Monday, April 26, 2021

पाकीज़ा  इश्क़-ए-मकाम पे  ठहरना चाहता हूँ
फ़कत जिस्म नहीं मै रूह तक उतरना चाहता हूँ

थक चुका हूँ ऐ-दिल तुम्हारी खानाबदोशी, अब
सुनो आवारगी से कह दो मैं सुधरना चाहता हूं

© इंदर भोले नाथ

बागी बलिया, उत्तर प्रदेश