक दूसरे को आमने सामने से देख ले ,और  फिर जब सब कुछ ठीक रहा तो शादी  का मुहूर्त निकाल  लेते हैं I

शादी वाली दिन नजदीक आ गई दोनों परिवारों में बड़ा ही खुशी का माहौल था ,खासकर दुबे जी के यानी जयांश के पिता बहुत ही खुश थे I समय गुजरा और शादी वाली दिन आ ही गई, बड़े धूमधाम से दुबे जी ने अपने बेटे जयांश की शादी की I बहू को विदा कराकर अपने घर लेकर आए, घर में बहुत ही खुशी थी सारे रिश्तेदार आए हुए थे घर में स्वर्ग जैसा माहौल हो गया था सभी के चेहरे पर खुशियां थी I

दो-तीन दिनों तक तो रिश्तेदारों का आना जाना लगा रहा, फिर धीरे-धीरे सारे रिश्तेदार अपने अपने घर चले गए I हम भी अपने घर आ गए थे, अचानक एक सुबह  हमें खबर मिली कि जयांश की पत्नी ने पंखे से लटक कर आत्महत्या कर ली है I फिर मैं और मेरी पत्नी भागे भागे दुबे जी के घर पहुंचे, वहां जाकर देखा पूरे घर में मातम छाया हुआ था, और पूरे गांव के लोग हैरान थे I अभी तो शादी के 7- 8 दिन भी नहीं गुजरे हुए थे, और यह क्या हो गया, अभी कुछ दिनों पहले जिस घर में इतनी खुशियां और चहल पहल थी, आज इस कदर मातम में कैसे बदल गई I आखिर क्यों दुबे जी की बहू ने आत्महत्या कर लिया,जबकि दुबे जी और दुबे जी का पूरा परिवार बड़ा ही नेक और दिलखुश इंसान हैं I
जयांश की पत्नि के मरने की खबर उसके मायके पहुंची तो उसके माता पिता भी आ गए, और उन्होंने दुबे जी और और उनके पूरे परिवार के ऊपर यह आरोप लगाया कि इन लोगों ने ही मेरी बेटी को मारा है I और उनके नाम मुकदमा दर्ज करा दिया, फिर क्या था पुलिस आई और अपनी कार्रवाई की और पूरे परिवार  को जेल हो गई I
दुबे जी और उनका पूरा परिवार लाख सफाई देता रहा कि हम ऐसा क्यों करेंगे, अगर हमें दहेज के लिए उत्पीड़न करना ही होता और अपनी बहू को मारना ही होता तो हम शादी से पहले ही आपसे बहुत सारा दहेज मांगे होते I जबकि हमने तो आपसे एक रूपया भी दहेज नहीं लिया था I हम पर गलत आरोप लगाया गया है, दुबे जी और उनका पूरा परिवार रोता गिड़गिड़ाता रहाा, लड़की के पिता से और प्रशासन से पर किसी ने उनकी एक बात न सुनी,और दुबे जी और उनके पूरे परिवार को जेल भेज दिया गया I

दुबे जी  और उनका पूरा परिवार  एक ऐसे जुर्म की  सजा काट रहे हैं, जिस जुर्म को उन्होंने किया ही नहीं था I

दुबे  जी और उनके पूरे परिवार के सजा होने के दो महीने बाद हमें पता चला कि  लड़की  किसी और से प्यार करती थी I जिस कॉलेज में वो पढ़ती थी, उसी कॉलेज के एक लड़के से लड़की को प्यार हो गया था I जब यह बात लड़की के पिता को पता चली तो उन्होंने  लड़की की शादी  करने का  मन बनाया ,जब की लड़की ने बहुत ही विरोध किया था I पापा मैं किसी और से प्यार करती हूं, इसलिए मैं उसी से शादी करना चाहती हूं I पर  उसके पिता ने  उसकी एक भी न सुनी, और  जबरदस्ती उसकी शादी  दुबे जी के लड़के जयांश से कर दी I
शादी तो उसने अपने पिता के दबाव में आकर कर ली, लेकिन वह अपने पहले प्रेमी को भुला न सकी और इसलिए उसने आत्महत्या कर लिया I यह बात  लड़की के पिता भी जानते थे कि  दुबे जी  ने उनकी लड़की को या दुबे जी के परिवार के किसी भी सदस्य ने उनकी लड़की को नहीं मारा I फिर भी  लड़की के पिता ने  दुबे जी और उनके पूरे परिवार को  इस आरोप में फसाया I

आज पांच साल हो गए हैं दुबे जी और उनके पूरे परिवार को सजा काटते हुए ,उन्हीं लोगों से आज मैं मिलने जा रहा हूँ I  पता नहीं और कितने साल उन्हें जेल में रहना होगा I
बेटा मैं ये नहीं कहता कि लड़कें और लड़कियों में फर्क है, बल्कि मैं भी यही मानता हूं कि लड़कें और लड़कियां दोनों एक समान है I  मैं हर मां-बाप से यही कहता हूं की जितना छुट हम लड़कों को उनका करियर बनाने में देते हैं, उतना छूट हमें लड़कियों को भी देनी चाहिए I
लेकिन पूराी देनी चाहिए ये नहीं कि हम उनके मर्जी से पढ़ाई और उन्हें बेहतर बनाएं I और जब उनके जिंदगी का अहम फैसला वो खुद लेना चाहें, तब हम अपने पुराने ख्यालों और लोक लाज के डर से उनकी इच्छाओं को दबा दें I
जब हम उन्हें उनके बेहतर भविष्य बनाने में इतना छूट देते हैं, तब हम उनके चुने गए लड़के से या जिससे वो प्रेम करती हैं क्यों नहीं शादी करा देतें हैं, ताकि वो पूरी उम्र खुश रहें I फिर क्यों हम जबरदस्ती किसी और से उनकी शादी कर देते हैं ऐसा करके हम सिर्फ उनका ही  नहीं बल्कि उस घर का भी भविष्य बर्बाद करते हैं जिस घर में हम उनकी शादी करते हैं I
क्या कसूर होता है उनका, उन परिवार वालों का जो बेकसूर होते हुए भी कसूरवार ठहराये जाते हैं I मैं ये नहीं कहता कि हर लड़की ऐसी होती है जो आत्महत्या करती हैं I
लेकिन आज के समय में अधिकांश जो लड़कियां आत्महत्या करती हैं इसकी वजह बस यही है I
दहेज उत्पीड़न नहीं,क्योंकि आज हमारा समाज शिक्षित हो गया है और कोई भी नहीं चाहता कि वो दहेज के लिए अपने बहु को उत्पीड़न करें या उसे मार दे, खासकर उस लड़की को जो पढ़ी लिखी हो I
हम ये भी मानते हैं कि अगर ऐसा होता भी है तो उसकी अच्छी तरह जांच कराई जाए I
पहले सबूत इकट्ठा किए जाएं, फिर जब यह साबित हो जाये कि लड़के के मां-बाप और लड़का उस लड़की  के मौत के जिम्मेदार हैं, तब उन पर कार्रवाई की जाये और उन्हें सजा दिलाई जाये I

मैं आज तक एक बात समझ नहीं पाया कि आखिर कुसुर किसका था I
दुबे जी का जिन्होंने बड़े धूमधाम से अपने बेटे की शादी की वो भी बिना एक रूूूूपया दहेज लिए, या लड़की के पिता का जिसने यह जानते हुए भी कि उसकी लड़की किसी और से प्यार करती है, फिर भी जबरदस्ती उसकी शादी दुबे जी के लड़के से कराई, या फिर उस लड़की का जिसने अपने पिता के दबाव में आकर ये शादी की ?
                                                                             
                                                                             समाप्त


आप सभी भी अपनी राय जरूर दें I
धन्यवाद.... 

"मन की बात"

"मन की बात"


"ज्योत से ज्योत जगाते चलो प्रेम की गंगा बहाते चलो " रमेश के मोबाइल मे लगा रिंग टोन बजा.......
रमेश :- "हेल्लो" कौन


मेश मैं महेश बोल रहा हूँ..... हाँ भैया, कहिए कैसे है, सब ठीक तो है न सुना है, भाभी की तबीयत खराब है ! हाँ रमेश तबीयत बहुत खराब है, अस्पताल मे भर्ती किए हैं.....वो....

अरे हाँ भैया अगर कोई बात हो तो बता दीजिएगा.....हम अभीं तो बीजी हूँ, बाद मे बात करता हूँ !
फ़ोन कट कर के रख दिया....अरे कौन था, रे रमेश........अरे उ भैया थें......भाभी की तबीयत......अरे तूँ क्या करेगा जान के चल तूँ पैग बना.........!!

२ महीने बाद जब रमेश घर आया, एक दिन खाना खा रहा था, तभी अचानक द्वार पे कोई आया ! और उसके बड़े भाई को भला बुरा कहने लगा !

अरे महेश २ महीने हो गये, तूने अभी तक मेरा उधार नहीं दिया, कब देगा मेरा पैसा...देख अगर तूने जल्द मेरा पैसा नहीं दिया तो मैं तेरी गाय खोल के ले जाउँगा !
अंदर खाना खा रहा रमेश अपनी पत्नी से.... अरे कौन चिल्ला रहा है, बाहर.....पत्नी- लाला है बड़े भाई साहब को भला बुरा कह रहा है !


रमेश- क्यों क्या हुआ..........अरे भाई साहब ने क़र्ज़ लिया था उससे, जब दीदी की तबीयत खराब थी ! वही माँगने आया होगा......
रमेश खाना छोड़ बाहर आकर, भैया आपने लाला से क़र्ज़ लिया था, जब भाभी की तबीयत खराब थी ! मैने आप को बोला था न के अगर पैसे की ज़रूरत हो तो मुझसे कहिएगा...........
महेश चुप-चाप खड़ा उसकी बातें सुन रहा था......एक शब्द नहीं बोल रहा था !
पास मे ही खड़ी महेश की पत्नी भी रमेश की बातें सुन रही थी, महेश के कुछ न बोलने पर..... वो बोली...

रमेश तुम्हे तो पता ही है, हमारी स्थिति.... खेतों मे इस साल फसल भी अच्छा नहीं हुआ ! तुम्हारे भैया को कोई काम भी नही मिलता, उनकी भी तबीयत आज-कल खराब ही रहती है ! तुम और तुम्हारी पत्नी हमारी परिस्थिति को भली-भाति जानते हो उस दिन तुम्हारे भैया ने पैसे के लिए ही तो तुम्हारे पास फ़ोन किया था ! जब उन्हे पता चला के मेरी तबीयत खराब है इसका तुम्हे पहले से पता था ! फिर भी तुमने फ़ोन करके मेरा हाल तक नहीं पूछा...........और तो और जब उन्होने फ़ोन किया तो तुमने कहा के कोई बात हो तो मुझे बता दीजिएगा......सब जानते हुए भी के हम किस स्थिति से गुजर रहे हैं, फिर तुम कह रहे हो के कोई बात हो तो बता दीजिएगा....ये कह कर तुमने फ़ोन काट दिया....! फिर दुबारा पूछे भी नही के भैया पैसे का इंतेजाम हुआ भी या नही !
रमेश जब तुम्हारे भैया के साथ मेरी शादी हुई थी, तब तुम ६ साल के थे ! शादी के दो साल बाद ही सासू माँ गुजर गई !
मैं आज भी तुम्हे देवर नहीं, अपना बेटा समझती हूँ ! जब तुम छोटे थे, तुम्हारे भैया अनपढ़ होते हुए भी मेहनत मज़दूरी करके तुम्हे पढ़ाया ! खुद पुराने कपड़े पहनते रहे पर तुम्हारे लिए नये सिलवाते थें ! तब तुमने अपने भैया से कहा था के भैया मुझे पढ़ना है, भैया मुझे नये कपड़े खरीद दो नही न.....क्योकि भैया तुम्हारी मन की बात समझते थें.........और अपना फ़र्ज़ निभाना चाहते थें !


और उस दिन रमेश.............जब भैया ने फ़ोन किया तो तुम उनकी मन की बात नहीं समझ पाए........

                                     
                                                  समाप्त

धन्यवाद... 

…. इंदर भोले नाथ
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Tuesday, February 19, 2019

गज़ल

तुझे कोई इतना चाहे इस जमाने में नहीं होगा
मेरा दिल था मेरा दिल है मेरा दिल ही रहेगा सदा

मेरे ख्वाहिश मेरे अरमाँ हुए फना जिस पे वो
कातिल था वो कातिल है वो कातिल ही रहेगा सदा

वो मौजों की रवानी है वो दरियाँ की तूफानी है
मैं साहिल था मैं साहिल हूं मैं साहिल ही रहूंगा सदा

अधूरा इश्क़ ने ही हमको काबिल बना डाला वो
जाहिल था वो जाहिल है वो जाहिल ही रहेगा सदा

........ इंदर भोले नाथ



Thursday, February 14, 2019

दर्द

यह बात तमाचे कि नहीं जो बापू सा अहिंसावाद रहें
वो खून की होली खेल रहें और हम निराशावाद रहें

उतर के देखो सियासत से कभी उस घर में कितनी मातम है
वो दर्द रूह को छलनी कर दे वो जख्म सालों बाद रहे

क्यों मौन साधे यूं बैठे हो फिर तांडव का आगाज करो
उन्होंने 40 मारे हैं तुम 400 का शिकार करो

नदियां बहा दो खून की आतंकियों की रूह कांप उठे
यहां 40 का  अग्नि दाह हो वहां 400 का जनाजां उठे

..... इंदर भोले नाथ



Wednesday, February 13, 2019

ग़ज़ल

चाहे जीते कोई या हारे कोई
पर बिगड़ी हालात को सुधारे कोई


जो दुर्दशा है आज इस उजड़े चमन का
गुलिस्ताँ वतन का संवारे कोई


कब तक लड़ोगे जाति-मज़हब के नाम पर
हम इंसानो को कभी इंसान पुकारे कोई


नहीं माँगता "इंदर" तुमसे मुकम्मल जहाँ
क़तरा-क़तरा सही वतन को निखारे कोई


चाहे जीते कोई या हारे कोई
पर बिगड़ी हालत को सुधारे कोई


........इंदर भोले नाथ


 

Tuesday, February 12, 2019

शायरी

इंतेजार वो भी करती है सफर में साथ होने का,
लेकिन दर्द कलम ✒ को भी है कागज़ को चुभोने का.....

शायरी

सिलसिला शायद थम गया दिदार का लेकिन,
यादों में बसर रहने का सफ़र अब भी जारी है

Monday, February 11, 2019

शायरी

   ''               गुजर जायेंगे बनकर हवा तेरे आंगन से कभी
                 लीपट जायेंगे बनकर हवा तेरे दामन से कभी,

                        बसा रखा है अपनी आंखों में जो सागर मैने
                           बरस जायेंगे बनकर घटा तेरे सावन में कभी,




Sunday, February 10, 2019

गज़ल

वो सख्श मेरे सामने था खड़ा
मैं बस उसे देखता  ही रहा

सोचा उस से दो बातें करलें
पल दो पल की मुलाकातें कर लें

न जाने क्यूँ वो अपना सा लगा
वो सच था पर सपना सा लगा

इक कशिश थी उसकी आँखों में
इक बेचैनी थी उसकी  सांसों में

खुद को पाया मैंने उस में
न जाने क्यों वो आइना सा लगा

पहले भी मिला था शायद उससे
तब बड़ा ही दिल खुश लगता था

मगर आज कुछ खोया सा लगा
रूह तलक रोया सा लगा

नहीं था वो जुदा हमसे "इंदर"
वो शख्स मेरा साया सा लगा

....इंदर भोले नाथ

Friday, February 8, 2019

गज़ल

जीना मुश्किल था कभी जिनका हमारे बीना
आज कल उनके लिए हम बेकार हो गये हैं,

हमें देख कर कल निगाहें झुका ली
गैरों के लिए आज तैयार हो गये हैं,

आज कल उनके लिए हम बेकार हो गये हैं,

वो वो नहीं रहें अब जो छूई मूई सा लगा था
आशियाने से निकल कर बाजार हो गये हैं,

जो सहेम जाते थें रुह तक,देखकर काफिला
महफ़िलों में आज कल वो बेशुमार हो गये हैं,

आज कल उनके लिए हम बेकार हो गये हैं,

जो आंखों में ह़या थी अब काफूर सी हो गई हैं
कजरारे नैन आज कल तलवार हो गये हैं,

आज कल उनके लिए हम बेकार हो गये हैं,

.... इंदर भोले नाथ

Wednesday, February 6, 2019

गज़ल

जीन्हे भुलने में है.....हमने उम्र गुजारी
काश़ हम उन्हें  दो वक्त याद आये तो होतें

बहाया अश्कों का सागर यादों में जिनके
काश़ वो आंसुओं के दो बूंद बहाये तो होतें

जीन्हे भुलने में है.....हमने उम्र गुजारी
काश़ हम उन्हें दो वक्त याद आये तो होतें

हमने सोंचा न था गम-ए-बयां लफ्जों से करेंगे
गर इस कदर इश्क़ में तुम"गालीब"बनाये न होते

जलता न दिल बारिश में भी...इस कदर युं
जो मैने आंखों में सावन बसायें ना होतें

जीन्हे भुलने में है हमने उम्र गुजारी
काश़ हम उन्हें दो वक्त याद आये तो होतें

.... इंदर भोले नाथ

Tuesday, February 5, 2019

गज़ल

                 
जब एहसास हो तेरे आने का लाज़मी है दिल का धड़कना भी,
मिलकर रुख्सत होने पर लाज़मी है दिल का तड़पना भी...

तेरे हर आह से हूं वाकिफ़ मैं मेरे हर दर्द की है खबर तुझे,
गर ख्वाहिश है इश्क मुकम्मल हो लाज़मी हैं दिल का बिखरना भी...

तेरा दिद हमें हो उस जगह तेरी आहट जहाँ मिलती न हो
इश्क़ जिश्म तक ही नहीं लाज़मी है रूह तक उतरना भी...

जब एहसास हो तेरे आने का लाज़मी है दिल का धड़कना भी,
मिलकर रुख्सत होने पर लाज़मी है दिल का तड़पना भी...

Friday, February 1, 2019

गज़ल

रहें गुमसुम कब तलक खुद में दम निकल जायेगा,
कोई गुफ्तगू कर ले पल दो पल दिल बहल जायेगा...

रहता नहीं ठहरा हुआ ये वक्त बदल जायेगा,
जब रू ब रू होगे आईने से ख्वाब रेत सा फिसल जायेगा...

युंही खामोश रह लेतें हम उम्र भर "इंदर",
युं इस कदर ना तोड़ता हमें खामोशियों का असर...

गुमनाम सा इक "दर्द" रूह तक ढ़ल जायेगा,
कोई गुफ्तगू कर ले पल दो पल दिल बहल जायेगा...

इंदर भोले नाथ

Saturday, January 26, 2019

गज़ल

कागज़ की कश्ती बनाके समंदर में उतारा था
हमने भी कभी ज़िंदगी बादशाहों सा गुजारा था,

बर्तन में पानी रख के ,बैठ घंटों उसे निहारा था
फ़लक के चाँद को जब, जमीं पे उतारा था,

न तेरा था न मेरा था हर चीज़ पे हक हमारा था
मासूम सा दिल जब कोरे कागज़ सा हमारा था,

बे-पनाह सी उमंगें थी,कई मंज़िल कई किनारा था
अब तन्हा जी रहे हैं हम तब महफ़िलों का सहारा था,

………..इंदर भोले नाथ.………..

गज़ल

जुड़ती रहे कड़ी से कड़ी हर लम्हा एहसासों का
चलता रहे सिलसिला यूँही मुलाकातों का....

रु ब रु तुम हो न हो, रहे जिक्र तुम्हारी यादों का
चलता रहे सिलसिला यूँही मुलाकातों का....

ख्वाब लिए इन आँखों में रोज गुजरती रातों का
लौ जैसी जलती बुझती सुलग रही जज्बातों का

कोई गिला नहीं तुमसे "इन्दर",है ऐतबार तुम्हारे वादों का
चलता रहे सिलसिला यूँही मुलाकातों का...

"इन्दर भोले नाथ"

मेरी शायरी...

आज ढ़ुढ़ते हो हमें फ़लक के सितारों में
कल नूर- ए - जमीं थे तब कद्र नहीं किये....

गज़ल

जाति मजहब के नाम पर हर रोज लुटते देखा है
इस सोने की चिड़िया को हर रोज टुटते देखा है

है देश कि अब परवाह किसे, कौन देश का अब गुणगान करे
जो खुद का ईज्जत निलाम किया, वो देश का क्या सम्मान करे

पागल थें वो दिवाने जो देश पे बलिदान हुए
मिट सी गई हस्ती उनकी, गुमनाम वो ईमान हुए

वो मसहूर हुए कुछ इस कदर, हर तरफ उन्ही का नाम है
जो देश के टुकड़े कियें, देश उन्ही का गुलाम है

मेरी शायरी...

इक तुहीं नहीं "इंदर" दिवाना उस कली का,
कल गुजरे जो गली से उनके,दिवान- ए- महफ़िल सजी मिली....

मैं बह गया क़तरा क़तरा...

मैं बह गया क़तरा क़तरा, मैं टुटा जा़र जा़र सा,
ये मेरी वफ़ा का ईनाम है, तेरी बेवफाई वजह नहीं...