इक आस है, जो खास है
आँखों में इक नमी सी है
हाँ मैं मुकम्मल हूँ लेकिन
कहीं तो कुछ कमी सी है
कोई तो है जो न गुजरा है
मुझमें अब भी वो ठहरा है
मैं उसे जुदा कर भी देता,वो
जीने के लिये लाज़मी सी है
©इंदर भोले नाथ
आँखों में इक नमी सी है
हाँ मैं मुकम्मल हूँ लेकिन
कहीं तो कुछ कमी सी है
कोई तो है जो न गुजरा है
मुझमें अब भी वो ठहरा है
मैं उसे जुदा कर भी देता,वो
जीने के लिये लाज़मी सी है
©इंदर भोले नाथ