Monday, April 4, 2016

है आरज़ू यही अब

है आरज़ू यही अब
यूँ ज़िंदगी बसर हो
रहें काफिलों के संग
पर तन्हा सफ़र हो
…इंदर भोले नाथ…
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इतना मुश्किल भी नहीं

इतना मुश्किल भी नहीं “इंदर”
अल्फाज़ों को अक्स देना
उल्फ़त-ए-मंज़िल के किनारों तक
गर इश्क़ न पहुँचा हो…
…इंदर भोले नाथ…
merealfaazinder.blogspot.in

अरसा गुजर गये

अरसा गुजर गये हमें
मुस्कराना भूले हुए
है ज़िंदगी अजीब तूँ
हमें रुलाना नहीं भूली
…इंदर भोले नाथ…
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