Saturday, September 26, 2015

हर हक़ीम यहाँ घीरा बैठा, 
है दर्द की अंबार मे....
और मैं लिए दर्द-ए-दिल निकला, 
मरहम की तलाश में....

Acct- IBN_



Saturday, September 19, 2015

ज़रूरी तो नहीं दर्द-ए-शायरी,
लिखने वाला दिल,मोहब्बत मे ही टूटा हो...
दर्द और भी बेशुमार हैं,इस जमाने मे,
जो काफ़ी हैं,दर्द-ए-अल्फ़ाज़ बनाने मे...



जलें सौ मरतबा,
शमा की चाह मे परवानें,
कभी हुई हस्ती फन्ना उनकी,
कभी बिखर गये आशियानें.....!!


कोई तो ख़लिश है,इस गुजरती शाम मे,
जब भी आती है,दिल तड़प सा जाता है...



Thursday, September 17, 2015

कुछ इस कदर से अब,तुझे अपना समझने लगें,
खुद का ख़याल भी अब,बस तेरे लिए रखते हैं.....

Acct- IBN_


Monday, September 14, 2015

भीगती है रूह-ए-बंजर बस,
तेरी यादों के साये मे...
ये मुलाकात तो बस जिस्म की,
प्यास मिटाती है....

मुद्दतो बीते.....तेरे दिदार को ऐ-इंदर,


के अब तो ख़यालों मे भी तेरा चेहरा
फीका सा पड़ गया है.....!!


हर आँसू के छलकते पैमाने पे,तेरा नाम लिख दिया,
हर दर्द से निकली आह पे, तेरा नाम लिख दिया...!
तूँ फ़िक्र ना कर हमारी "ज़िंदगी" का "इंदर",
तेरी यादों के नाम, मैने "ज़िंदगी" तमाम लिख दिया...!!


Sunday, September 13, 2015

हिन्दी हमारी आन, हिन्दी हमारी शान,
हिन्दी से बनी है,हम भारतीयों की पहचान...
हिन्दी हमारी मातृभाषा, है देश हिन्दुस्तान....!!
हिन्दी दिवस की हार्दिक बधाई....आप सभी को

Saturday, September 12, 2015

तन्हाइयों की आदत सी हो गयी है,
तमन्नाओ की शहादत सी हो गयी है...!
रहना चाहता हू,अब अकेले ही हरपल,
महफ़िलों से अब शिकायत सी हो गयी है...!!

यादगार लम्हें :.....
अर्ज़ किया है :-
वो भी क्या दौर था, जब खुशियों का मज़ा डबल था,
वाह वाह वाह वाह.....
वो भी क्या दौर था, जब खुशियों का मज़ा डबल था,
प्यार के लिए माँ की गोद, मार के लिए हवाई चप्पल था....

कुछ पूरी, कुछ अधूरी है कहानी अपनी,
कुछ पाने की चाह मे,बीत रही जवानी अपनी..!
न जाने कब से चल रहें, मंज़िल की तलाश में,
कुछ कट चुकी, कुछ बाकी है जिंदगानी अपनी...!!

Monday, September 7, 2015

इस तन्हाई मे कुछ....तो बात है,
न जाने क्यूँ लगे....कोई साथ है...
सदियों से ढूंढते रहें,जिसे दर-बदर,
बनके साया वो चली,हर पहर साथ है...!!

Sunday, September 6, 2015


काश.......तेरी यादों की परछाई न होती,
हर महफ़िल मे इस क़दर रुसवाई न होती,
हम भी होते हर वक़्त ज़िंदगी से रूबरू,
ऐ-खुदा गर तूने मोहब्बत जैसी चीज़ बनाई न होती...!!

#मेरे_अल्फ़ाज़_इंदर
Acct-IBN_



Saturday, September 5, 2015

वही अपने सारे हैं......!!
चाँद भी वही तारे भी वही..!
वही आसमाँ के नज़ारे हैं...!!
बस नही तो वो "ज़िंदगी"..!
जो "बचपन" मे जिया करते थे...!!
वही सडकें वही गलियाँ..!
वही मकान सारे हैं.......!!
खेत वही खलिहान वही..!
बागीचों के वही नज़ारे हैं...!!
बस नही तो वो "ज़िंदगी"..!
जो "बचपन" मे जिया करते थे...!!

#मेरे_अल्फ़ाज़_इंदर
Acct-IBN_



हर दर्द से दोस्ती,
हर गम से याराना है.....!
तभी है शौक़ शायरी का,
और महफ़िल शायराना है....!!


Friday, September 4, 2015


चल कहीं दूर....चलें ऐ-ज़िंदगी,
इस जहाँ से परे.....,
इक छोटा सा आशियाँ बनाएँगे वहाँ,
जहाँ तूँ मैं और दूर.......तलक,
बस खामोशी ही खामोशी हो.....!!
Acct-IBN_
#मेरे_अल्फ़ाज़_इंदर



हे कान्हा....


हे कान्हा...अश्रु तरस रहें, 
निस दिन आँखों से बरस रहें,
कब से आस लगाए बैठे हैं, 
एक दरश दिखाने आ जाते...
बरसों से प्यासी नैनों की, 
प्यास बुझाने आ जाते...
बृंदावन की गलियों मे, 
फिर रास रचाने आ जाते...
राधा को दिल मे रख कर के, 
गोपियों संग रास रचा जाते...
कहे दुखियारी मीरा तोह से, 
मोहे चरणन मे बसा जाते..
कब से आस लगाए बैठे हैं, 
एक दरश दिखाने आ जाते...

Acct- IBN_



Tuesday, September 1, 2015

"9:45 की लोकल"

"9:45 की लोकल"


ऑटो स्टैंड से दौड़ता हुआ , मैं जैसे ही रेलवे स्टेशन पहुँचापता चला 9:45 की लोकल जा चुकी है !
मेरे घर से तकरीबन 9 .कि.मिदूर पर है रेलवे स्टेशनछोटा सा स्टेशन है,लोकल ट्रेन के अलावा 1-2 एक्शप्रेस ट्रेन की भी स्टोपीज़ हैमैं स्टेशन मास्टर के पास गया और पूछा सर बनारस के लिए कोई ट्रेन है ! स्टेशन मास्टर ने बताया दोपहेर 2:45 पर 1 एक्सप्रेस हैवो भी 1 घंटा देर से है ! 10 बजने वाला थातकरीबन 6 घंटे मुझे ट्रेन के लिए इंतेजारकरना पड़ेगा ! रेलवे स्टेशन से तकरीबन 100 मीटर की दूरी पर हैबस स्टैंड मैने सोचा चलो देखते है शायद कोई बस मिल जाए बनारस के लिए ! वहाँ जाकर पता चला के बनारस के लिए सुबह 8 बजे और शाम 5 बजे ही बस मिलती हैवापस रेलवे स्टेशन आकर मैं एक पेड़ के नीचे चबूतरा सा बना हुआ थाजहाँ 3 बुजुर्ग जो वहीं आस-पास के रहने वालेथेबैठे बाते कर रहे थेमैं भी उन्ही के बगल मे जाकर बैठ गया,
अभी 15-20 मिंन्ट ही गुज़रे होंगेतभी 1 औरत जिनकी उम्र तकरीबन 50-55 साल की होगीउन्होने मुझे हाथ से इशारा कर के बुलायामैने सोचा किसी और को बुला रही हैंमैने ध्यान नही दियादुबारा फिर उन्होने बोला "बेटा ज़रा यहाँ आनामैने सोचा यहाँ मेरी उम्र का कोई और तो दिख नही रहाशायद मुझे ही बुला रही है,  पर मैं तो इन्हे पहचानतानही ? हो सकता है ये मुझे पहचानती होये सोचकर मैं उनके पास गया,
माफ़ कीजिएगा मैने आपको पहचाना नही क्या आप मुझे पहचानती हैमैने पास जाकर ये पूछा उन्होने कहा बेटा मैं (*******) गाव की रहने वाली हूमेरे दो बेटे हैं बड़े बेटे की शादी हो गयी है उसके दो लड़के 1 लड़का 1 लड़की हैदिली मे अपने बीबी और बचों के साथ रहता हैदूसरा बेटा तुम्हारी ही उम्र का है, 3-4 दिन हुए वो भी भाई के पास दिल्ली गयाहुआ हैमुझे झुंझलाहट सा महसूस हुआ मैने कहा माजी आपने मुझे ये सब बताने के लिए यहाँ बुलायानही बेटा वो मैं अपने पत्ती के लिए दवा लेने आई थी उनकी दवा यही से चलता हैदवा लेके मैं ऑटो से बस स्टैंड  रही थी,! मेरे पास 1 थैला था जिसमे कुछ समान थेऑटो वाले को किराया देकर मैने पैसे वाला बेग उस  थैले मे रख दिया, जब मैं ऑटो से उतरी वो थैला ऑटो मे ही छूट गया,! जब मैं बस स्टैंड आई फिर मुझे ध्यान आयावापस जाके देखा ऑटो वाला वहाँ नही था बेटा मेरा घर यहाँ से तकरीबन 25 किमी दूर हैमेरे पास पैसे नही हैं 35 रुपया बस का किराया लगता हैबेटे अगर तुम्हारे पास  पैसे हो तो मुझे 35 रुपया दे दो ! जिस डॉकटर के यहाँ से दवा चलता है वहाँ जाने के लिए भी मेरे पास पैसे नही है,
पहले मुझे लगा झूठ बोल रही है, फिर सोचा कपड़े तो अच्छे पहने है, और देखने मे भी सीधी- साधी और सभ्य औरत मालूम हो रही थी, एक हाथ मे पोलिथीन का बेग था जिसमे टैब्लेट्स और कुछ कैप्सूल्स दिख रहे थे! मैने पर्स से 50 रुपया निकाला और उनकी तरफ बढ़ाया, उन्होने कहा बेटा मुझे सिर्फ़ 35 रुपया दे दो, मैने कहा माजी रख लो मेरे पास खुले नही है, पैसे लेते हुए बोली बेटा सुखी रहो भगवान तुम्हारी हर इच्छा पूरी करे, फिर उन्होने ने अपने घर का पता बताया और बोली बेटे कभी उधर आओगे तो मुझसे ज़रूर मिलना, मैने कहा ठीक है माजी, फिर वो बस स्टैंड की ओर जाने लगी,
फिर मेरे दिमाग़ मे ग़लत ख्याल आया मैने उसका पीछा किया, के कहीं झूठ तो नही बोल रही, फिर मैने देखा वो बस स्टैंड की तरफ गयी और एक बस मे चढ़ गयी, मुझे अपने आप पे बड़ा गुस्सा आया, फालतू मे मैने शक किया ! फिर मैं वापस स्टेशन मे आया और ट्रेन का इंतेजार करने लगा, 3 बज़कर 50 मिंट पर ट्रेन आई, टिकेट तो मैने पहले ही ले रखा था, रात को 9 बजे मैं बनारस पहुच गया, पूरी रात स्टेशन पर ही रहा, सुबह 9:30 बजे था, मेरे इंटरव्यू का टाइम मैं 9 बजे ही पहुच गया, मुझे नौकरी मिल गयी ! मैने अपना resume naukari.com पे डाल रखा था, वही से इंटरव्यू के लिए कॉल आया था !
2 साल बाद मेरे एक दोस्त की शादी थी, जो मेरे साथ ही काम करता था, बस से उतरने के बाद ऑटो द्वारा मैं दोस्त के घर की तरफ जा रहा था, तभी उसी ऑटो मे जिसमे मैं बैठा था, दो औरत चड़ी, एक की उम्र तकरीबन 50-55 के करीब होगा, और दूसरी 20-25 साल की होगी, उसकी गोद मे एक बचा भी था, जो 2-3 महीने का होगा, ऑटो चलने लगीवो बूढ़ी औरत बड़े ध्यान से मुझे देख रही थी, जब मैं उसकी तरफ देखा तो जैसे वो मुझे जानती हो वैसे मुझे देखकर हसने लगी, मुझे अजीब सा लगा, मैने ध्यान नही दिया, फिर देखा वो मेरी तरफ ही देख रही थी, मैं पूछने ही वाला था, के क्या आप मुझे जानती है, तभी उसने कहा बेटा तुम वही हो ना जिसने मुझे 50 रुपये दिए थे, जब मेरा पैसे वाला थैला,ऑटो मे छूट गया था, जैसे ही उन्होने ये बात कही मुझे याद आ गया, फिर मैने कहा वो आप ही है, उन्होने कहा हाँ बेटा वो मैं ही हू,  ये मेरी बहू है दूसरे लड़के की पत्नी, मैने कहा वही जो दिल्ली नौकरी के लिए गया था बोली हाँ उसी की पत्नी है, और ये उसका बेटा है, इसी को लेकर डॉक्टर के पास गयी थी, हल्का सा बुखार है ! बहुत सारी बातें हुई, मेरे बारेपूछा क्या करते हो मैने बताया अपने बारे मे के 2 साल से नौकरी कर रहा हू, बनारस मे ! जिस दिन आप मुझे स्टेशन पे मिली थी न उस दिन मैं बनारस ही जा रहा था, इंटरव्यू के लिए ! बस गया और आपकी कृपा से नौकरी लग गयी, वहीं 2 साल से नौकरी कर रहा हू! फिर उन्होने अपने घर चलने को बहुत जिद्द किया,! मैने कहा माजी मेरे दोस्त की शादीहै, उसी के घर जा रहा हू, जो (******) गाव मे पड़ता है, उन्होने बताया जिस गाव मे जा रहे हो, वहाँ से हमारा गाव 4 किमी दूर है, कल शादी बीत जाए, परसों हमारे घर ज़रूर आना बेटे ! मैने कहा ठीक है माजी, मेरा स्टेशन आने वाला है , मैंने कहा ठीक है माजी मैं चलता हू, उन्होने अपने बैग से 500 रुपये का निकाला और मेरे पॉकेट मे डालने लगी! मैनेबहुत मना किया, पर वो नही मानी, बोली रख लो बेटा तुम मेरे बेटे जैसे हो और मेरे पॉकेट पैसा डाल दिया! मै वो पैसा पॉकेट से निकाल कर बचे के हाथ मे रखने लगा, उनके माना करने पर मैने कहा जब मैं आपके बेटे जैसा हू तो आपका बेटा मेरे भाई जैसा हुआ, और उसका बेटा मेरा भतीजा हुआ, इसलिए ये पैसा मैं अपने भतीजे को दे रहा हू ! ये कह करपैसा मैने बचे के हाथ मे थमा दिया ! उन्होने कहा ठीक है, लेकिन परसों तुम हमारे यहाँ ज़रूर आना बेटा, हम तुम्हारा इंतेजार करेंगे, और अपने बहू को बोली की बहू अपना मोबाइल नम्बर दे दो इनको, मोबाइल नंबर मैने लिख लिया, फिर मैं ऑटो से उतर गया,
दोस्त के घर पहुँच गयाअगले दिन शादी बीत जाने पर ! मैं और मेरा दोस्त उस गाव मे गयेपता पूछते हुए पहुँच गयेआगे बड़ा सा दालान थाउस दालान से ही सट्टे पीछे की तरफ तकरीबन 10-12 घर थे चारो तरफ से बाउंड्री दिया हुआ थाबड़ा सा लोहे का गेट लगा हुआ थागेट खुला था हम अंदर चले गयेबाइक खड़ा कर के दालान मे गयेसाइडके एक कमरे मे तकरीबन 60-65 साल के एक बुजुर्ग बैठे थे ! हमे देख के वो कमरे से बाहर आएऔर हमे बैठने का इशारा कियादालान मे 7-8 कुर्सिया रखी हुई थीहम बैठ गये ! फिर वो घर की तरफ आवाज़ लगते हुआ बोलें "मनोज" (शायद उनके बेटे का नाम होदो लोग आए हैमीठा और पानी लाना अंदर से एक लड़का आया जो मेरे ही उम्र काथा,  आया हमे देख कर फिर अंदर चला गया ! थोड़ी देर बाद एक प्लेट मे 4 लड्डू,एक जग मे पानी और 2 गिलास लेकर बाहर आयालड्डू हमारे पास रख के गिलास मे पानी डालते हुए बोला पानी पीजिए हम पानी पीने लगेफिर वो अंदर की तरफ आवाज़ लगाते हुए बोला माँ चाय बनाना !
हमारे पानी पीने के बाद हमसे पूछा कहाँ से आए हैं, आप लोग और किससे मिलना है ! मैने कहा जी मेरा नाम "इंदरहैवो माजी से मिलना था ! इंदर ? कहीं आप आप वो तो नही जो रेलवे स्टेशन पर मेरी माँ से.....! मैने कहा जी मैं वही हूफिर क्या थाइतना सुनना था के उसने मुझे गले लगा लियाबोला बहुत-बहुत धन्याबाद भाई साहबऔर फिरभागता हुआ अंदर की तरफ गया !
   अंदर की तरफ से वो ही औरत आईंनमस्ते माजीखुश रहो बेटे आओ अंदर आओ,और हमे अंदर ले गयीबहू फटाफट दो खाना लगानाहमने माना कियामाजी हम खाना खा के आए हैपर वो हमारी एक  सुनीखाना लग गयाखाना खाने के बाद 2 घंटे तक हम बाते करते रहेजिस तरह से वो पूरा परिवार  हमारे साथ बर्ताव कर रहे थेलग रहा थाजैसे मैने उन पर बहुत बड़ा एहसान किया होउस दिन मुझे अपने आप पर बड़ा गर्व महसूस हो रहा था ! और साथ ही उस दिन मुझे एक बात का एहसास हुआके चाहे इंसान कितना ही पैसे वाला क्यों ना हो पर "मजबूरी हर इंसान को मजबूर कर देती है" ! तभी तो वो औरत मुझसे मात्र 35 रुपये माँगने पर बिवस हो गई थीजिसके घर और खेतों मे 100रूपये रोजाना काम करने वाले  जाने कितने मजदूर काम कर रहे थें  !
हमारे बहुत कहने बाद उन्ह लोगों ने हमे जाने की इजाज़त दीमनोज गाव के बाहर तक हमे छोड़ने आयामेरा मोबाइल नंबर लेते हुए बोला भाई साहब कभी भी कोई काम होया किसी चीज़ की ज़रूरत पड़े बस हमे एक कॉल कर देनाहमे बहुत खुशी होगीके हम आपके कुछ काम  सकें अपना नंबर भी हमे दिया,
फिर वहाँ से हम चल दिए,  उस दिन दोस्त के घर ठहराअगले दिन अपने घर  गया !                                                                                                                                         
                                                                                                         “ख़त्म”

दोस्तो कभी भी कोई मजबूर और लाचार इंसान आप से मदद माँगेतो आप उसकी मदद ज़रूर करना ! क्या पता वो इंसान सच मे मजबूर हो और इतने लोगों के बीच सिर्फ़ आपके पास आस लगा के आया हो आप से मदद माँगने ! कभी भी किसी ऐसे मजबूर इंसान को नज़र अंदाज़ नही करना,


Writer      :   इंदर”        

Acct- (IBN_