ए जिंदगी मैं तेरा
होकर भी तेरा न रहा
मौत की आगोश में
कोई सबेरा न रहा
जिसके हर ईट मे
अरमान पिरोये थें
वो सोने का महल
अब मेरा न रहा
तुं सच नहीं बस
माया ही रही
आत्मा से परे
काया ही रही
तेरे पीछे जब
उमर गंवाई है
तब जाकर हमें
समझ ये आई है
कैद था मैं संसार में
घर में और परिवार में
गुरुर में दिन गुजारे हैं
बस झूठी अहंकार में
वो जल रही धूं-धूं करके
जिसपे खतम ईमान किया
हो बेखबर इस रूह से
जीस बदन पर गुमान किया
आजाद हूँ तेरे
कैद से अब
मुझ पर अब
तेरा पहरा न रहा
ए जिंदगी मैं तेरा
होकर भी तेरा न रहा
मौत की आगोश में
कोई सबेरा न रहा
© इंदर भोले नाथ