Wednesday, June 22, 2016

कहीं डूबा है कोई यादों मे…

कहीं जख्म है नासूर बनें,कहीं समंदर बसा है आँखों मे,
कहीं तन्हा हुआ सा है कोई,कहीं सुलग रहा कोई रातों मे…
कुछ इस क़दर बेताब हुए, दीवानें राह-ए-उल्फ़त मे,
कहीं जीना कोई भूल बैठा, तो कहीं डूबा है कोई यादों मे…
…इंदर भोले नाथ…
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वीरानो में बना बैठे हैं…

कम्बख़्त ये तन्हाई भी न
कुछ इस क़दर हमें अपना बना बैठी है, के
इसका बसेरा मुझमे नहीं, हम
अपना आशियाना ही वीरानो में बना बैठे हैं…
…इंदर भोले नाथ…
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ये शिकायत भी है…

ये शिकायत भी है उनका के हम उन्हे याद नहीं करते,
और अपनी हिचक़ियों का कुसूरवार भी हमें बताते हैं…
…इंदर भोले नाथ…
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