Monday, December 4, 2017

यादों के पन्ने से…..

हर शाम….
नई सुबह का इंतेजार
हर सुबह….
वो ममता का दुलार
ना ख्वाहिश,ना आरज़ू
ना किसी आस पे
ज़िंदगी गुजरती थी…
हर बात….
पे वो जिद्द अपनी
मिलने की….
वो उम्मीद अपनी
था वक़्त हमारी मुठ्ठी मे
मर्ज़ी के बादशाह थे हम
थें लड़ते भी,थें रूठते भी
फिर भी बे-गुनाह थें हम
वो सादगी कहीं खो गई
शराफ़त ने चोला ओढ़ ली
कुछ यूँ…
रफ़्तार ज़िंदगी ने ली
मर्ज़ी ने दम तोड़ दी……….
अल्फ़ाज़ मेरे दिल के…….IBN
Blog-http://merealfaazinder.blogspot.in

Monday, November 27, 2017

बाकी न रही अब चाह कोई “इंदर” के सीने मे,
कुछ इस क़दर टूटा है दिल ज़िंदगी को जीने मे…
हर ज़ाम पे जलता है दिल हर रोज शाम को,
पर सच कहूँ तुम्हे यारों मज़ा फिर भी है पीने मे…
………….अल्फ़ाज़ मेरे दिल के

Wednesday, November 22, 2017

बेख़बर हो चला हूँ मैं अपनी ही तबीयत से,
न जाने आजकल किस जहाँ मे खोया हुआ हूँ मैं…
….IBN

Friday, October 20, 2017

कहानी मेरी अधुरी ही लिखी थी उसके (रब) दर से,
बेवफा बनाके तुझको,खुद से इल्जाम हटाया है…
…इंदर भोले नाथ
ऐ दिल जरा ठहेर ऐतबार अभी बाकी है,
गुजारिश राहों ने की है इन्तेजार अभी बाकी है …
दबी ख्वाहिश दिल की है वो पुरा तो कर लूं,
इल्तजा आंखों ने की है दिदार अभी बाकी है….
…इंदर भोले नाथ
तुझे चाँद कहूं या आफताब कहूं,
होगी तुझ-सा कोई हूर नहीं…
है नूर भी फिका सा लगे,
पर तुझमे कोई गुरूर नहीं…
…इंदर भोले नाथ
समझ जाता है हर धड़कन,भले ही राज़ लिखता हूं,
कुछ युं सीधा कुछ युं सरल, मैं अल्फाज लिखता हूं…
इंदर भोले नाथ…
हर शख्स यहां अधुरा, हर रिश्ता बिखरा हुआ सा है,
आजकल मिजा़ज मेरे शहेर का कुछ उखड़ा हुआ सा है…
…इंदर भोले नाथ

Wednesday, March 22, 2017

ये गुनाह करते हैं...


कभी खामोश तो कभी बयां करते हैं,
बे-वजह दिल को युं परेशां करते हैं,
जन्नत-ए-इश्क के मुकाम ने हमें तबाह कर दिया
फिर भी न जाने क्युं ये गुनाह करते हैं...

Translate:-

Kabhi Khamosh To Kabhi Bayaan Karte Hain,
Be-wajah Dil Ko Yun  Pareshaan Karte Hain,
Jannat-E-Ishq Ke Mukaam Ne  Hamen Tabaah Kar Diya
Fir  Bhi N Jane Q Ye Gunaah Karte  Hain ....

....इंदर भोले नाथ

Sunday, March 19, 2017

तेरे इश्क से


तेरे इश्क से जो महरूम हुए
दफन ख्वाहिश-ए-आरज़ू तमाम हो गये,
साज़िस ज़िन्दगी ने की
कम्बख्त हम बदनाम हो गये...

------इंदर भोले नाथ

फुरसत...


रहा खुद मे मैं बाकी अब कहां
कुछ युं हुआ है तुं मुझमे रवां
खुद का ख्याल अब मैं रख सकुं
तुझे सोचने के बाद है फुरसत कहां...

-------इंदर भोले नाथ