Wednesday, March 6, 2024

उसे कोई सूचित करो

 


दरियाफ़्त कर लेते

घड़ी दो घड़ी भर के लिए मुलाक़ात कर लेते
दिल मे उभर रहे ख़यालों से सवालात कर लेते

तुम्हें शिकायत है  कि  बंद  किताब सा हूँ,  मैं 
कम से कम मुझे तनिक सा दरियाफ़्त कर लेते

कर लेते कि करने से कुछ असर ही हो जाता 
असर हो जाता ऐसा कुछ करामात कर लेते


©® इंदर भोले नाथ
बागी बलिया, उत्तर प्रदेश
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धीर धरा मन धीर धरा

 "धीर धरा मन धीर धरा"

हौले हौले मर जइहें पीर जिया के भर जइहें
बढ़ जइहें कदम,बिसार के सब
तोड़ पाँव के,जंजीर धरा
धीर धरा मन धीर धरा
न नयन नियरे नीर धरा
जग से छुपा के जतन से
आभूषण नियन पीर धरा
धीर धरा... 
काग न करिहें 
आवन के चर्चा
ना संदेश कबूतर ले अइहें
अइहें ना उ मरहम बन के
ना हृदय में बिरह के तीर धरा
धीर धरा....
सच के पाँव में रस्सी बांध
झूठ के संग दौड़ावत हैं
अंधेर नगरी चौपट राजा
सच में होत कहावत है
गिरगिट नियन रंग बदल के
बढ़ जा जग के संग बदल के
न्याय नीति और सभ्यता के
मोटरी अब न सिर धरा
धीर धरा मन धीर धरा
न नयन नियरे नीर धरा

©® इंदर भोले नाथ
बागी बलिया, उत्तर प्रदेश

Sunday, October 29, 2023

सुन ले तो अच्छा है दोबारा पुकार नहीं सकता
मैं, मजबूर हूँ आदत से  रट्टा  मार नहीं सकता

हाँ लाज़मी है हमसफर का सफर में होना,किन्तु
ऐसा नहीं है कि मैं सफ़र तन्हा गुजार नहीं सकता

© इंदर भोले नाथ
बागी बलिया उत्तर प्रदेश

Tuesday, May 16, 2023

रोने की तलब थी रोया न गया

रोने की तलब थी रोया न गया
तकिया अश्क़ों से भिगोया न गया

पुरी रात दिवारों से बातें की हमने
तेरी याद मे रात फिर सोया न गया

कम्बख्त दिल भी बंजर जमीं हो गया है
तेरे बाद फसल कोई बोया न गया

कैसे कपड़ों की तरह लोग बदलते हैं रिश्तें
हमसे तेरी खुशबू बदन से धोया न गया

भटकी है रूह भी उसकी तलाश में इंदर
अफसोस मर के भी चैन से सोया न गया

~ इंदर भोले नाथ
बागी बलिया उत्तर प्रदेश

Saturday, February 18, 2023

महाभारत युद्ध........

नृत्य काल कर रहा,भुजाओं में दो सर लिये
रक्त पी रही पिशाचनी हाथ मे खप्पर लिये
रणभूमि भी सनी हुई है रक्त की आगोश में
कुरुक्षेत्र भी खड़ा है शांत गोद में समर लिये

बाण सा है दौड़ रहा धमनियों का खून भी
विवेकपूर्ण भाव हैं तो जीत का जुनून भी
चेतना अचेत हुई रुदन और विलाप से
बारी बारी मिट रहे हैं पाप और पुण्य भी

हर कक्ष का यक्ष ब्याकुल और अधीर है
दूत जो हैं आ रहें मौत की खबर लिये
नृत्य काल कर रहा,भुजाओं में दो सर लिये
रक्त पी रही पिशाचनी हाथ मे खप्पर लिए 

कर्ण की ध्वजा गिरी अर्जुन के प्रहार से
दुर्योधन की गदा थकी भीम के हुँकार से
कुरु सैन्य छिन्न भिन्न किये नकुल और सहदेव ने
अधर्म दम तोड़ रहा धर्मराज की वार से

एक तरफ सच्चाई खड़ी तो एक तरफ जिद्द है
एक ओर हंसों की टोली दूजी ओर गिद्ध हैं 
दो सहोदर लड़ रहें एक दूजे के विनाश को
कर्ण ने आह्वान किया अर्जुन पे ब्रह्मास्त्र को 

हर दिशा शून्य शान्ति धरा और आकाश है
वायु भी अग्नि बरस रही कुरुक्षेत्र का भ्रमण किए
नृत्य काल कर रहा,भुजाओं में दो सर लिये
रक्त पी रही पिशाचनी हाथ मे खप्पर लिये

इच्छा मृत्यु का वरदान भी आज श्राप सिद्ध हो गयें 
गंगा पुत्र भीष्म भी आज अपनी दुर्दशा पे रो गयें 
ये कैसी गुरु दक्षिणा हुई ज्ञान के आशीष को
शिष्य ने धड़ से अलग किया गुरु के ही शीष को 

हर कोई विवश हुआ है इस धर्म युद्ध मे 
अपने ही खड़े हुए हैं अपनों के विरुद्ध मे 
भुजाओं को खबर है ये शस्त्रों को न ज्ञात है
जीत की अनुभूति में भी दिख रहा मात है

मेघ उमड़ रहा है अश्रू बन आसमां के नेत्र मे
धरा भी है चल पड़ी रक्त का समंदर लिए 
नृत्य काल कर रहा,भुजाओं में दो सर लिये
रक्त पी रही पिशाचनी हाथ मे खपर लिये

इंदर भोले नाथ
बागी बलिया उत्तर प्रदेश


Wednesday, October 5, 2022

भला कैसे हो सकता है

बगैर तेरे जिंदा भला कैसे हो सकता है
वो शख्स बेवफ़ा भला कैसे हो सकता है

कि जिसके आने से हुआ हो बवंडर का आगमन
वो मस्अला बेवजह भला कैसे हो सकता है

जो सितारा टिमटिमाता हो उसकी रौशनी लेकर
उसी चाँद से ख़फ़ा भला कैसे हो सकता है

कि जिसने खरीद लिया है मत दारू और पैसों से
वो नेता अच्छा इन्सां, भला कैसे हो सकता है

जिसके दर ओ दीवार ने तुम्हारा अतित संवारा हो
वो घर कभी मकां भला कैसे हो सकता है

जो रिश्ता खड़ा ही झूठ के बुनियाद पे हो "इंदर"
उस रिश्ते का भला, भला कैसे हो सकता है

©® इंदर भोले नाथ

बागी बलिया उत्तर प्रदेश