मुझे हिज्र की रातों का इम्तिहान लेना है
इक ख़्वाब जो आखों मे सजाये बैठे हैं
वो निशानी जो किताबों मे छुपाये बैठै हैं
तेरी तसवीर फिर हाथों में थाम लेना है
मुझे हिज्र की रातों का इम्तिहान लेना है
वो खत जिन्हे इस क़दर महफूज़ रखा है
कोई देखे तो कहे क्या खूब रखा है
वो हर लफ्ज़ पढ़के सब्र से काम लेना है
मुझे हिज्र की रातों का इम्तिहान लेना है
Continue.......
©इंदर भोले नाथ
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