Sunday, February 14, 2016

ढूंढता फिर रहा खुद को...

कहीं गुम-सा हो गया हूँ मैं
क़िस्सों और अफ़सानों मे…
ढूंढता फिर रहा खुद को
महफ़िलों और वीरानों मे…
कभी डूबा रहा गम मे
कभी खुशियों का मेला है…
सफ़र है काफिलों के संग
पाया खुद को अकेला है…
प्यालों मे ढलते,देखा कभी
कभी मीला मयखानों मे…..
ढूंढता फिर रहा खुद को
महफ़िलों और वीरानों मे…
कभी तो रु-ब-रु हो
“ऐ-इंदर” हमसे…
हसरतों की गुज़ारिश
है मिलने की तुमसे…
कभी यहाँ,कभी वहाँ
न जाने ढूँढा,कहाँ-कहाँ…
जहाँ खो गया है तूँ
है वो कौन सी जहाँ…
मीला न तूँ मुझे कहीं
तेरे हर ठिकानों मे…
ढूंढता फिर रहा खुद को,
महफ़िलों और वीरानों मे…
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Acct-इंदर भोले नाथ…..