Tuesday, October 27, 2020

तो मिले

बुझा दे रूह-ए-तीस्नगी वो बरसात तो मिले                                                                                                           किसी मोड़ पे ज़िंदगी से मुलाकात तो मिले


हाँ शौक़ ये भी है सिलसिला गुफ़्तगू का हो
लेकिन, पहले  किसी से  खयालात तो मिले

महसूस कर ही लेंगे उनकी क़ैद-ए-बेवसी
कभी परिंदों सा हमें भी क़ैद-ए-हयात तो मिले

अभीं शामिल न हो "इंदर" इश्क़-ए-कारवाँ मे तुं
पहले, पहले वाले  दर्द से  निज़ात तो मिले

बुझा दे रूह-ए-तीस्नगी वो बरसात तो मिले
किसी मोड़ पे ज़िंदगी से मुलाकात तो मिले

© इंदर भोले नाथ
बागी बलिया, उत्तर प्रदेश