Friday, March 11, 2016

दिल सुलग सा रहा है

इस आज़र्दाह-ए-आलम का, क्या कहना “इंदर”,
बारिश मे भीग के भी दिल सुलग सा रहा है…
…इंदर भोले नाथ…
आज़र्दाह-व्याकुल

वो-प्यार याद आया...

वो-प्यार याद आया...

गुजरें जो गली से उसके,वो-दीदार याद आया
पलते नफ़रतों के दरमियाँ,वो-प्यार याद आया
आँखों से मिलने का वो इशारा करना उसका
फिर करना तन्हा मेरा,वो इंतेजार याद आया
शिकवे लिये लबों पे,बेचैन वो होना मेरा फिर
चुपके से लिपट के उसका,वो इज़हार याद आया
मिल के उससे दिल का,वो फूल सा खिल जाना
न मिलने पे होना खुद का,वो लाचार याद आया
यूँही चलते रहना वो,अपना मिलने का सिलसिला
कभी पतझड़ तो कभी वो बहार याद आया
हर इश्क़ की कहानी मुकम्मल हुई नहीं “इंदर”
हर शाम तन्हाई मे मुझे वो-यार याद आया
गुजरें जो गली से उसके,वो दीदार याद आया
पलते नफ़रतों के दरमियाँ,वो-प्यार याद आया
…इंदर भोले नाथ…