Tuesday, May 16, 2023

रोने की तलब थी रोया न गया

रोने की तलब थी रोया न गया
तकिया अश्क़ों से भिगोया न गया

पुरी रात दिवारों से बातें की हमने
तेरी याद मे रात फिर सोया न गया

कम्बख्त दिल भी बंजर जमीं हो गया है
तेरे बाद फसल कोई बोया न गया

कैसे कपड़ों की तरह लोग बदलते हैं रिश्तें
हमसे तेरी खुशबू बदन से धोया न गया

भटकी है रूह भी उसकी तलाश में इंदर
अफसोस मर के भी चैन से सोया न गया

~ इंदर भोले नाथ
बागी बलिया उत्तर प्रदेश