Wednesday, April 27, 2016

वो चाँद कभी...

ये सितारें जो युं इतरा रहे हैं आज
जिस चाँद की रौशनी पे
शायद इन्हें खबर नहीं है
वो चाँद कभी हमारा हुआ करता था
… इंदर भोले नाथ…
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Sunday, April 24, 2016

खूबसूरत और पाक...

खूबसूरत और पाक है ये मोहब्बत
दो जिस्म इक जां है ये मोहब्बत
मुकम्मल हो जाती है,ज़िंदगी इसमे
दिल की चाहत,रूह की प्यास है ये
मोहब्बत……
…इंदर भोले नाथ…
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Saturday, April 16, 2016

तेरा ज़िक्र

तेरा ज़िक्र जब भी हुआ मेरे फसाने मे
मेरी वो हर शाम गुज़री मयखाने मे…
…इंदर भोले नाथ…

इक वक़्त था

इक वक़्त था मैं ठहरा हुआ सा
तूँ क्या मीली ज़िंदगी चल पड़ी
…इंदर भोले नाथ…

महेज इक

महेज इक इत्तेफ़ाक था,
तेरी मुलाक़ातों का वो सिलसिला
वरना यूँ यादों के ज़रिये,
हमारी ज़िंदगी तो ना कटती…
…इंदर भोले नाथ…
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क्या तारीफ करूँ

क्या तारीफ करूँ,उस गुल की मैं
जिसकी खुश्बू से,निखरा ये गुलशन है
…इंदर भोले नाथ…
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Thursday, April 14, 2016

कामाख्या शक्तिपीठ














कामाख्या शक्तिपीठ गुवाहाटी (असम) के पश्चिम में 8 कि.मी. दूर नीलांचल पर्वत पर स्थित है. माता के सभी शक्तिपीठों में से कामाख्या शक्तिपीठ को सर्वोत्तम कहा जाता है. माता सती के प्रति भगवान शिव का मोह भंग करने के लिए भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से माता सती के मृत शरीर के 51 भाग किए थे. 
जिस-जिस जगह पर माता सती के शरीर के अंग गिरे, वे शक्तिपीठ कहलाए. कहा जाता है कि यहां पर माता सती का गुह्वा मतलब योनि भाग गिरा था, उसी से कामाख्या महापीठ की उत्पत्ति हुई. कहा जाता है यहां देवी का योनि भाग होने की वजह से यहां माता रजस्वला होती हैं.
कामाख्या शक्तिपीठ चमत्कारों और रोचक तथ्यों से भरा हुआ है. यहां जानिए कामाख्या शक्तिपीठ से जुड़े ऐसे ही 6 रोचक तथ्य:
1. मंदिर में नहीं है देवी की मूर्ति: इस मंदिर में देवी की कोई मूर्ति नहीं है, यहां पर देवी के योनि भाग की ही पूजा की जाती है. मंदिर में एक कुंड सा है, जो हमेशा फूलों से ढका रहता है. इस जगह के पास में ही एक मंदिर है जहां पर देवी की मूर्ति स्थापित है. यह पीठ माता के सभी पीठों में से महापीठ माना जाता है.
2. यहां माता हर साल होती हैं रजस्वला: इस पीठ के बारे में एक बहुत ही रोचक कथा प्रसिद्ध है. कहा जाता है कि इस जगह पर मां का योनि भाग गिरा था, जिस वजह से यहां पर माता हर साल तीन दिनों के लिए रजस्वला होती हैं. इस दौरान मंदिर को बंद कर दिया जाता है. तीन दिनों के बाद मंदिर को बहुत ही उत्साह के साथ खोला जाता है.
3. प्रसाद के रूप में मिलता है गीला वस्त्र: यहां पर भक्तों को प्रसाद के रूप में एक गीला कपड़ा दिया जाता है, जिसे अम्बुवाची वस्त्र कहते हैं. कहा जाता है कि देवी के रजस्वला होने के दौरान प्रतिमा के आस-पास सफेद कपड़ा बिछा दिया जाता है. तीन दिन बाद जब मंदिर के दरवाजे खोले जाते हैं, तब वह वस्त्र माता के रज से लाल रंग से भीगा होता है. बाद में इसी वस्त्र को भक्तों में प्रसाद के रूप में बांटा जाता है.
4. लुप्त हो चुका है मूल मंदिर: कथा के अनुसार, एक समय पर नरक नाम का एक असुर था. नरक ने कामाख्या देवी के सामने विवाह करने का प्रस्ताव रखा. देवी उससे विवाह नहीं करना चाहती थी, इसलिए उन्होंने नरक के सामने एक शर्त रखी. शर्त यह थी कि अगर नरक एक रात में ही इस जगह पर मार्ग, घाट, मंदिर आदि सब बनवा दे, तो देवी उससे विवाह कर लेंगी. नरक ने शर्त पूरी करने के लिए भगवान विश्वकर्मा को बुलाया और काम शुरू कर दिया. 
काम पूरा होता देख देवी ने रात खत्म होने से पहले ही मुर्गे के द्वारा सुबह होने की सूचना दिलवा दी और विवाह नहीं हो पाया. आज भी पर्वत के नीचे से ऊपर जाने वाले मार्ग को नरकासुर मार्ग के नाम से जाना जाता है और जिस मंदिर में माता की मूर्ति स्थापित है, उसे कामादेव मंदिर कहा जाता है. मंदिर के संबंध में कहा जाता है कि नरकासुर के अत्याचारों से कामाख्या के दर्शन में कई परेशानियां उत्पन्न होने लगी थीं, जिस बात से क्रोधित होकर महर्षि वशिष्ट ने इस जगह को श्राप दे दिया. 
कहा जाता है कि श्राप के कारण समय के साथ कामाख्या पीठ लुप्त हो गया.
5. 16वीं शताब्दी से जुड़ा है मंदिर का इतिहास: मान्यताओं के अनुसार, कहा जाता है कि 16वीं शताब्दी में कामरूप प्रदेश के राज्यों में युद्ध होने लगे, जिसमें कूचविहार रियासत के राजा विश्वसिंह जीत गए. युद्ध में विश्व सिंह के भाई खो गए थे और अपने भाई को ढूंढने के लिए वे घूमत-घूमते नीलांचल पर्वत पर पहुंच गए. 
वहां उन्हें एक वृद्ध महिला दिखाई दी. उस महिला ने राजा को इस जगह के महत्व और यहां कामाख्या पीठ होने के बारे में बताया. यह बात जानकर राजा ने इस जगह की खुदाई शुरु करवाई. खुदाई करने पर कामदेव का बनवाए हुए मूल मंदिर का निचला हिस्सा बाहर निकला. राजा ने उसी मंदिर के ऊपर नया मंदिर बनवाया. 
कहा जाता है कि 1564 में मुस्लिम आक्रमणकारियों ने मंदिर को तोड़ दिया था. जिसे अगले साल राजा विश्वसिंह के पुत्र नरनारायण ने फिर से बनवाया.
6. भैरव के दर्शन के बिना अधूरी है कामाख्या यात्रा: कामाख्या मंदिर से कुछ दूरी पर उमानंद भैरव का मंदिर है,उमानंद भैरव ही इस शक्तिपीठ के भैरव हैं. यह मंदिर ब्रह्मपुत्र नदी के बीच में है. कहा जाता है कि इनके दर्शन के बिना कामाख्या देवी की यात्रा अधूरी मानी जाती है. कामाख्या मंदिर की यात्रा को पूरा करने के लिए और अपनी सारी मनोकामनाएं पूरी करने के लिए कामाख्या देवी के बाद उमानंद भैरव के दर्शन करना अनिर्वाय है.
7. तंत्र विद्या का सबसे बड़ा मंदिर: कामाख्‍या मंदिर तंत्र विद्या का सबसे बढ़ा केंद्र माना जाता है और हर साल जून महीने में यहां पर अंबुवासी मेला लगता है. देश के हर कोने से साधु-संत और तांत्रिक यहां पर इकट्ठे होते हैं और तंत्र साधना करते हैं. माना जाता है कि इस दौरान मां के रजस्‍वला होने का पर्व मनाया जाता है और इस समय ब्रह्मपुत्र नदी का पानी तीन दिन के लिए लाल हो जाता है.

Wednesday, April 13, 2016

बरसों से

बरसों से इक अजीब सा रिश्ता
बन गया है इन दीवारों से
कभी-कभी समझ नहीं पाता
ये आँखें रात का इंतेजार सोने या
इन दीवारों से रु-ब-रु होने के लिये
करती हैं….
…इंदर भोले नाथ…
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Tuesday, April 12, 2016

तेरे हुस्न को सजाने मे

क्या तारीफ करूँ मैं तेरी
अल्फाज़ों से
कोई लफ़्ज नहीं बचा
मेरे खजाने मे
रब भी सौ मर्तबा
टूटा होगा
तेरे हुस्न को सजाने मे
…इंदर भोले नाथ…
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Monday, April 11, 2016

ज़रिया है…

सिमटी मेरी दुनिया
तेरे बाहों के दरमियाँ
तूँ मेरी दुनिया ही नहीं
मेरे जीने का ज़रिया है…
…इंदर भोले नाथ…
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Monday, April 4, 2016

है आरज़ू यही अब

है आरज़ू यही अब
यूँ ज़िंदगी बसर हो
रहें काफिलों के संग
पर तन्हा सफ़र हो
…इंदर भोले नाथ…
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इतना मुश्किल भी नहीं

इतना मुश्किल भी नहीं “इंदर”
अल्फाज़ों को अक्स देना
उल्फ़त-ए-मंज़िल के किनारों तक
गर इश्क़ न पहुँचा हो…
…इंदर भोले नाथ…
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अरसा गुजर गये

अरसा गुजर गये हमें
मुस्कराना भूले हुए
है ज़िंदगी अजीब तूँ
हमें रुलाना नहीं भूली
…इंदर भोले नाथ…
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Saturday, April 2, 2016

Friday, April 1, 2016

ख्वाबों की तरह..

ख्वाबों की तरह रुख्सत सी हुई
“ज़िंदगी” तूँ जब अब्सारों से…
है धुंधला सा हुआ चिराग-ए-दिल
राह-ए-उल्फत के नज़ारों से…

…इंदर भोले नाथ…
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