Thursday, September 1, 2022

करते हैं बचपन की बातें

मिलें थें हम कई सालों बाद
शाम थी गुजरी उसी के साथ
पूछा उसने कैसे हो तुम
कैसा चल रहा काम काज

अपना तो सब चंगा है
ना टेंसन ना पंगा है
जिंदगी सुकून से गुजर रही
अच्छा चल रहा धंधा है 

एक फ्लैट तो बना लिया 
अब दूसरे की तैयारी है
घर में सब इंपोर्टेंट चीजें
बाहर खड़ी फरारी है

सुनकर उसकी सारी बातें
ताजी हुई पुरानी यादें
बोला उसको छोड़ न ये सब
करते हैं बचपन की बातें

तुं तुं बन जा मैं मैं बन जाऊ
मैं अपने खाने से तुझे खिलाऊँ
मेरे लिए तूँ झगड़ा करना
तेरे लिए मैं लड़ के आ
ऊँ
 
तुं डाल पे चढ़ के आम तोड़े
मैं नीचे खड़ा  करूँ इकट्ठा
तुं मेरी नाम की हाजिरी दे
मैं तेरे नाम का मारूँ रटा

वो तपती दुपहरी में,नंगे 
पांव सड़कों पे दौड़ लगाना
बिना बात की बातों पर वो
हँसना और खूब हँसाना
 
चल गुजरे दौर में चलते हैं फिर
अंधियारे मे जलते हैं फिर
किरणों से आँख मिला के दोनो
इस सूरज से लड़ते हैं फिर

दिन का सूरज नहीं है दिखता
ड्यूटी मे जगती हैं रातें
रहने दे अब छोड़ न ये सब
करते हैं बचपन की बातें

तूफानों से नहीं थें डरतें
बाग में आम बिनने चल पड़ते
कहाँ मजा थेटर में है अब
जो सामीयाने में थें करतें 

सिटी,मॉल भी ठीक न लगता
नया साल भी ठीक न लगता
हुई त्योहारों की खुशी भी फीकी
मेले में अब भीड़ न लगता

छत पे सो के तारा देखना
सपने में फिर नजारा देखना
याद है या फिर भूल गया तुं
नदी का वो किनारा देखना

बदला केवल तुं ही नहीं है
मैं भी कुछ कुछ बदल गया हूँ
कभी अकड़ थी चट्टानों सी
आज मोम सा पिघल गया हूँ

देर से खेलकर जब घर आतें
याद है तुझ को माँ की डांटे
बहुत हुआ रहने दे ये सब
करते हैं बचपन की बातें
 
करते हैं बचपन की बातें..........
 

© इंदर भोले नाथ

बागी बलिया उत्तर प्रदेश