Friday, October 20, 2017

कहानी मेरी अधुरी ही लिखी थी उसके (रब) दर से,
बेवफा बनाके तुझको,खुद से इल्जाम हटाया है…
…इंदर भोले नाथ
ऐ दिल जरा ठहेर ऐतबार अभी बाकी है,
गुजारिश राहों ने की है इन्तेजार अभी बाकी है …
दबी ख्वाहिश दिल की है वो पुरा तो कर लूं,
इल्तजा आंखों ने की है दिदार अभी बाकी है….
…इंदर भोले नाथ
तुझे चाँद कहूं या आफताब कहूं,
होगी तुझ-सा कोई हूर नहीं…
है नूर भी फिका सा लगे,
पर तुझमे कोई गुरूर नहीं…
…इंदर भोले नाथ
समझ जाता है हर धड़कन,भले ही राज़ लिखता हूं,
कुछ युं सीधा कुछ युं सरल, मैं अल्फाज लिखता हूं…
इंदर भोले नाथ…
हर शख्स यहां अधुरा, हर रिश्ता बिखरा हुआ सा है,
आजकल मिजा़ज मेरे शहेर का कुछ उखड़ा हुआ सा है…
…इंदर भोले नाथ