Saturday, September 12, 2015

तन्हाइयों की आदत सी हो गयी है,
तमन्नाओ की शहादत सी हो गयी है...!
रहना चाहता हू,अब अकेले ही हरपल,
महफ़िलों से अब शिकायत सी हो गयी है...!!

यादगार लम्हें :.....
अर्ज़ किया है :-
वो भी क्या दौर था, जब खुशियों का मज़ा डबल था,
वाह वाह वाह वाह.....
वो भी क्या दौर था, जब खुशियों का मज़ा डबल था,
प्यार के लिए माँ की गोद, मार के लिए हवाई चप्पल था....

कुछ पूरी, कुछ अधूरी है कहानी अपनी,
कुछ पाने की चाह मे,बीत रही जवानी अपनी..!
न जाने कब से चल रहें, मंज़िल की तलाश में,
कुछ कट चुकी, कुछ बाकी है जिंदगानी अपनी...!!