जलने दे चिराग ए दिल तुं सुनता क्यूँ नहीं
ऐ सितमगर बरसात तुं थमता क्यूँ नहीं
खुदा ए खल्क़ का वासिंदा फकत मैं ही तो नहीं
यहाँ और भी हैं मुझ सा उनपे बरसता क्यूँ नहीं
© इंदर भोले नाथ
इंदर भोले नाथ....... आधुनिक हिंदी साहित्य से परिचय और उसकी प्रवृत्तियों की पहचान की एक विनम्र कोशिश : भारत
No comments:
Post a Comment