Saturday, February 26, 2022

वो शहर पढ़ने आई थी...

 
वो नौकरी करने आया था ,वो शहर पढ़ने आई थी
 
 
तनिक  टच  क्या  हुआ  वो   लड़ने  आई थी
उसे मार कामयाबी की सीढ़ी चढ़ने आई थी

वो चुप था,वो थप्पड़ पे थप्पड़ जड़े जा रही थी
लोग  तमाशा  देख रहे थे,  वो लड़े जा रही थी

वो मजबूरियों से सीमित था वो हद्द से गुजरने आई थी
वो  नौकरी करने आया था, वो  शहर  पढ़ने आई थी

वो गर हाथ उठाता तो हंगामा बरस जाता
खड़ा हर शेर वहाँ का उस पे गरज जाता

वो  मर्द था   मर्दानगी का   कायदा   निभा रहा था
वो महिला शशक्तिकरण का फायदा उठा रही थी

वो  माँ  बहनों  के लिए  कमाने  आया था
वो बाप भाईयों के प्रति जहर भरने आई थी

वो नौकरी करने आया था,वो शहर पढ़ने आई थी
वो नौकरी करने आया था,वो शहर पढ़ने आई थी
 
 
नोट : लखनऊ वाले घटना से इसका कोई संबंध नहीं है,
          फिर भी अगर आप सोचते हो तो आप की मर्ज़ी  

 
© इंदर भोले नाथ
बाबा भृगु की नगरी
बागी बलिया, उत्तर प्रदेश
#6387948060




Friday, February 25, 2022

आँख जम के बरस......

तन सुलग रहा है आज शाम,  के आँख  जम के बरस
मुझे ढक रहा है किसी का नाम,के आँख जम के बरस

के बरस  बड़ी देर से  फिर वही  टीस उठी थी दिल में
हाँ  अब  मिल रहा है आराम, के आँख जम के बरस 

तोहमत लगाई थी किसी ने के मैं पत्थर का हो गया हूँ
झूठा  हो रहा है  हर इल्जाम, के आँख जम के बरस
 
 
 
© इंदर भोले नाथ
बाबा भृगु की नगरी
बागी बलिया, उत्तर प्रदेश
#6387948060



 

तेरी कहानी है......

खामोश शाम प्याल-ए-जाम और तेरी कहानी है
तेरी   तस्वीर   तेरा नाम   और   तेरी कहानी है

एक  डर है    मैं  मेरा  वज़ूद  कहीं   गंवा न दूं
सर से पाँव तक तुं ही तमाम और तेरी कहानी है

मैं मालिक हूँ मेरी मर्जी का ,मेरा कुछ भी तो नहीं
तेरा  सफर   तेरा मकाम   और   तेरी कहानी है


© इंदर भोले नाथ
बाबा भृगु की नगरी
बागी बलिया, उत्तर प्रदेश
#6387948060



लानत है.........

मतलबी रिश्तों की यारी, लानत है
है ये कैसी दुनियादारी, लानत है

डँसते हैं,पर दूध पिलाना जायज भी
है ये कैसी जिम्मेदारी , लानत है

वहाँ हुजूर अटरिया रंभा उर्वशी नाचे 
यहाँ जनता फिरे मारी मारी, लानत है
 
 
© इंदर भोले नाथ
बाबा भृगु की नगरी
बागी बलिया, उत्तर प्रदेश
#6387948060
 

शेर

1-
 
ये कौन आया कि फिर नई कहानी दे दी
मुझ मे  फिर  वही शौक़  पुरानी दे दी

दिल अंकुरित हो रहा है किसी दाने सा
कि सुखी ख्वाहिशों को फिर पानी दे दी

2-

बिन यादों के गुजरे शाम, ये हो नहीं सकता
न दुआ न कोई सलाम, ये  हो नहीं सकता

गर होने पे आये तो रूह जिस्म से जुदा कर दूँ
पर दिल से मिटा दूँ तेरा नाम ये हो नहीं सकता
 

© इंदर भोले नाथ
बाबा भृगु की नगरी
बागी बलिया, उत्तर प्रदेश

मैं चलता गया

कि मैं चलता गया वो बुलाता गया
इक चेहरा यूँ मुझ को लुभाता गया

लत्त् ऐसी लगी उसमे खोने की मुझको
मैं खुद को ही खुद से भुलाता गया

परिंदा खाबों का बैठा पलकों पे कभी
कोई पत्थर से उसको उड़ाता गया

मैं उड़ानों की सफर पे था बेशक मगर
वो बारिस वो कश्ती याद आता गया
 
 

© इंदर भोले नाथ
बाबा भृगु की नगरी
बागी बलिया, उत्तर प्रदेश
#6387948060