Friday, March 18, 2016

वक़्त कर लेता है रुख्सत
शायद बीते लम्हों से…
ख़ता तो दिल की होती है
यादों मे खोये रहने की…
…इंदर भोले नाथ…
http://merealfaazinder.blogspot.in/

भर लूँ तुझे आगोश मे

भर लूँ तुझे आगोश मे
ऐ-वक़्त ज़रा तूँ रुक तो जा…
कल ही तो मीले थें हम दोनो
फिर जाने की जल्दी है क्या…
…इंदर भोले नाथ…

Tuesday, March 15, 2016

यादें...

स्कूल से हॉल्फ टाइम की छुट्टी मार के :-

पहले के सिनेमा घरों मे जाते ही वो बुकिंग काउंटर पे लंबी लाइनों के होने के बावजूद भी टिकेट ले लेना !
और अंदर जाते ही सन्नाटा सा छाए हुए उस हॉल मे मच्छरों का वो लगना, वो कोने मे गुटखें और पानों के लाल से धब्बों का होना, वो प्लास्टिक और लकड़ियों की कुर्सियों पे हल्का सा गदे का होना,वो हीरो की एंट्री और एक्सन सीनों पे सीटियों का बजना, वो इंटरवल टाइम मे जल्दी-जल्दी टॉयलेट जाते हुए फिर जल्दी-जल्दी लौट के अपनी सीट पे बैठना !

कसम से.....
आज भी ये एहसास दिलाता है कि इन (Theaters  और Malls ) से कहीं ज़्यादा सुकून और मजेदार हुआ करता था !

वो बूढ़ी औरत…..


रोज सुबह ड्यूटी पे जाना रोज शाम लौट के रूम पे आना,ये रूटीन सा बन गया था, मोहन के लिये ! हालाँकि रूम से फैक्ट्री ज़्यादा दूर नहीं था, तकरीबन१०-१५ मिनट का रास्ता है ! मोहन उत्तर प्रदेश का रहने वाला है,करीब २ सालों से यहाँ (नोएडा) मे एक प्राइवेट फैक्ट्री मे काम कर रहा है ! रोज सुबह ड्यूटी पे जाना,शाम को लौट के कमरे पे आना ऐसे ही चल रहा था !
एक शाम जब मोहन ड्यूटी से ऑफ हो के जैसे ही फैक्ट्री से निकला कमरे पे जाने को,देखा बाहर तो जोरों की बारिश लगी हुई है ! १०-१५ मिनट इंतेजार करने के बावजूद भी जब बारिश न रुकी,तो मोहन दौड़ता हुआ कमरे पे जाने लगा ! तभी उसकी नज़र सड़क के किनारे एक छोटी सी पान की दुकान पे पड़ी,दुकान बंद हो चुकी थी ! और उसी दुकान से चिपक के एक बूढ़ी औरत बारिश से बचने के लिये खड़ी थी ! फिर भी वो भीग रही थी, और ठंड से कांप रही थी,क्योंकि बारिश के साथ-साथ ठंडी हवा भी चल रही थी ! न जाने मोहन के दिमाग़ मे क्या ख्याल आया,वो रुका और उस दुकान की तरफ बढ़ने लगा ! मोहन ने उस औरत से पूछा….माँ जी कौन हो आप..? और इतनी बारिश मे यहाँ क्या कर रही हो ..?

उस बूढ़ी औरत ने कहा…..बेटा,मेरा बेटा और मेरी बहू यहीं रहते हैं,इसी शहर मे, शादी के बाद जब से बहू को लेके यहाँ आया तब से न ही गाँव मे हम से मिलने आया न ही कोई खबर दी ! एकलौता बेटा है मेरा वो, दिल कर रहा था उसे देखने को इसलिए मैं खुद को रोक नहीं पाई और उससे मिलने चली आई ! जब उसकी शादी नहीं हुई थी, तब मैं अपने बेटे के साथ एक बार पहले भी आई थी यहाँ ! वही लेकर आया था मुझे, कहता था माँ खाना बनाने मे दिक्कत होती है,चल तूँ मेरे साथ ही रहना !
फ़ोन भी की थी मैने उसको, कि बेटा मैं आ रही हूँ वहाँ तुम्हारे पास ! जब मैं वहाँ पहुँची जहाँ वो रहता है, तो देखा कमरे मे ताला लगा हुआ है ! लोगों से पूछने पर पता चला कि वो बहू को लेकर उसके मायके गया है,बहूकी माँ की तबीयत खराब है उसे ही देखने गया है ! और बेटा…. जब अपना बेटा ही अपने कमरे मे ताला लगा गया है,तो फिर ये अंजान लोग क्या पनाह देंगे मुझे…..!
इतना सुनते ही मोहन के मुँह से अनायास ही निकल पड़ा…..कैसा बेटा है अपनी माँ को इस हालत मे छोड़ सास को देखने गया है ! फिर मोहन उस बूढ़ी औरत से बोला…माँजी पास मे ही मेरा कमरा है, चलो आप वहीं रह लेना जब तक आप के बेटे और बहू नहीं आ जाते !
……………………………………………………….ख़त्म………………………………………………………………….
लेखक- इंदर भोले नाथ…
…..(१५/०३/२०१६)

Sunday, March 13, 2016

बता ऐ-दिल-ए-नादां तुझे हुआ क्या है...

क्यूँ उदास हुआ खुद से है तूँ
कहीं भटका हुआ सा है,
न जाने किन ख्यालों मे
हर-पल उलझा हूआ सा है,
बता ऐ-दिल-ए-नादां तुझे हुआ क्या है
खोया-खोया सा रहता है
अपनी ही दुनिया मे,
गुज़री हुई यादों मे
वहीं ठहरा हुआ सा है,
बता ऐ-दिल-ए-नादां तुझे हुआ क्या है
शीशा-ए-ख्वाब तो टूटा नहीं
तेरे हाथों से फिसल के,
जो आँखों मे टूटे ख्वाब लिए
यूँ रूठा हुआ सा है,
बता ऐ-दिल-ए-नादां तुझे हुआ क्या है
क्यों उम्मीद किए बैठा है तूँ
वफ़ा की इस जमाने से,
यहाँ कीमत लगी है प्यार की
इश्क़ बिका हुआ सा है,
बता ऐ-दिल-ए-नादां तुझे हुआ क्या है
…इंदर भोले नाथ…
..(१३/०३/२०१६)


ज़िंदगी न हो उदास तूँ

ज़िंदगी न हो उदास तूँ,
तेरे पूरे अरमान कर देंगे…
हम वो माहिर परिंदे हैं,
जो तुफां मे उड़ान भर देंगे…
…इंदर भोले नाथ…


Friday, March 11, 2016

दिल सुलग सा रहा है

इस आज़र्दाह-ए-आलम का, क्या कहना “इंदर”,
बारिश मे भीग के भी दिल सुलग सा रहा है…
…इंदर भोले नाथ…
आज़र्दाह-व्याकुल

वो-प्यार याद आया...

वो-प्यार याद आया...

गुजरें जो गली से उसके,वो-दीदार याद आया
पलते नफ़रतों के दरमियाँ,वो-प्यार याद आया
आँखों से मिलने का वो इशारा करना उसका
फिर करना तन्हा मेरा,वो इंतेजार याद आया
शिकवे लिये लबों पे,बेचैन वो होना मेरा फिर
चुपके से लिपट के उसका,वो इज़हार याद आया
मिल के उससे दिल का,वो फूल सा खिल जाना
न मिलने पे होना खुद का,वो लाचार याद आया
यूँही चलते रहना वो,अपना मिलने का सिलसिला
कभी पतझड़ तो कभी वो बहार याद आया
हर इश्क़ की कहानी मुकम्मल हुई नहीं “इंदर”
हर शाम तन्हाई मे मुझे वो-यार याद आया
गुजरें जो गली से उसके,वो दीदार याद आया
पलते नफ़रतों के दरमियाँ,वो-प्यार याद आया
…इंदर भोले नाथ…