कण कण अपनी मिट्टी का, है रक्त मे घोल रही
सुनो, हे वीर धरा के माँ धरती तुम से बोल रही
गाड़, ध्वज, तुम छाती पर, जंग का ऐलान करो
क्षणिक भर विलम्ब रहित सहर्ष तुम बलिदान करो
दहल उठे कलेजा रिपु का सिंह सा व्याख्यान करो
उठे शस्त्र जब भी हाथों मे युद्ध तुम घमासान करो
भाल बवाल करे ऐसा लगे राणा की जवानी हो
खड़ग की चाल मे फिर वही झाँसी वाली रानी हो
अस्त्र-शस्त्र नये हो किंतु युद्ध वही पुरानी हो,लगे
वीर शिवाजी की फिर से जाग उठी निशानी हो
बरसो लावे की भाँति ज़ुल्म और अत्याचारों पर
टूट पड़ो तुम शेर की मानिंद देश के गद्दारों पर
सुनो, हे वीर धरा के माँ धरती तुम से बोल रही
गाड़, ध्वज, तुम छाती पर, जंग का ऐलान करो
क्षणिक भर विलम्ब रहित सहर्ष तुम बलिदान करो
दहल उठे कलेजा रिपु का सिंह सा व्याख्यान करो
उठे शस्त्र जब भी हाथों मे युद्ध तुम घमासान करो
भाल बवाल करे ऐसा लगे राणा की जवानी हो
खड़ग की चाल मे फिर वही झाँसी वाली रानी हो
अस्त्र-शस्त्र नये हो किंतु युद्ध वही पुरानी हो,लगे
वीर शिवाजी की फिर से जाग उठी निशानी हो
बरसो लावे की भाँति ज़ुल्म और अत्याचारों पर
टूट पड़ो तुम शेर की मानिंद देश के गद्दारों पर
हाथ मिलाना बारूदों से, शोलों से घबराना मत
याद रहे खानदानी पेशा चलने का अंगारों पर
पृथ्वीराज और राणा का कौशल फिर दिखा डालो
भूल गया है शायद दुश्मन याद फिर दिला डालो
मिट्टी की मोह किये बैठा है मिट्टी मे उसे मिला डालो
रांझा मजनू फिर कभी,अभी अशोक और बिन्दुसार बनो
बहुत हुई अब प्रेम की भाषा, अब गीता का सार बनो
काल डरे जिस महाकाल से वही रुद्र का अवतार बनो
रचो इतिहास फिर वही जो पुरुखों ने कभी रचाई थी
तिलक सुशोभित ललाट पर हवन कुंड की ज्वाला हो
विजय जश्न यूँ हो के गले मे नर मुंड की माला हो
नाच करे पिसाचिनी रण मे,जब जब तुम प्रहार करो
रक्त की नदियाँ बह निकलें,ऐसा तुम नरसंहार करो
~ इंदर भोले नाथ
बागी बलिया, उत्तर प्रदेश
बागी बलिया, उत्तर प्रदेश
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