Wednesday, February 12, 2020

हां मैंने इश्क को जहन्नुम से भी बद्तर देखा है

मैंने अश्क़ों के समंदर संग अपना मुकद्दर देखा है
हां     मैंने इश्क को जहन्नुम से भी बद्तर देखा है

ज़िंदगी   गुजर    जाती है    इंतज़ार  में   अक्सर
हाँ      मैंने   इश्क़ में    हसर   इस  क़दर देखा है

इन  आंखों  से  नींद अब  काफ़ूर  सी हो  गई  है
के तेरी तलाश में मैंने इस क़दर दर ब दर देखा है

मिलते नहीं है ख़्वाबों में भी वो बिछड़ जाने वाले
हुए इंतज़ार मे बसर   कितने रह ए गुज़र देखा है

महज़ सांसों के चलने से जिंदगी जिंदा नहीं रहती
हाँ     मैंने   जीते जी  "इंदर" तेरा   क़बर  देखा है

© इंदर भोले नाथ

Monday, February 3, 2020

रियासत है गुंज रही गरीबों के चित्कारों से

सियासत नाच कर रही अमीरों के इशारों पे
रियासत है गुँज रही गरीबों के चित्कारों से

शांति और उन्नति का वो चमन रहा नहीं
आवाम बिखर रहा है अब देश के गद्दारों से

मुंह खोला जब भी उसने जहर ही उगाला है
आस्तीनों में सांप हम ने ही तो पाला है

आसरा दिया उनको हालत पे तरस खाकर
क्या पता था लुट जाएंगे नेकी के विचारों से

फुर्सत मिले तो देखना कभी इस गरीब खाने में
कैसे जी रहे हैं हम दो वक्त की रोटी कमाने में

इक तुम पे ही भरोसा था तुम भी उन जैसा निकले
कर अनदेखा किसानों को जा मिले साहूकारों से