Wednesday, February 13, 2019

ग़ज़ल

चाहे जीते कोई या हारे कोई
पर बिगड़ी हालात को सुधारे कोई


जो दुर्दशा है आज इस उजड़े चमन का
गुलिस्ताँ वतन का संवारे कोई


कब तक लड़ोगे जाति-मज़हब के नाम पर
हम इंसानो को कभी इंसान पुकारे कोई


नहीं माँगता "इंदर" तुमसे मुकम्मल जहाँ
क़तरा-क़तरा सही वतन को निखारे कोई


चाहे जीते कोई या हारे कोई
पर बिगड़ी हालत को सुधारे कोई


........इंदर भोले नाथ