Saturday, May 4, 2019

शायरी (वो तासीर कहाँ...

वो "मीर" सा अब पीर कहाँ 
वो "ग़ालिब" सा नादिर कहाँ
बयां जो दर्द है उन अल्फाजों में 
अब के "हर्फ़" में वो तासीर कहाँ... 

नादिर=दुर्लभ, अमूल्य, अनूठा

शायरी ("ग़ालिब" दिखता है...

इस क़दर इश्क़ में अब दर्द बिकता है,
हर शख्स मे अब "ग़ालिब" दिखता है...

शायरी (इश्क़ है या अवारी है....

ये जो छाई चंद दिनों से खुमारी है 
ऐ-दिल बता इश्क़ है या अवारी है....

शायरी (मैं कैसे तुझे पाऊं...

रु-ब-रु रहूँ या खुद से गुमशुदा हो जाऊं
ऐ - ज़िंदगी बता तूं, मैं कैसे तुझे पाऊं...