Thursday, May 7, 2020

ग़ज़ल

इक आस है, जो खास है
आँखों में  इक नमी सी है

हाँ मैं मुकम्मल हूँ लेकिन
कहीं तो कुछ कमी सी है

कोई तो है जो न गुजरा है
मुझमें अब भी वो ठहरा है

मैं उसे जुदा कर भी देता,वो
जीने के लिये लाज़मी सी है

©इंदर भोले नाथ