Monday, August 24, 2015

"सिगरेट......( Cigarette)


सारी रात मैं सुलगता रहा,
वो मेरे साथ जलता रहा
मैं सुलग-सुलग के 
घुटता रहा,वो जल-जल
के, ऐश-ट्रे मे गिरता रहा,
गमों से तड़प के मैं
हर बार सुलगता रहा
न जाने वो किस गम
मे हर बार जलता रहा
मैं अपनी सुलगन को
उसकी धुएँ मे उछालता
रहा, वो हर बार अपनी
जलन को ऐश-ट्रे
मे डालता रहा,
घंटों तलक ये सिलसिला
बस यूँ ही चलता रहा
मैं हर बार सुलगता
वो हर बार जलता रहा
मेरी सुलगन और उसकी
जलन से "ऐश-ट्रे"
भरता रहा....भरता रहा.......!!

Saturday, August 22, 2015

"हरिया"

"हरिया"

एक बूढ़ी दादी दरवाजे से बाहर आई, और रोते हुए मंगरू से बोली, बेटा तुम्हे लड़का हुआ है ! पर बेटा तोहार मेहरारू बसमतिया इस दुनिया से चल बसी, अब इस अभागे का जो है सो तुम्ही हो ! बेचारी इतने सालों से एक औलाद के लिए तरसती रही, इतने सालों बाद भगवान ने उसकी इच्छा पूरी की, तो बेचारी उसकी सकल देखे बिना ही इस दुनिया से चल बसी ! बेचारी बड़ी अभागन थी ये कहकर बूढ़ी दादी रोने लगी ! ये सब सुनके मंगरू को तो जैसे साँप सूंघ गया, बेचारा पागलों की तरह दहाड़े मार के रोने लगा ! और चिल्ला चिल्ला कर ये कह रहा था, हे भगवान तूने ये क्या किया एक दुआ के बदले तूने मेरी पूरी दुनिया छिन्न ली ! अगर मुझे पता होता के तूँ मेरी एक दुआ के बदले,मेरी पूरी दुनिया मुझसे छिन्न लेगा तो मैं कभी भी तुझसे औलाद न माँगता ! इतने सालों से जिस औलाद के लिए मैं तरस रहा, तूने इतने सालों बाद उसे दिया भी तो उसके बदले मुझसे मेरी पूरी दुनिया छिन्न ली ! अब तूँ ही बता मैं क्या करूँ ? मेरी बसमतिया मुझे छोड़कर चली गई ये कह कर चिल्ला चिल्ला कर रोने लगा !

बीना दूसरी शादी किए ही मंगरू बच्चे को पालने लगा, दिन बीतते गये, मंगरू ने बड़ी मेहनत की उस साल खेतो मे अच्छे- ख़ासे फसल हुए, कुछ अनाज अपने लिए रख कर उसने सारे अनाज बेच दिए, उस पैसे से उसने दो जोड़ी बैल खरीद लिए, अपने खेत की बुआई-जुताई करने बाद, दूसरों के खेत भी जोते और बोये, मिले पैसों मे से आधा तो वो बैलों पे खर्च कर देता,  ताकि उनकी सेहत बनी रहे, तभी तो वो ज़्यादा से ज़्यादा खेत जुटाई कर पाएँगे, और आधा पैसा बचा के रखता,खाने की कमी तो थी नही, घर मे अनाज भरा पड़ा था,  
दिन बीतते गये दूसरे साल भी अच्छी फसल हुई, अपने लिए कुछ अनाज रख कर उसने सारे अनाज बेंच दिए, मन्गरु बड़ा खुश था, काफ़ी पैसे उसने जमा कर लिए थे ! सोचता काश ये अच्छे दिन देखने के लिए मेरी बासमतिया जिंदा होती, फिर मन ही मन कहता चलो जो हुआ सो हुआ,जो नही है उसके याद मे रोने से क्या फ़ायदा,  
मंगरू के दिल मे अपने बेटे "हरिया" के लिए काफ़ी अरमान थे, गाव वालों से कहता मैं तो अनपद-गवार रह गया, लेकिन अपने बेटे "हरिया" को मैं एक काबिल इंसान बनाउँगा पढ़ा लिखा कर ! खूब पढ़ाउँगा मैं उसे, जो ग़रीबी के दिन मैने देख हैं वो नही देखेगा,
लेकिन मंगरू के अरमान तब टूट गये जब "हरिया" 6 साल का हुआ, क्योंकि वो और बचों की तरह नही था, वो नाही किसी बच्चे के साथ खेलता ना किसी से बात करता, बस चुपचाप गुमसूम सा रहता, ना खुद ख़ाता ना नाहाता सारा कुछ मंगरू को ही करना पड़ता, बस यही दुख मंगरू को खाए जा रही था !  के मेरे बाद इसका क्या होगा, मैं कब तक जिंदा रहूँगा और इसकी देख भाल करता रहूँगा ! कितने अरमान सजाए थे, मैने इसके लिए ! कभी खुद को कोसता तो कभी भगवान को बुरा भला कहता,
हे भगवान ये तूने क्या किया, इतने सालों बाद तूने एक औलाद दी,उसके बदले मेरी पत्नी मुझसे छिन्न ली, इसके बाद भी मैंने दिल पे पत्थर रख लिया, ये सोचकर के तूने औलाद तो दी, लेकिन किस काम की ऐसी औलाद, इससे अच्छा था के तू मुझे निवंश ही रखता, अरे मैं कब तक जीता रहूँगा इसकी देख भाल के लिए, मेरे मरने के बाद क्या होगा इसका कौन इसकी देख भाल करेगा, बस यही चिंता मंगरू को खाए जा रही थी, नाही खेती मे उसका मन लगता, ना किसी काम मे!

दिन बीतते गये, मंगरू जब उन्ह बच्चों को देखता जो हरिया से उम्र मे छोटे थे, और विद्यालय मे पढ़ने जाया करते थे ! ये देख हरिया और टूट जाता और मन ही मन कहता काश मेरा हरिया भी इनकी तरह होता, तो कितना अच्छा होता, हे भगवान तूने मेरे ही साथ ऐसा क्यों किया ! और फिर खुद को कोसता और भगवान को बुरा भला कहता !   
हरिया अब 14 साल का हो गया था ! लेकिन सिर्फ़ उम्र से, बाकी दिमाग़ से वो ५-६ साल का बच्चा ही था, एक दिन अचानक मंगरू की तबीयत खराब हुई, और वो भी हरिया को इस दुनिया मे अकेला छोड़ चल बसा,
हरिया को इतनी समझ तो थी नहीं वो क्या करता, पड़ोसियों ने जैसे-तैसे इंतेजाम कर लाश को श्मशान ले जाकर जलाया ! मरने के बाद जो बिधि होती है वो चलता रहा, ९वें दिन एक पड़ोसी हरिया को लेकर पंडित जी के पास गया, और बोला पंडित जी कल दसवाँ है (जिस दिन पिंड दान होता है) उ दान का समान लिख देते का-का दान होता है ! 
फिर क्या था, पंडित जी ने लंबा से सामग्रियों का चिट्ठा पकड़ा दिया उन्हे ! और कहा के ईमा जवन-जवन लिखा है उ सब लाना तभी मन्गरुवा के आत्मा को शांति मिलेगा नहीं तो उसकी आत्मा भटकती रहेगी !
पैसे तो थे नहीं अब इसलिए पड़ोसी हरिया को लेकर लाला के पास गया, और जो थोड़ा बहुत खेत था लाला के पास गिरवी रख के पैसे लाया ! दान का सारा समान खरीद लाए जो भी अक्कड़म-बक्कड़म पंडित जी ने लिखा था !
पंडित जी ने आते ही पूछा, हाँ भाई सारा समान लाए हो न दान वाला जवन-जवन मैने लिखा था ! हाँ पंडित जी हम उ सब समान लाया हूँ, जवन-जवन आप लिखे रहें, पड़ोसी ने कहा ! पंडित जी बैठ गये पूजा पर, बैठते ही अरे उ दूब (एक प्रकार की घास,जिसे कुश भी कहते हैं पिंड दान के लिए अति-उत्तम आवश्यकता होती है उसकी) नही लाए क्या ! तभी पड़ोसी ने हरिया से कहा के, जा खेत से दूब लेके आ ! और हाँ देखना साफ-सुथरा हो गंदा-वन्दा न हो.....
हरिया चला गया खेत मे दूब लाने, उसने एक गठर डूब काट लिए, खेत से दूब लेकर आ रहा था ! तभी उसे रास्ते मे एक गढ़े मे मरी हुई गाय दिखी जो किसी ने फेंक रखी थी, अब हरिया ठहेरा मन्द-बुद्धी, सोचा गाय बड़ी कमजोर हो गई है, शायद इसने कुछ खाया नही होगा ! घास का गठर उसके सामने रख वहीं बैठ गया !
उधर पंडित जी गुस्से से आग बबुला हो रहे थें, गलियाँ दिए जा रहे थें ! न जाने कहाँ जाके मर गया ससुरा, अबे तूँ क्या खड़ा-खड़ा मेरा मुँह देख रहा है, जाके देख कहाँ मार गया वो ! गरजते हुए पंडित जी ने पड़ोसी को बोला.......
पड़ोसी भागता हुआ खेतों की तरफ निकल पड़ा, देखा के हरिया एक गढ़े मे मरी हुई गाय के पास, घास का गठर रख के बैठा हुआ है !
तूँ यहाँ क्या कर रहा है रे हरिया बैठ के, उधर पंडित जी कब से बैठे हैं, चल जल्दी दूब लेके ! दूब और हरिया को लेकर पड़ोसी पंडित जी के पास आया, पंडित जी हरिया को देखते ही, इतना देर से का कर रहा था रे हरामखोर कहाँ मर रहा था अब तक ! उ पंडित जी गैया को घास खिला रहा था, हरिया ने कहा ! क्या..... हम इहा पूजा पे बैठा तुम्हरा इंतजार कर रहा हूँ और तुम उँहा गाय को घास खिला रहे हो...... तभी पड़ोसी ने कहा" उ भी मरी हुई गाय को पंडित जी.....अब तो पंडित जी का पारा और गरम हो गया ! क्या........... अरे हरामखोर मरी हुई गाय कभी घास खाती है रे.......जो तूँ उका खिला रहा था !
पंडित जी के मुँह से निकला ये शब्द न जाने कैसे हरिया के दिमाग़ की बत्ती जला दी........
तभी हरिया ने चिल्ला कर के पंडित जी से कहा, जब मरल (मरी हुई) गैया घास नाही खाए सकत, फिर हमर मरल बाबू ई सब दान का समान कईसे ले जायेगा ! 
जैसे ही पंडित जी ने हरिया के मुँह से ये शब्द सुना, उनके पैरों तले ज़मीन खिसकने लगी ! फिर क्या था, पंडित जी ने गाव वालों से कहा अरे ई मूर्ख का बकवास किए जा रहा है, और तुम लोग खड़े-खड़े सुन रहे हो ! अरे ई पागल को मार के भागाओ इसे यहाँ से वरना अनर्थ हो जाएगा.....अरे ई तो पागल है तुम लोग तो सही हो मार के भागाओ इसे गाँव से !
फिर क्या था गाँव वालों ने पंडित जी की बात सुनी नहीं के हरिया को गाँव से मार-मार के बाहर निकल दिया ! ये कह के, तूँ पागल हो गया है......अगर तूँ गाँव मे रहा तो गाँव का सत्यानाश हो जाएगा.....................!!

आज भी न जाने कितने हरिया गाँव से निकाल दिए जाते हैं, या फिर उनकी आवाज़ दफ़न कर दी जाती है !  जब भी खोखले रिवाज़ों के प्रति आवाज़ उठाते हैं...........................

मरे हुए की आत्म्शान्ति के लिए सर्वोत्तम दान बस पिंड दान ही है...........
और बाकी के दान तो अपनी इच्छानुसार है.......!!

लेखक- इंदर भोले नाथ…




खुद से खुद की राहें, अब अंजान है मेरी...!
     दरम्यान तेरे सिमटी, अब पहचान है मेरी...!!

Acct- (IBN_
#मेरे_अल्फ़ाज़_इंदर

Saturday, August 15, 2015

बहुत नाज़ था कभी,उसे अपने आप पर,
किसी से डरता नहीं था वो...
कुछ इस क़दर टूटा "ज़िंदगी" की मार से वो,
अब तो खुद के साए से भी डरता है वो...!!

#मेरे_अल्फ़ाज़_इंदर
Acct- (IBN_


Friday, August 14, 2015

वो मनाएँ आज़ादी की खुशी,
"वो आज़ाद हैं"...
हम तो आज भी,
ग़रीबी के गुलाम हैं "साहेब"...!!
Acct- (IBN_
‪#‎मेरे_अल्फ़ाज़_इंदर‬
आप सभी को स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक बधाई
Happy Independence Day..

Thursday, August 13, 2015

रहें न इख्तियार दिल पे "इंदर", 
बस मे इसे करें कैसे.....!
शायद बन गया काफ़िर ये,
तभी काफिराना इसकी शरारत है....!!

‪#‎मेरे_अल्फ़ाज़_इंदर‬
Acct- (IBN_


ये यादों का सैलाब "इंदर", 
दिल मे नश्तर चुभोता है...!
कभी आँखों से आँसू आते हैं,
कभी दिल तड़प के रोता है....!!

‪#‎मेरे_अल्फ़ाज़_इंदर‬
Acct- (IBN_


ये रोज़-रोज़ की तड़प "इंदर", 
अब सही न जाती है...!!
मुकम्मल कर दो ज़िंदगी मेरी,
या इस क़दर तड़पाना छोड़ दो....!!
#मेरे_अल्फ़ाज़_इंदर 
Acct -( IBN_



 मंदिर मे पियूं ना मस्जिद मे....
ना ही पी पाउँ गुरुद्वारे और गिरज़ाघर मे...!!
किस जगह पियूं मैं...
जहाँ न मुझपे कोई इल्ज़ाम हो...
"इंदर" ऐसी वो जगह बता, 
जहाँ न कण-कण मे बसते राम हो.....!!
#‎मेरे_अल्फ़ाज़_इंदर‬
Acct - (IBN_




         ये तखतों-ताज़-दौलत-ए-सोहरत "इंदर"...!
सब कुछ एक दिन मिट जायेंगे....!!
   गर कुछ बचा, तेरे वज़ूद की खातिर...!
    बस यही चन्द अल्फ़ाज़ रह जायेंगे....!!
#मेरे_अल्फ़ाज़_इंदर
Acct- (IBN_


     बड़े बेबस,बड़े लाचार, 
      से हो जाते हैं "इंदर"...!
जब रात की चादर, 
        ओढ़े आती है तन्हाई....!!

#मेरे_अल्फ़ाज़_इंदर
Acct- (IBN_




हमदर्द कितना बना गया,
     उनके आँसू का इक कतरा...!
    मैं आँसुओं की बरसात लिये,
  न जाने कब से तन्हा हूँ...!!

#मेरे_अल्फ़ाज़_इंदर 

Acct- (IBN_



तेरे साये से लिपट के, 
रोते रहें बड़ी देर तक...!
    आज नींद बड़ी गहरी आई,
  सोते रहें बड़ी देर तक...!!

#मेरे_अल्फ़ाज़_इन्दर 
Acct- (IBN_


तुम्हे पाने की ज़िद्द अपनी...!
     मुकम्मल होगी नही "इंदर"....!!
        बस दीदार ही तेरा मयस्सर हो....!
      इतना काफ़ी है जीने के लिए....!!

#मेरे_अल्फ़ाज़_इंदर 
Acct- (IBN_


       ना हमे दौलत चाहिए, ना सोहरत चाहिए...!
 दो रोटी ख़ाके सुकून से सो जाएँ "इंदर",
              बस इतना ही काफ़ी है हम ग़रीबों के लिए........!!

             स्वतंत्रता  दिवस की हार्दिक शुभकामनायें  आप सभी को…। 
#मेरे_अल्फ़ाज़_इंदर
Acct- (IBN_


                     वही निखार- वही रंगत- वही नशा,
        अब भी तेरी आँखों मे है...
गर नहीं तो वो दिल,
                 जहाँ कभी हम बसा करते थें...!!


                   १३/०८/२०१५@मेरे_अल्फ़ाज़_इंदर
Acct- (IBN_


Wednesday, August 12, 2015

इबादत करूँ खुदा की, 
 या तुझे खुदा बना लूँ...!
     सांसो की कड़ी जुड़ी उससे,
      तूँ तो रूह तक समाई है...!!

१३/०८/२०१५@मेरे_अल्फ़ाज़_इंदर

Acct- (IBN_

"बिखर जाउँगा मैं......


आज कद्र नहीं तुम्हे मेरी इंदर,
कल तन्हाई मे बहुत याद आउँगा मैं...
आज हसते हुए जुदा हो रहे हो,
कल इन आँखों का आसू बन जाउँगा मैं...
है मोहब्बत कितनी मेरे दिल मे,
तन्हाई मे तुम्हे ये "एहसास" दिलाउँगा मैं...
बे-शक़ तुम गुन्जोगे,महफ़िल मे बनके तराने,
बनके ज़िक्र लबों पे तुम्हारी,हर वक़्त आउँगा मैं...
न होने देंगे फीका कभी तेरे चेहरे का नूर,
बनके नूर-ए-आफ़ताब तेरी सूरत पे
सवर जाउँगा मैं....
जब कभी टूटोगे तुम, होके मायूस,
हर आह मे साथ निभाउँगा मैं...
वादा रहा तुमसे मेरी "ऐ-ज़िंदगी",
तेरे हर दर्द पे टूट के बिखर जाउँगा मैं.....!!


११/०८/२०१५@मेरे_अल्फ़ाज़_इंदर

Acct- (IBN_
आज कुछ टूटा हुआ सा लगा मैं "खुद को,
      कोई तो दर्द है,जिसपे बिवस पाया "खुद को...

१२/०८/२०१५
#मेरे_अल्फ़ाज़_इंदर
Acct- (IBN_

बैजू

"बैजू............



किसी गाँव मे बैजू नाम का एक "मंद बुद्धि" लड़का रहता था, जो गाय भैसो को जंगलों मे चराया करता ! उसी जंगल मे "भगवान भोले नाथ का एक लिंग था, जो काफ़ी पुराना था ! पास मे एक छोटा सा मंदिर भी था, गाँव से दूर जंगलो मे होने के कारण वहाँ कोई जाता नहीं था ! इसलिए मंदिर के अंदर बहुत जंगल लग गये थें !
प्रतिदिन बैजू की एक गाय जो सारी गायों से ज़्यादा दूध देती थी, वो गाय उसी "भगवान भोले नाथ" के लिंग पर अपना सारा दूध चढ़ा देती ! जब शाम को बैजू गाय भैसो को लेकर घर जाता, तो उसके पिता जब धुधने जाते उस गाय को तो दूध ही नहीं निकलता क्योंकी थन मे दूध तो होता ही नहीं था ! फिर क्या बेचारे बैजू की जम के धुलाई होती !
बैजू परेशान रहने लगा, सोचता सारा दिन तो मैं जंगल मे ही रहता हूँ, गाय भैसो के साथ,कोई इंसान भी नही जाता जंगल मे जो वो मेरी गाय का दूध निकाल ले ! फिर ये दूध जाता कहाँ है, उस दिन बैजू सारी गाय भैसो को छोड़ उसी गाय के पीछे लगा रहा ! शाम होने को था, तभी बैजुने देखा के उसकी गाय खड़ी होकर एक काला पत्थर (शिवलिंग) पे अपना सारा दूध गिरा रही है! बैजू को बड़ा गुस्सा आया उसने कहा....ये अपना सारा दूध यहाँ इस पत्थर पे गिरा देती है, और बापू मेरी धुलाई करता है!
फिर उसने गाय को कुछ नहीं बोला, अपना लट्ठ उठाया और उस काले पत्थर (शिवलिंग) पर ४ लट्ठ मारा, और गाय भैसो को लेकर घर चला गया !
उस दिन के बाद वो प्रतिदिन नियमत: सुबह-शाम उस पत्थर (शिवलिंग) को चार लट्ठ मरता और फिर घर जाकर खाना ख़ाता ! ऐसे ही वो सालों तक करता रहा, एक दिन सुबह बिना लट्ठ मारे ही वो खाना खाने बैठ गया, तभी अचानक से उसे याद आया के उसने तो आज पत्थर पे लट्ठ मारा ही नहीं !
फिर क्या था उसने खाना ज्यों का त्यों छोड़ लट्ठ उठाया और जंगल की तरफ चल पड़ा ! और जंगल मे जाकर उस पत्थर (शिवलिंग) को चार लट्ठ मारा, फिर घर जाने को घुमा तभी अचानक से वहाँ एक रोशनी हुई, और साक्षात "भोले नाथ" प्रकट हुए, और बोले...वत्स बैजू
बैजू उस सुनसान जंगल मे अपना नाम अचानक से सुन के डर गया, और पीछे घूम के देखा तो वो डर के मारे काँपने लगा, "भगवान भोले नाथ" एक हाथ मे त्रिशूल,दूसरे मे डमरू गले मे रुद्राक्ष और शेष नाग का माला, जुड़े मे चंद्रमा और मृगछाला लपेटे हुए अपना शोभनीय रूप लिए हुए खड़े थें !
बैजू उनके पैरों मे गिर के रोने लगा, और बोला...मुझे माफ़ कर दीजिए, आज के बाद मैं इस पत्थर को नहीं मारूँगा ! मुझसे ग़लती हो गई मुझे क्षमा कर दीजिए, अब दुबारा नहीं करूँगा !
डरो मत वत्स मैं तुम्हे कुछ नहीं करूँगा, क्योंकि तुम तो मेरे अनूठे और प्रिय भक्त हो ! लोग मन मे लाखों मैल लिए मुझे प्रतिदिन जल, दूध, मेवा, छप्पन भोग, रुपया-पैसा चढ़ाते हैं! मैं क्या करूँगा इन सब का जबकि खुद मेरे जट्टे  मे "गंगा" है, और क्षीर सागर मे मैं वास करता हूँ ! अन्न,जल रुपया-पैसा ये सब तो मैं देता हूँ लोगों को फिर मैं इनका क्या करूँगा !
मुझे तो बस श्रधा और भक्ति से एक पता भी चढ़ा दो तो मैं खुश हो जाता हूँ, फिर क्यों मुझे लोग दूध,मेवा और रुपया पैसा चढ़ाते हैं !
आज मैं बहुत खुश हूँ, तुम्हारी अनूठी भक्ति देख कर, तुम मेरे प्रिय भक्तों मे से एक हो ! तुम सालों से धूप-बारिश मे नियमत: मेरे लिंग पर चार लट्ठ मारते आए हो, कभी किसी दिन भी तुमने लट्ठ मारना नहीं छोड़ा, चाहे बारिश हो, कड़ाके की धूप हो, चाहे मौसम कैसा भी हो तुमने कभी भी अपना नियम नहीं छोड़ा.....
यहाँ तक की आज तुम खाना खाने बैठ चुके थे, जब तुम्हे याद आया के तुमने हमे (शिवलिंग) को  मारा ही नहीं फिर तुम वो खाना (जिस खाने के लिए इंसान, इंसान को मरता है, भाई-भाई का दुश्मन बन जाता है ! जिसके लिए इंसान किसी भी हद्द तक जा सकता है तुम वो खाना छोड़ के आ गये!) बस मुझे (शिवलिंग) को मारने के लिए...........धन्य हो वत्स तुम, मैं बहुत खुश हूँ, तुम पर......
आज के बाद लोग इस जगह को तुम्हारे नाम से जानेंगे....दूर-दूर से लोग आएँगे इस जगह पर मेरे दर्शन को, और सदियों तक अमर रहेगा तुम्हारा नाम..........दोस्तों आज भी उस जगह पर लोग दूर-दूर से आते हैं दर्शन को भगवान "भोले नाथ की".....
उस जगह का नाम है.................................बैजुधाम (बैद्यनाथ धाम)

"ऐसे हैं हमारे भोले नाथ जो श्रद्धा से चढ़ाये  हुए  एक पत्ते पर भी खुश हो जाते हैं  "

"जय भोले नाथ"

यह  एक पौराणिक कथा है.........,
   



 

Tuesday, August 11, 2015

 खुद ही रूठती है वो, खुद ही मान जाती है,
            कभी नज़दीक आ कर के, चली वो दूर जाती है...!
           बड़ी उलझी सी रह कर के, कहीं खोई वो रहती है,
         खुदी से बात करती है, खुदी से रूठ जाती है...!!

#मेरे_अल्फ़ाज़_इंदर

Acct- (IBN_


           हैं वो ना समझ "भगवन",जो तुझे पैसों से रिझावे हैं...
दुआ करोड़ो की माँगे,"चन्द" सिक्के चढ़ावे हैं...
   जिसे ज़रूरत है रोटी की, उसे पानी न पिलावे हैं...
     जो बना है पत्थरों का "इंदर",उसे मेवा ख़िलावे हैं...

#मेरे_अल्फ़ाज़_इंदर
Acct- (IBN_


जितनी बार कोशिस की मैने, क़र्ज़ चुकाना उसका,
पर हर-बार माँ का क़र्ज़, बढ़ता ही गया मुझ पे...!!  

#मेरे_अल्फ़ाज़_इंदर

Acct- (IBN_


                             बैठें इंतेज़ार मे, अब ये इरादा कर के "ऐ-ज़िंदगी", 
होंगे रु-ब-रु तभी तुझसे से ...
        जब दीदार-ए-यार मयस्सर हो....!!

Acct- (IBN)


    कुछ यूँ सीमटे हम तेरी यादों के साये में...!
अब तो हमे खुद की भी सुध ना रही....!!

Acct- (IBN_


                                                          ये नूर-ए-आफताब सा रोशन चेहरा,
                                                          उस पे ये नज़ाकत....!
                                                          न जाने कितने परवाने,
                                                          जले होंगे तेरी महफ़िल मे अब तक...!!

Acct- (IBN)


"वो यादें..........


कल शाम करीब ६:३० बजे होंगे, मैं अकेले बैठा हुआ पुरानी यादों मे खोया हुआ था ! यादों के सागर मे खोए हुए चन्द कतरा याद आ गया !

बात तब की है जब मैं ४ थी, कक्षा मे पढ़ता था, हमारे घर से तकरीबन १ किमी की दूरी पर था, हमारा विद्यालय ! ६-७ गाँव के लड़के-लड़किया पढ़ने आते थें, उस विद्यालय मे, क्योंकि उस एरिया मे वही एक ऐसा विद्यालय था, जिसमे ८ वीं तक कक्षाएँ थी ! और भी प्राइमरी विद्यालय थें, जिनमे ५ वीं तक कक्षाएँ थी !

मार्च का महीना था, शादियों का सीजन चल रहा था ! मैं विद्यालय गया तो एक लड़के ने बताया के उसके गाँव मे आज बरात आ रही है ! जिसमे पर्दा वाला सिनेमा (प्रोजेक्टर) चलेगा,
जी हाँ वो लड़का किसी और गाँव से था,....... वो क्या है न के जब भी मेरे या उसके गाँव मे कोई प्रोग्राम-बरात या किसी प्रकार का उत्सव होता जिसमे (VCP या VCR के द्वारा टीवी पर) फिल्में दिखाई जाती तो मैं उसे या वो मुझे सूचित कर देता !
जब उसने उस दिन बताया के पर्दा वाला सिनेमा चलेगा, तो मैं बहुत ही खुश हुआ क्योंकि पर्दे वाले सिनेमा मे देखने से ऐसा लगता, जैसे सिनेमा हॉल मे बैठ के फिल्म देख रहे हो.....सब कुछ बड़ा-बड़ा सा दिखता,

जैसे ही उसने मुझे बताया मैने अपने ३ दोस्तों को जो मेरे मुहल्ले के ही थें, मेने उनको बताया के आज फलना गाँव मे बरात आ रही है ! जिसमे पर्दा वाला सिनेमा चलेगा, बहुत खुश हुए वो भी ये बात सुनके, उस दिन सारा दिन पढ़ाई मे मन नहीं लगा ! बस ये मना रहे थें, के जल्दी शाम हो जाए ताकि पर्दा वाला सिनेमा देखें ! जैसे -तैसे हमने पढ़ाई की जैसे ही छुट्टी हुई, फिर क्या था, हम चार (मैं और मेरे ३ दोस्त ) खुशी-खुशी घर को आ रहे थें !  सच मे उस दिन बहुत खुश थें, हम अब घर पहुचने वाले थें, तभी मुझे याद आया के बाबूजी उन दीनो घर आए हुए थें, छुट्टी पे !
फिर मेरी सारी खुशी जाती रही, मैं अभी यही सोच रहा था, के मेरे १ दोस्त ने कहा के..... शाम को जल्दी-जल्दी खाना खा लेना, और उसी जगह पे हम चारो मिलेंगे जहाँ हमेशा मिलते हैं !
गाँव से बाहर १ बहुत बड़ा (पाकड़) का पेड़ था, जो बहुत पुराना था, तकरीबन १०० साल पुराना, वहीं हम सब खाना खाने के बाद मिलते थें, अगर कहीं जाना होता तो !
उस दिन भी वहीं मिलने के लिए वो कह रहा था......यार मैं नहीं आ पाउँगा, वो न बाबूजी घर आये हुए हैं ! मैने उन लोगों से कहा.......सब मेरी तरफ देखने लगें.....और कहने लगें के फिर हम भी नहीं जायेंगे!
फिर उनमे से १ ने कहा तो क्या हुआ, हम किसी को बताएँगे ही नहीं, शाम होते ही खाना खाने के बाद निकल जाएँगे.....फिर कल की कल सोचेंगे....क्या हुआ अगर मार भी पड़ी तो फिल्म तो देखने को मिलेगा, वो भी पर्दे वाला सिनेमा पर !
जैसे ही उसने पर्दे वाला सिनेमा का नाम लिया मेरा हौसला भी बढ गया ! फिर क्या था शाम को खाना खाने के बाद हम सभी वहीं मिले, उस पेड़ के पास, फिर वहाँ से चल दिए अपने मिसन (पर्दा वाला सिनेमा) देखने ! जब हम वहाँ पहुचे तो अभी सेटिंग हो रही थी, बहुत सारे लोग बैठे हुए इंतेज़ार कर रहे थें, पर्दा वाला सिनेमा चालू होने का ! हम चारों भी सब से आगे बैठ गये ! ताकि कोई बड़ा आदमी हमारे आगे न बैठे जिससे हमें देखने मे दिक्कत हो.....................
फिल्म स्टार्ट हुआ, बड़े-बड़े अक्षरों मे नाम लिख रहा था, "जुर्माना" जो की मिथुन चक्रवर्ती की फिल्म है ! बड़े खुश हुए हम, क्योंकि मिथुन चक्रवर्ती की फिल्में हमे बहुत अच्छी लगती, उनकी फिल्मों मे मार-धाड़ (एक्सन) ज़्यादा होता है.....
अभीं फिल्म आधी भी न चली होगी, के "बाबूजी" पहुँच गये डंडा लेके, रास्ते मे किसी खेत से अरहर का डंडा मिल गया होगा!
पहुँच के चारों-तरफ देखने लगें, हम तो फिल्म देखने मे मसगुल थें ! हमने ध्यान नहीं दिया उनपे, तभी उनकी नज़र पड़ी मुझपे और फिर क्या था ! मेरे पास आयें, और हाथ पकड़ के बाहर लेकर आयें ! मैं तो हताश सा हो गया, के अब करूँ क्या, डर से कांप सा रहा था ! फिर न पूछो दोस्तों जो मेरी धुलाई वहाँ से शुरू हुई, के घर के नज़दीक आके ख़तम हुई ! रोने भी नही दिया जा रहा था मुझे.....बड़ी जम के पिटाई हुई मेरी घर आने के बाद भी वो तो माँ ने बच लिया ! नहीं तो और भी होती......
सुबह जब दोस्तों ने बताया के फिल्म कितनी मस्त थी, और कितना मज़ा आया उन्हे वो फिल्म देख के !  पूरे रास्ते उसी फिल्म की बातें करते विद्यालय जा रहे थें, ये भी न पूछा मुझसे के रात को कितनी पिटाई हुई तेरी एक शब्द तक नहीं पूछा किसी ने................बड़ा दुख हुआ मुझे "बाबूजी" के मार से नहीं, फिल्म अधूरी रह गई..........इसलिए

क्या वक़्त था वो बचपन का, ना कोई चिंता ना कोई दर्द.....बस हर वक़्त मस्ती मे जिए जाओ.....
काश वो वक़्त,वो बचपन और वो अपने दुबारा फिर से लौट आतें............."काश"  

१०/०८/२०१५ @मेरे_अल्फ़ाज़_इंदर

Acct- (IBN_

Monday, August 10, 2015

Tere Ehsas se ("तेरे एहसास से")


"Daa" Kishor Kumar 


Wo SinghNaad Then (वो सिंहनाद थे)


MUbarak Tumhe Ye Watan ho (मुबारक तुम्हे ये वतन हो)



Kashish (कशिश)



जिसे सावरने की खातिर,
      मीटा दी सारी ख्वाहिशो को...!
    आज उसी घर से वो "शख्स",
   बे-दखल कर दिया गया...!! 

Acct- (IBN)


Wade Tod Aaye Wo (वादें तोड़ आये वो)