Tuesday, June 28, 2016

देश के खास मंदिर

करणी माता मंदिर

इस मंदिर को चूहों वाली माता का मंदिर, चूहों वाला मंदिर और मूषक मंदिर भी कहा जाता है, जो राजस्थान के बीकानेर से 30 किलोमीटर दूर देशनोक शहर में स्थित है। करनी माता इस मंदिर की अधिष्ठात्री देवी हैं, जिनकी छत्रछाया में चूहों का साम्राज्य स्थापित है। इन चूहों में अधिकांश काले है, लेकिन कुछ सफेद भी है, जो काफी दुर्लभ हैं। मान्यता है कि जिसे सफेद चूहा दिख जाता है, उसकी मनोकामना अवश्य पूरी होती है।
















ज्वालामुखी मंदिर

ज्वाला देवी का प्रसिद्ध ज्वालामुखी मंदिर हिमाचल प्रदेश के कालीधार पहाड़ी के मध्य स्थित है। यह भी भारत का एक प्रसिद्ध शक्तिपीठ है, जिसके बारे में मान्यता है कि इस स्थान पर पर माता सती की जीभ गिरी थी। माता सती की जीभ के प्रतीक के रुप में यहां धरती के गर्भ से लपलपाती ज्वालाएं निकलती हैं, जो नौ रंग की होती हैं। इन नौ रंगों की ज्वालाओं को देवी शक्ति का नौ रुप माना जाता है। ये देवियां है: महाकाली, अन्नपूर्णा, चंडी, हिंगलाज, विन्ध्यवासिनी, महालक्ष्मी, सरस्वती, अम्बिका और अंजी देवी।

किसी को यह ज्ञात नहीं है कि ये ज्वालाएं कहां से प्रकट हो रही हैं? ये रंग परिवर्तन कैसे हो रहा है? आज भी लोगों को यह पता नहीं चल पाया है यह प्रज्वलित कैसे होती है और यह कब तक जलती रहेगी? कहते हैं, कुछ मुस्लिम शासकों ने ज्वाला को बुझाने के प्रयास किए थे, लेकिन वे विफल रहे।
















काल भैरव मंदिर

मध्य प्रदेश के शहर उज्जैन से लगभग आठ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है भगवान काल भैरव का एक प्राचीन मंदिर। श्रद्धालु उन्हें प्रसाद के तौर पर केवल शराब ही चढ़ाते हैं। आश्चर्यजनक यह है कि जब शराब का प्याला काल भैरव की प्रतिमा के मुख से लगाया जाता है, तो वह एक पल में खाली हो जाता है।
















मेहंदीपुर बालाजी मंदिर

राजस्थान के दौसा जिले में स्थित मेहंदीपुर का बालाजी धाम भगवान हनुमान के 10 प्रमुख सिद्धपीठों में गिना जाता है। मान्यता है कि इस स्थान पर हनुमानजी जागृत अवस्था में विराजते हैं। यहां देखा गया है कि जिन व्यक्तियों के ऊपर भूत-प्रेत और बुरी आत्माओं का वास होता है, वे यहां की प्रेतराज सरकार और कोतवाल कप्तान के मंदिर की जद में आते ही चीखने-चिल्लाने लगते हैं और फिर वे बुरी आत्माएं, भूत-पिशाच आदि पल भर पीड़ितों के शरीर से बाहर निकल जाती हैं।

ऐसा कैसे होता है, यह कोई नहीं जानता है? लेकिन लोग सदियों से भूत-प्रेत और बुरी आत्माओं से मुक्ति के लिए दूर-दूर से यहां आते हैं। इस मंदिर में रात में रुकना मना है।


Monday, June 27, 2016

ख़ौफज़दा दिल…

बड़ा ही ख़ौफज़दा है दिल,इन फरेबी हुक्मरानों से,
हयात-ए-आबरू लूटते देखा,अपने ही पासबानों से…
…इंदर भोले नाथ…
ख़ौफज़दा-डरा हुआ
फरेबी- झूठा
हुक्मरानों- नियम बनाने वाले
हयात- जीवन
आबरू- मर्यादा
पासबानों- रक्षक-चौकीदार

Friday, June 24, 2016

बर्बादी का अंजाम लिख दिया…

किसी ने जख्म तो किसी ने
आसुओं का ज़ाम लिख दिया,
किसी ने रुसवाई तो किसी ने
दर्द का पैगाम लिख दिया,
राह-ए-उल्फ़त मे मोहब्बत को
नजाने कितने नाम दिए दीवानों ने,
किसी ने एहसास-ए-जन्नत तो
किसी ने बर्बादी का अंजाम लिख दिया…
…इंदर भोले नाथ…
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Wednesday, June 22, 2016

कहीं डूबा है कोई यादों मे…

कहीं जख्म है नासूर बनें,कहीं समंदर बसा है आँखों मे,
कहीं तन्हा हुआ सा है कोई,कहीं सुलग रहा कोई रातों मे…
कुछ इस क़दर बेताब हुए, दीवानें राह-ए-उल्फ़त मे,
कहीं जीना कोई भूल बैठा, तो कहीं डूबा है कोई यादों मे…
…इंदर भोले नाथ…
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वीरानो में बना बैठे हैं…

कम्बख़्त ये तन्हाई भी न
कुछ इस क़दर हमें अपना बना बैठी है, के
इसका बसेरा मुझमे नहीं, हम
अपना आशियाना ही वीरानो में बना बैठे हैं…
…इंदर भोले नाथ…
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ये शिकायत भी है…

ये शिकायत भी है उनका के हम उन्हे याद नहीं करते,
और अपनी हिचक़ियों का कुसूरवार भी हमें बताते हैं…
…इंदर भोले नाथ…
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Monday, June 20, 2016

जुनून-ए-इश्क़

जुनून-ए-इश्क़ का दस्तूर भी अजीब है,
जो कभी अपना था ही नहीं,उसे गैर नहीं मानता…
…इंदर भोले नाथ…
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मिट्टी के घरौंदे…IBN

उसकी हर एक बूँद से पिघलते
देखा है मैने मिट्टी के उन घरौंदों को…
जिस बरसात की आरज़ू पत्थरों के
महल हर रोज किया करते हैं…..
…इंदर भोले नाथ…
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Sunday, June 5, 2016

Saturday, May 7, 2016

अब ज़िंदगी संवर जाने दे…

ऐ-वक़्त है गुज़ारिश,अब निखर जाने दे
गमों की इन आँधियों को,अब गुजर जाने दे
ख्वाहिश सदियों की तुझसे,रखता नहीं है “इंदर”
चन्द लम्हों मे ही सही,अब ज़िंदगी संवर जाने दे…
…इंदर भोले नाथ…
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Wednesday, April 27, 2016

वो चाँद कभी...

ये सितारें जो युं इतरा रहे हैं आज
जिस चाँद की रौशनी पे
शायद इन्हें खबर नहीं है
वो चाँद कभी हमारा हुआ करता था
… इंदर भोले नाथ…
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Sunday, April 24, 2016

खूबसूरत और पाक...

खूबसूरत और पाक है ये मोहब्बत
दो जिस्म इक जां है ये मोहब्बत
मुकम्मल हो जाती है,ज़िंदगी इसमे
दिल की चाहत,रूह की प्यास है ये
मोहब्बत……
…इंदर भोले नाथ…
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Saturday, April 16, 2016

तेरा ज़िक्र

तेरा ज़िक्र जब भी हुआ मेरे फसाने मे
मेरी वो हर शाम गुज़री मयखाने मे…
…इंदर भोले नाथ…

इक वक़्त था

इक वक़्त था मैं ठहरा हुआ सा
तूँ क्या मीली ज़िंदगी चल पड़ी
…इंदर भोले नाथ…

महेज इक

महेज इक इत्तेफ़ाक था,
तेरी मुलाक़ातों का वो सिलसिला
वरना यूँ यादों के ज़रिये,
हमारी ज़िंदगी तो ना कटती…
…इंदर भोले नाथ…
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क्या तारीफ करूँ

क्या तारीफ करूँ,उस गुल की मैं
जिसकी खुश्बू से,निखरा ये गुलशन है
…इंदर भोले नाथ…
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Thursday, April 14, 2016

कामाख्या शक्तिपीठ














कामाख्या शक्तिपीठ गुवाहाटी (असम) के पश्चिम में 8 कि.मी. दूर नीलांचल पर्वत पर स्थित है. माता के सभी शक्तिपीठों में से कामाख्या शक्तिपीठ को सर्वोत्तम कहा जाता है. माता सती के प्रति भगवान शिव का मोह भंग करने के लिए भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से माता सती के मृत शरीर के 51 भाग किए थे. 
जिस-जिस जगह पर माता सती के शरीर के अंग गिरे, वे शक्तिपीठ कहलाए. कहा जाता है कि यहां पर माता सती का गुह्वा मतलब योनि भाग गिरा था, उसी से कामाख्या महापीठ की उत्पत्ति हुई. कहा जाता है यहां देवी का योनि भाग होने की वजह से यहां माता रजस्वला होती हैं.
कामाख्या शक्तिपीठ चमत्कारों और रोचक तथ्यों से भरा हुआ है. यहां जानिए कामाख्या शक्तिपीठ से जुड़े ऐसे ही 6 रोचक तथ्य:
1. मंदिर में नहीं है देवी की मूर्ति: इस मंदिर में देवी की कोई मूर्ति नहीं है, यहां पर देवी के योनि भाग की ही पूजा की जाती है. मंदिर में एक कुंड सा है, जो हमेशा फूलों से ढका रहता है. इस जगह के पास में ही एक मंदिर है जहां पर देवी की मूर्ति स्थापित है. यह पीठ माता के सभी पीठों में से महापीठ माना जाता है.
2. यहां माता हर साल होती हैं रजस्वला: इस पीठ के बारे में एक बहुत ही रोचक कथा प्रसिद्ध है. कहा जाता है कि इस जगह पर मां का योनि भाग गिरा था, जिस वजह से यहां पर माता हर साल तीन दिनों के लिए रजस्वला होती हैं. इस दौरान मंदिर को बंद कर दिया जाता है. तीन दिनों के बाद मंदिर को बहुत ही उत्साह के साथ खोला जाता है.
3. प्रसाद के रूप में मिलता है गीला वस्त्र: यहां पर भक्तों को प्रसाद के रूप में एक गीला कपड़ा दिया जाता है, जिसे अम्बुवाची वस्त्र कहते हैं. कहा जाता है कि देवी के रजस्वला होने के दौरान प्रतिमा के आस-पास सफेद कपड़ा बिछा दिया जाता है. तीन दिन बाद जब मंदिर के दरवाजे खोले जाते हैं, तब वह वस्त्र माता के रज से लाल रंग से भीगा होता है. बाद में इसी वस्त्र को भक्तों में प्रसाद के रूप में बांटा जाता है.
4. लुप्त हो चुका है मूल मंदिर: कथा के अनुसार, एक समय पर नरक नाम का एक असुर था. नरक ने कामाख्या देवी के सामने विवाह करने का प्रस्ताव रखा. देवी उससे विवाह नहीं करना चाहती थी, इसलिए उन्होंने नरक के सामने एक शर्त रखी. शर्त यह थी कि अगर नरक एक रात में ही इस जगह पर मार्ग, घाट, मंदिर आदि सब बनवा दे, तो देवी उससे विवाह कर लेंगी. नरक ने शर्त पूरी करने के लिए भगवान विश्वकर्मा को बुलाया और काम शुरू कर दिया. 
काम पूरा होता देख देवी ने रात खत्म होने से पहले ही मुर्गे के द्वारा सुबह होने की सूचना दिलवा दी और विवाह नहीं हो पाया. आज भी पर्वत के नीचे से ऊपर जाने वाले मार्ग को नरकासुर मार्ग के नाम से जाना जाता है और जिस मंदिर में माता की मूर्ति स्थापित है, उसे कामादेव मंदिर कहा जाता है. मंदिर के संबंध में कहा जाता है कि नरकासुर के अत्याचारों से कामाख्या के दर्शन में कई परेशानियां उत्पन्न होने लगी थीं, जिस बात से क्रोधित होकर महर्षि वशिष्ट ने इस जगह को श्राप दे दिया. 
कहा जाता है कि श्राप के कारण समय के साथ कामाख्या पीठ लुप्त हो गया.
5. 16वीं शताब्दी से जुड़ा है मंदिर का इतिहास: मान्यताओं के अनुसार, कहा जाता है कि 16वीं शताब्दी में कामरूप प्रदेश के राज्यों में युद्ध होने लगे, जिसमें कूचविहार रियासत के राजा विश्वसिंह जीत गए. युद्ध में विश्व सिंह के भाई खो गए थे और अपने भाई को ढूंढने के लिए वे घूमत-घूमते नीलांचल पर्वत पर पहुंच गए. 
वहां उन्हें एक वृद्ध महिला दिखाई दी. उस महिला ने राजा को इस जगह के महत्व और यहां कामाख्या पीठ होने के बारे में बताया. यह बात जानकर राजा ने इस जगह की खुदाई शुरु करवाई. खुदाई करने पर कामदेव का बनवाए हुए मूल मंदिर का निचला हिस्सा बाहर निकला. राजा ने उसी मंदिर के ऊपर नया मंदिर बनवाया. 
कहा जाता है कि 1564 में मुस्लिम आक्रमणकारियों ने मंदिर को तोड़ दिया था. जिसे अगले साल राजा विश्वसिंह के पुत्र नरनारायण ने फिर से बनवाया.
6. भैरव के दर्शन के बिना अधूरी है कामाख्या यात्रा: कामाख्या मंदिर से कुछ दूरी पर उमानंद भैरव का मंदिर है,उमानंद भैरव ही इस शक्तिपीठ के भैरव हैं. यह मंदिर ब्रह्मपुत्र नदी के बीच में है. कहा जाता है कि इनके दर्शन के बिना कामाख्या देवी की यात्रा अधूरी मानी जाती है. कामाख्या मंदिर की यात्रा को पूरा करने के लिए और अपनी सारी मनोकामनाएं पूरी करने के लिए कामाख्या देवी के बाद उमानंद भैरव के दर्शन करना अनिर्वाय है.
7. तंत्र विद्या का सबसे बड़ा मंदिर: कामाख्‍या मंदिर तंत्र विद्या का सबसे बढ़ा केंद्र माना जाता है और हर साल जून महीने में यहां पर अंबुवासी मेला लगता है. देश के हर कोने से साधु-संत और तांत्रिक यहां पर इकट्ठे होते हैं और तंत्र साधना करते हैं. माना जाता है कि इस दौरान मां के रजस्‍वला होने का पर्व मनाया जाता है और इस समय ब्रह्मपुत्र नदी का पानी तीन दिन के लिए लाल हो जाता है.

Wednesday, April 13, 2016

बरसों से

बरसों से इक अजीब सा रिश्ता
बन गया है इन दीवारों से
कभी-कभी समझ नहीं पाता
ये आँखें रात का इंतेजार सोने या
इन दीवारों से रु-ब-रु होने के लिये
करती हैं….
…इंदर भोले नाथ…
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Tuesday, April 12, 2016

तेरे हुस्न को सजाने मे

क्या तारीफ करूँ मैं तेरी
अल्फाज़ों से
कोई लफ़्ज नहीं बचा
मेरे खजाने मे
रब भी सौ मर्तबा
टूटा होगा
तेरे हुस्न को सजाने मे
…इंदर भोले नाथ…
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Monday, April 11, 2016

ज़रिया है…

सिमटी मेरी दुनिया
तेरे बाहों के दरमियाँ
तूँ मेरी दुनिया ही नहीं
मेरे जीने का ज़रिया है…
…इंदर भोले नाथ…
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Monday, April 4, 2016

है आरज़ू यही अब

है आरज़ू यही अब
यूँ ज़िंदगी बसर हो
रहें काफिलों के संग
पर तन्हा सफ़र हो
…इंदर भोले नाथ…
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इतना मुश्किल भी नहीं

इतना मुश्किल भी नहीं “इंदर”
अल्फाज़ों को अक्स देना
उल्फ़त-ए-मंज़िल के किनारों तक
गर इश्क़ न पहुँचा हो…
…इंदर भोले नाथ…
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अरसा गुजर गये

अरसा गुजर गये हमें
मुस्कराना भूले हुए
है ज़िंदगी अजीब तूँ
हमें रुलाना नहीं भूली
…इंदर भोले नाथ…
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Saturday, April 2, 2016

Friday, April 1, 2016

ख्वाबों की तरह..

ख्वाबों की तरह रुख्सत सी हुई
“ज़िंदगी” तूँ जब अब्सारों से…
है धुंधला सा हुआ चिराग-ए-दिल
राह-ए-उल्फत के नज़ारों से…

…इंदर भोले नाथ…
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Whatsapp- 9736423320

Friday, March 18, 2016

वक़्त कर लेता है रुख्सत
शायद बीते लम्हों से…
ख़ता तो दिल की होती है
यादों मे खोये रहने की…
…इंदर भोले नाथ…
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भर लूँ तुझे आगोश मे

भर लूँ तुझे आगोश मे
ऐ-वक़्त ज़रा तूँ रुक तो जा…
कल ही तो मीले थें हम दोनो
फिर जाने की जल्दी है क्या…
…इंदर भोले नाथ…

Tuesday, March 15, 2016

यादें...

स्कूल से हॉल्फ टाइम की छुट्टी मार के :-

पहले के सिनेमा घरों मे जाते ही वो बुकिंग काउंटर पे लंबी लाइनों के होने के बावजूद भी टिकेट ले लेना !
और अंदर जाते ही सन्नाटा सा छाए हुए उस हॉल मे मच्छरों का वो लगना, वो कोने मे गुटखें और पानों के लाल से धब्बों का होना, वो प्लास्टिक और लकड़ियों की कुर्सियों पे हल्का सा गदे का होना,वो हीरो की एंट्री और एक्सन सीनों पे सीटियों का बजना, वो इंटरवल टाइम मे जल्दी-जल्दी टॉयलेट जाते हुए फिर जल्दी-जल्दी लौट के अपनी सीट पे बैठना !

कसम से.....
आज भी ये एहसास दिलाता है कि इन (Theaters  और Malls ) से कहीं ज़्यादा सुकून और मजेदार हुआ करता था !

वो बूढ़ी औरत…..


रोज सुबह ड्यूटी पे जाना रोज शाम लौट के रूम पे आना,ये रूटीन सा बन गया था, मोहन के लिये ! हालाँकि रूम से फैक्ट्री ज़्यादा दूर नहीं था, तकरीबन१०-१५ मिनट का रास्ता है ! मोहन उत्तर प्रदेश का रहने वाला है,करीब २ सालों से यहाँ (नोएडा) मे एक प्राइवेट फैक्ट्री मे काम कर रहा है ! रोज सुबह ड्यूटी पे जाना,शाम को लौट के कमरे पे आना ऐसे ही चल रहा था !
एक शाम जब मोहन ड्यूटी से ऑफ हो के जैसे ही फैक्ट्री से निकला कमरे पे जाने को,देखा बाहर तो जोरों की बारिश लगी हुई है ! १०-१५ मिनट इंतेजार करने के बावजूद भी जब बारिश न रुकी,तो मोहन दौड़ता हुआ कमरे पे जाने लगा ! तभी उसकी नज़र सड़क के किनारे एक छोटी सी पान की दुकान पे पड़ी,दुकान बंद हो चुकी थी ! और उसी दुकान से चिपक के एक बूढ़ी औरत बारिश से बचने के लिये खड़ी थी ! फिर भी वो भीग रही थी, और ठंड से कांप रही थी,क्योंकि बारिश के साथ-साथ ठंडी हवा भी चल रही थी ! न जाने मोहन के दिमाग़ मे क्या ख्याल आया,वो रुका और उस दुकान की तरफ बढ़ने लगा ! मोहन ने उस औरत से पूछा….माँ जी कौन हो आप..? और इतनी बारिश मे यहाँ क्या कर रही हो ..?

उस बूढ़ी औरत ने कहा…..बेटा,मेरा बेटा और मेरी बहू यहीं रहते हैं,इसी शहर मे, शादी के बाद जब से बहू को लेके यहाँ आया तब से न ही गाँव मे हम से मिलने आया न ही कोई खबर दी ! एकलौता बेटा है मेरा वो, दिल कर रहा था उसे देखने को इसलिए मैं खुद को रोक नहीं पाई और उससे मिलने चली आई ! जब उसकी शादी नहीं हुई थी, तब मैं अपने बेटे के साथ एक बार पहले भी आई थी यहाँ ! वही लेकर आया था मुझे, कहता था माँ खाना बनाने मे दिक्कत होती है,चल तूँ मेरे साथ ही रहना !
फ़ोन भी की थी मैने उसको, कि बेटा मैं आ रही हूँ वहाँ तुम्हारे पास ! जब मैं वहाँ पहुँची जहाँ वो रहता है, तो देखा कमरे मे ताला लगा हुआ है ! लोगों से पूछने पर पता चला कि वो बहू को लेकर उसके मायके गया है,बहूकी माँ की तबीयत खराब है उसे ही देखने गया है ! और बेटा…. जब अपना बेटा ही अपने कमरे मे ताला लगा गया है,तो फिर ये अंजान लोग क्या पनाह देंगे मुझे…..!
इतना सुनते ही मोहन के मुँह से अनायास ही निकल पड़ा…..कैसा बेटा है अपनी माँ को इस हालत मे छोड़ सास को देखने गया है ! फिर मोहन उस बूढ़ी औरत से बोला…माँजी पास मे ही मेरा कमरा है, चलो आप वहीं रह लेना जब तक आप के बेटे और बहू नहीं आ जाते !
……………………………………………………….ख़त्म………………………………………………………………….
लेखक- इंदर भोले नाथ…
…..(१५/०३/२०१६)

Sunday, March 13, 2016

बता ऐ-दिल-ए-नादां तुझे हुआ क्या है...

क्यूँ उदास हुआ खुद से है तूँ
कहीं भटका हुआ सा है,
न जाने किन ख्यालों मे
हर-पल उलझा हूआ सा है,
बता ऐ-दिल-ए-नादां तुझे हुआ क्या है
खोया-खोया सा रहता है
अपनी ही दुनिया मे,
गुज़री हुई यादों मे
वहीं ठहरा हुआ सा है,
बता ऐ-दिल-ए-नादां तुझे हुआ क्या है
शीशा-ए-ख्वाब तो टूटा नहीं
तेरे हाथों से फिसल के,
जो आँखों मे टूटे ख्वाब लिए
यूँ रूठा हुआ सा है,
बता ऐ-दिल-ए-नादां तुझे हुआ क्या है
क्यों उम्मीद किए बैठा है तूँ
वफ़ा की इस जमाने से,
यहाँ कीमत लगी है प्यार की
इश्क़ बिका हुआ सा है,
बता ऐ-दिल-ए-नादां तुझे हुआ क्या है
…इंदर भोले नाथ…
..(१३/०३/२०१६)


ज़िंदगी न हो उदास तूँ

ज़िंदगी न हो उदास तूँ,
तेरे पूरे अरमान कर देंगे…
हम वो माहिर परिंदे हैं,
जो तुफां मे उड़ान भर देंगे…
…इंदर भोले नाथ…


Friday, March 11, 2016

दिल सुलग सा रहा है

इस आज़र्दाह-ए-आलम का, क्या कहना “इंदर”,
बारिश मे भीग के भी दिल सुलग सा रहा है…
…इंदर भोले नाथ…
आज़र्दाह-व्याकुल

वो-प्यार याद आया...

वो-प्यार याद आया...

गुजरें जो गली से उसके,वो-दीदार याद आया
पलते नफ़रतों के दरमियाँ,वो-प्यार याद आया
आँखों से मिलने का वो इशारा करना उसका
फिर करना तन्हा मेरा,वो इंतेजार याद आया
शिकवे लिये लबों पे,बेचैन वो होना मेरा फिर
चुपके से लिपट के उसका,वो इज़हार याद आया
मिल के उससे दिल का,वो फूल सा खिल जाना
न मिलने पे होना खुद का,वो लाचार याद आया
यूँही चलते रहना वो,अपना मिलने का सिलसिला
कभी पतझड़ तो कभी वो बहार याद आया
हर इश्क़ की कहानी मुकम्मल हुई नहीं “इंदर”
हर शाम तन्हाई मे मुझे वो-यार याद आया
गुजरें जो गली से उसके,वो दीदार याद आया
पलते नफ़रतों के दरमियाँ,वो-प्यार याद आया
…इंदर भोले नाथ…


Friday, February 19, 2016

तुफां ने ली जो अंगड़ाई

तुफां ने ली जो अंगड़ाई
खत्म हर शाख हो गयें,
परिन्दे उड़ गएं शायद
घर बर्बाद हो गयें…!!
…इंदर भोले नाथ…

Tuesday, February 16, 2016

बसंत का मौसम


बसंत का मौसम
है महका हुआ गुलाब
खिला हुआ कंवल है,
हर दिल मे है उमंगे
हर लब पे ग़ज़ल है,
ठंडी-शीतल बहे ब्यार
मौसम गया बदल है,
हर डाल ओढ़ा नई चादर
हर कली गई मचल है,
प्रकृति भी हर्षित हुआ जो
हुआ बसंत का आगमन है,
चूजों ने भरी उड़ान जो
गये पर नये निकल है,
है हर गाँव मे कौतूहल
हर दिल गया मचल है,
चखेंगे स्वाद नये अनाज का
पक गये जो फसल है,
त्यौहारों का है मौसम
शादियों का अब लगन है,
लिए पिया मिलन की आस
सज रही “दुल्हन” है,
है महका हुआ गुलाब
खिला हुआ कंवल है…!!
…….इंदर भोले नाथ…….


“अब भी आता है”
ज़रा टूटा हुआ है,मगर बिखरा नहीं है ये,
वफ़ा निभाने का हुनर इस दिल को अब भी आता है…
तूँ भूल जाए हमे ये मुमकिन है लेकिन,
हर शाम मेरे लब पे तेरा ज़िक्र अब भी आता है…
हज़ारों फूल सजे होंगे महफ़िल मे तेरे लेकिन,
मेरे किताबों मे सूखे उस गुलाब से खुश्बू अब भी आता है…
न गुज़रेगी कभी तूँ इस रस्ते से लेकिन,
करना उम्मीद तेरे आने का हमे अब भी आता है…
ज़रा टूटा हुआ है मगर बिखरा नहीं है ये,
वफ़ा निभाने का हुनर इस दिल को अब भी आता है…
२७/०९/२०१० @ इंदर भोले नाथ…

भूख की आग…………
बहुत पहले की बात है किसी राज्य मे एक राजा रहता था ! राजा बहुत ही बहादुर,पराकर्मी होने के साथ-साथ घमंडी और दुष्ट प्रवृति का भी था ! उसने बहुत से राजाओं को हराकर उनके राज्य पर कब्जा कर लिया ! उसके बहादुरी और दुष्टता के किस्से दूर-दूर तक फैला हुआ था ! वो किसी भी साधु-महात्मा का कभी सत्कार नहीं करता था,बल्कि उनसे ईर्ष्या करता था !
एक बार उसने किसी राज्य पर आक्रमण किया वहाँ के राजा को बंदी बनाकर उसके राज्य पर कब्जा कर लिया ! जीत की खुशी मे उसने एक बहुत बड़ा जश्न का आयोजन किया,जिसमे उसने अन्य राज्य के राजाओं,राजकुमारों और बड़े-बड़े उद्योगपति और
ब्यापारियों को आमंत्रित किया ! उसने अपने कर्मचारियों को आदेश दिया कि जश्न मे सिर्फ़ उन्हे ही आने दिया जाए जो किसी राज्य के राजा,राजकुमार,उद्योगपति या ब्यापारी हो, अन्यथा और किसी को न आने दिया जाए ! वरना उसके साथ-साथ कर्मचारियों को भी सज़ा दी जाएगी !
उसी दिन एक महात्मा जो किसी दूर राज्य से चलकर उस राज्य मे प्रवेश किए थें ! २-३ दिनों से कुछ खाया नहीं था,भूख और प्यास से उनका बुरा हाल था ! तभी दूर वो जश्न नज़र आया उन्हे,लंबे-लंबे कदम भरते हुए वो भी उसमे शामील होने पहुँचे ! मगर राजा केकर्मचारियों ने उन्हे,अंदर जाने से मना कर दिया बोले हमारे राजा का हुक्म है कि सिर्फ़ राजा, राजकुमार, उद्योगपत्तियों और ब्यापारियों को ही अंदर जाने दिया जाए ! अन्यथा वो उसके साथ-साथ हमें भी सज़ा देंगे ! महात्मा ने बड़े अनुनय-विनय किए कर्मचारियों से,मगर वो भी क्या करें उन्हे भी तो हिदायत दी गई थी ! महात्मा वापस लौट आएँ,मगर पेट की आग उन्हे मजबूर कर रही थी, भूख की आग अब सहा नहीं जा रहा था ! और दूर से पकवान की खुश्बू उन्हे और मजबूर कर रही थी, वहाँ जाने को ! दूसरे रास्ते से कर्मचारियों से छुपते-छुपाते वो किसी तरह वहाँ पहुँच गये जहाँ पकवान खिलाया जा रहा था ! तभी किसी कर्मचारी ने उन्हे देख लिया और पकड़ के राजा के पास ले गया !
राजा ने उस महात्मा को बड़े ही घृणा भरे दृष्टि से देखते हुए, कहा तुम कैसे महात्मा हो जो थोड़ी सी भूख बर्दास्त नहीं कर पाए और चोरी से हमारे जश्न मे शामील हो गये ! तुम महात्मा नही चोर हो, और भी खरी खोटी सुनाते हुए राजा ने महात्मा को बिना खाना खिलाए ही अपने सैनिकों को आदेश दिया कि महात्मा को १०० कोडे लगाकर राज्य से बाहर कर दिया जाए !
बहुत दिनों बाद एक दिन राजा अपने सैनिकों के साथ जंगल मे शिकार खेलने गया ! घना जंगल दूर-दूर तक फैला हुआ था !
शिकार की तलाश मे राजा काफ़ी दूर निकल आया ! सैनिक भी कहीं पीछे छूट गये थें, घना जंगल था राजा रास्ता भूल गया और जंगल मे भटक गया ! काफ़ी कोशिश की राजा ने रास्ता ढूँढने की और अपने सैनिकों से मिलने की मगर नाकामयाब रहा!
जंगल मे इधर-उधर भटकते हुए राजा काफ़ी थक गया, भूख और प्यास भी लग गई थी ! राजा खाना और पानी की तलाश मे भटकता रहा,मगर नाही उसे खाने के लिए फल मिले और नाही जंगल मे कोई झरना दिख रहा था जिससे वो अपनी प्यास बुझा सके ! बुरा हाल था राजा का एक तो सफर करते-करते थक गया था,उपर से भूख और प्यास ने राजा को ब्याकुल कर दिया ! जंगल मे भटकते-भटकते रात होने लगी, तभी कहीं दूर राजा को हल्की सी रोशनी दिखाई दी ! लंबे-लंबे कदम भरते हुए राजा रोशनी के पास पहुँचा, एक छोटी सी झोपड़ी के अंदर दीपक जल रहा था ! राजा झोपड़ी के पास जाके देखा, एक महात्मा जो ध्यान मग्न थें ! राजा झोपड़ी के समीप ही मुँह के बल जमीन पे गीर गया,एक तो थका उपर से भूख और प्यास ने राजा को निर्बल बना दिया था ! राजा के गीरने की आहट सुन के महात्मा का ध्यान टूटा, बाहर आकर देखा झोपड़ी के समीप कोई इंसान अधमरा सा मुँह के बल जमीन पर गीरा पड़ा है ! महात्मा अंदर से जल लेकर आए और राजा के मुँह पे छींटे मारा, राजा होश मे आया और उनके हाथ से जल का पात्र छीन सारा जल एक ही घूँट मे पी गया !
महात्मा ने उससे पूछा…. कौन हो आप और इतनी रात गये इस जंगल मे क्या कर रहे हो ! राजा महात्मा के चरणों मे गीरते हुए बोला हे महात्मा पहले आप मुझे कुछ खाना खिलाए मैं भूख से मरा जा रहा हूँ ! उसके बाद मैं आपको सारा वृतांत बताउँगा ! महात्मा ने कहा….पहनावा और कमर की तलवार बता रही है कि आप कहीं के राजा हो, अभी मेरे पास कुछ विशिष्ट तो नहीं है आपको खिलाने के लिए ! हाँ ये (एक पात्र जिसमे कुछ फल रखे हुए थे,उसकी तरफ इशारा करते हुए बोले) कुछ फल पड़े हुए हैं जिसे बंदरों ने जूठा कर दिया है, अगर आप चाहे तो…..अभी महात्मा ने अपनी बात पूरी भी नहीं की थी, राजा उठा और फल का पात्र उठा के सारा फल खा गया,पानी पी के वहीं जमीन पर लेट गया ! महात्मा ने कहा हे राजन अगर आप चाहों तो झोपड़ी मे विश्राम कर सकते हो ! राजा ने का नहीं महात्मा आज मुझे सच्ची भूख उन फलों मे और गहरी नींद का एहसास इस जमीन पे हो रहा है ! और राजा वहीं जमीन पर सो गया !
सुबह महात्मा ने राजा को उठाते हुए कहा..हे राजन उठो सुबह हो गया, चलो झरने के शीतल जल मे स्नान कर के कुछ ताजे फल ख़ालो ! राजा ने जैसे ही आँखे खोली सामने महात्मा का चेहरा देख के हत्‍ताश सा हो गया और उनके चरण पकड़ के क्षमा माँगने लगा ! हे महात्मा क्षमा कर दीजिए हमें, हमने आपके साथ बड़ा ही दुष्ट ब्यवहार किया था, हमसे बहुत बड़ा पाप हो था उस दिन हमें क्षमा करें, हे महात्मा ! हमने आपको बीना भोजन कराए, और १०० कोडे की सजा देकर अपने राज्य से निकाला था, मैं बहुत बड़ा पापी हूँ, हे महात्मा मुझे क्षमा करें ! भूख और प्यास की आग क्या होती है, ये मुझे कल पता चला, मुझे क्षमा करें हे महात्मा, राजा घंटों तक महात्मा के चरणों से लिपटा क्षमा माँगता रहा !
महात्मा ने कहा हे राजन मेरे मन मे तुम्हारे लिए कोई द्वेष या क्रोध नहीं है ! मैने तो तुम्हे उसी दिन क्षमा कर दिया था !
महात्मा ने राजा को झरने के शीतल जल मे स्नान करा कर कुछ ताजे फल दिए खाने को, राजा फल खा रहा था , तब तक राजा के सैनिक भी राजा को ढूंढते हुए वहाँ पहुँच चुके ! राजा ने सैकड़ो बार महात्मा को अपने राज्य चलने को कहा, पर महात्मा ने मना करते हुए कहा… हे राजन आज तो नहीं मगर फिर कभी ज़रूर आउँगा आपका अतिथ्या स्वीकार करने !
राजा ने महात्मा से विदा लेते हुए अपने किए हुए दुष्ट ब्यव्हार का फिर से क्षमा माँगा और अपने सैनिकों के साथ अपने राज्य वापस लौट आया !

 फिर उसके राज्य के लोगों ने जिस राजा को देखा ये राजा वो राजा नहीं था, जिसमे घमंड और दुष्टता भरा हुआ था ! जो साधु-महात्मा का सत्कार नहीं करता और उनसे ईर्ष्या करता था ! बल्कि उस राजा को देखा जो नम्रता और अपने प्रजा के साथ अच्छा ब्यव्हार करता और साधु-महात्माओं का सत्कार और उनकी इज़्ज़त करता !
…………………………………………………....ख़त्म…..……………………………………………
………………………………………...लेखक- इंदर भोले नाथ………………….…………………..

Monday, February 15, 2016

आँखों को जो उसका दीदार हो जाए
मेरा सफ़र भी मुकम्मल यार हो जाए
मैं भी हज़ारों ग़ज़ल लिखता उसपे
काश..हमें भी किसी से प्यार हो जाए
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……......इंदर भोले नाथ…...……...

Sunday, February 14, 2016

ढूंढता फिर रहा खुद को...

कहीं गुम-सा हो गया हूँ मैं
क़िस्सों और अफ़सानों मे…
ढूंढता फिर रहा खुद को
महफ़िलों और वीरानों मे…
कभी डूबा रहा गम मे
कभी खुशियों का मेला है…
सफ़र है काफिलों के संग
पाया खुद को अकेला है…
प्यालों मे ढलते,देखा कभी
कभी मीला मयखानों मे…..
ढूंढता फिर रहा खुद को
महफ़िलों और वीरानों मे…
कभी तो रु-ब-रु हो
“ऐ-इंदर” हमसे…
हसरतों की गुज़ारिश
है मिलने की तुमसे…
कभी यहाँ,कभी वहाँ
न जाने ढूँढा,कहाँ-कहाँ…
जहाँ खो गया है तूँ
है वो कौन सी जहाँ…
मीला न तूँ मुझे कहीं
तेरे हर ठिकानों मे…
ढूंढता फिर रहा खुद को,
महफ़िलों और वीरानों मे…
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Acct-इंदर भोले नाथ…..

Wednesday, February 10, 2016

चूहों ने जब हिम्मत बनाई ,
बिल्ली को मार भगाने की…
तब बिल्ली ने ढोंग रचाई,
की तैयारी हज को जाने की…
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Acct- इंदर भोले नाथ…
२१/०१/२०१६….

Tuesday, February 9, 2016

खेदारु…. एक छोटी सी कहानी….
गंगा नदी के तट से कुछ दूर पे एक छोटा सा गाँव (चांदपुर) बसा है ! जो उत्तर प्रदेश के बलिया जिले मे स्थिति है,उस गाँव मे (स्वामी खपड़िया बाबा ) नाम का एक आश्रम है, जहाँ बहुत से साधु-महात्मा रहते हैं !
उन दिनों गर्मियों का मौसम था, एक महात्मा आए हुए थें ! जिनका नाम स्वामी हरिहरानंद जी महाराज है, बाबा हर शाम को उस आश्रम मे सत्संग (प्रवचन) सुनाया करते थें ! जिसे सुनने आस-पास के गाँव के लोग और दूर के गाँव के लोग भी आते थें !
उस दिन बाबा इंसानी प्रवृति और नशे की चीज़ों जैसे- गुटखा,खैनी,बीड़ी,सिगरेट,जर्दा,शराब आदि जैसी नशीली चीज़ो पर (जो कितना बुरा असर करते हैं इंसानी शरीर पर ) इसके बारे मे लोगों को बता रहे थें,(प्रवचन दे रहे थें) !
सभी लोग बड़े ध्यान से बाबा का प्रवचन सुन रहे थें ! तभी बाबा की नज़र उस इंसान पे पड़ी जो बिल्कुल उनके सामने (सबसे आगे चौकी के नीचे ) बैठा था ! सभी लोग तो बड़े ध्यान से बाबा का प्रवचन सुन रहे थें, पर वो इंसान बड़े ही लगन से अपने हथेली मे खैनी (तंबाकू) रगड़ने (बनाने) मे ब्यस्त था ! अचानक से बाबा की नज़र पड़ी उसपे, बाबा ने उसे अपने पास बुलाया और उससे उसका नाम पूछा !
वो बोला बाबा…..हमरा नाम खेदारु है बाबा, इहे पास के गाँव का रहने वाला हूँ !
बाबा बोलें ठीक है, ये बताओ तुम खैनी (तंबाकू) कब से खा रहे हो ! वो बोला बाबा ई त हम बचपन से जब ८-९ साल का रहा, तब से खा रा हूँ ! फिर बोला बाबा हमरा से कवनो ग़लती हो गया का, माफी चाहता हूँ बाबा ! बहुत दिन से हमहु चाहता हूँ, ई का (खैनी) को छोड़ना पर का करूँ बाबा ई (खैनी) हमरा को छोड़ती ही नहीं ! बहुतई कोशिश किया हूँ,बाबा पर ई (खैनी) हमका नहीँ छोड़ती !
उसकी बातें सुनने के बाद, बाबा बोलें- लाओ दिखाओ वो (खैनी) जो तुम्हे नहीं छोड़ती,ज़रा हम भी देखें वो क्यों नहीं छोड़ रही तुम्हे ! फिर खेदारु ने अपनी पेंट की जेब से चीनौटी (एक छोटी सी डब्बी जिसमे खैनी रखते हैं) नीकाली और बाबा को दे दिया !
बाबा चीनौटी को अपने बगल मे रख के खेदारु को बोलें जाओ और अपनी जगह पे बैठ जाओ, और हाँ जब तुम्हे इसे (खैनी) खाने का मन करे तो इसे अपने पास बुला लेना ! तुम मत आना इसके पास चल के इसे खाने के लिए ! फिर देखते हैं क़ि ये तुम्हारे पास चल के जाती है या तुम खुद चल के इसके पास आते हो !
अगर ये (खैनी) तुम्हारे पास चल के गई तो हम मानेंगे क़ि ये तुम्हे नहीं छोड़ रही,
अन्यथा तुम ही इसे नहीं छोड़ रहे हो……..
बस……….बाबा की बात खेदारु के भेजे मे समझ आ गई……………!!
……………………………………………………….ख़त्म……………………………………………………
…………………………………………….….इंदर भोले नाथ…………………………………………...

यूँ तो लगती फरेब है,
ख्वाबों ख्यालों की ये दुनिया…
मगर देखा है मैने “इंदर”,
कुछ ख्वाब मुकम्मल होते हुए…
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Acct- इंदर भोले नाथ…
बिखरे हुए ल्फ्ज़,अल्फाज़ों मे निखर गयें,
निखरे मेरे-अल्फ़ाज़,जब हम बिखर गयें…
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Acct-इंदर भोले नाथ…
08/02/2016
पर अब है,इतना वक़्त कहाँ...

फिर लौट चलूं मैं,”बचपन” मे,
पर अब है,इतना वक़्त कहाँ…
खेलूँ फिर से,उस “आँगन” मे,
पर अब है,इतना वक़्त कहाँ…
क्या दिन थें वो,ख्वाबों जैसे,
क्या ठाट थें वो,नवाबों जैसे…
फिर लौट चलूं,उस “भोलेपन” मे,
पर अब है,इतना वक़्त कहाँ…
हर रोज था,खुशियों का मेला,
हर रात थी,सपनों की महेफिल…
फिर लौट चलूं,उस “सावन” मे,
पर अब है,इतना वक़्त कहाँ…
कोई पहेरा न था,बंदिशों का,
जख्म गहेरा न था,रंजिशों का…
फिर लौट चलूं,उस जीवन मे,
पर अब है,इतना वक़्त कहाँ…
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…...….इंदर भोले नाथ...…….

Tuesday, February 2, 2016

कुछ तो बहेका होगा,
रब भी तुझे बनाने मे…
सौ मरतबा टूटा होगा,
ख्वाहिशों को दबाने मे…!!
आँखों मे है नशीलापन,
लगे प्याले-ज़ाम हो जैसे…
गालों पे है रंगत छाई,
जुल्फ घनेरी शाम हो जैसे…
सूरज से मिली हो लाली,
शायद,लबों को सजाने मे…
कुछ तो बहेका होगा,
रब भी तुझे बनाने मे…!!
मलिका हुस्न की हो या,
हो कोई अप्सरा तुम…
जो भी हो खुदा की कसम,
हो खूबसूरत सी बला तुम…
तुमसा कोई और नहीं,
अब है कहीं जमाने मे…
कुछ तो बहेका होगा,
रब भी तुझे बनाने मे…!!
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Acct- इंदर भोले भोले…

Friday, January 29, 2016

लम्हा तो चुरा लूँ…

उन गुज़रे हुए पलों से,
इक लम्हा तो चुरा लूँ…
इन खामोश निगाहों मे,
कुछ सपने तो सज़ा लूँ…
अरसा गुजर गये हैं,
लबों को मुस्काराए हुए…
सालों बीत गये “.ज़िंदगी”,
तेरा दीदार किये हुए…
खो गया है जो बचपन,
उसे पास तो बुला लूँ…
उन गुज़रे हुए पलों से,
इक लम्हा तो चुरा लूँ…
जी रहे हैं,हम मगर,
जिंदगी है कोसों दूर…
ना उमंग रहा दिल मे,
ना है आँखों मे कोई नूर…
है गुमनाम सी ज़िंदगी,
इक पहचान तो बना लूँ…
उन गुज़रे हुए पलों से,
इक लम्हा तो चुरा लूँ…
Acct- इंदर भोले नाथ…
३०/०१/२०१६

Thursday, January 28, 2016

बरसों बाद लौटें हम...

बरसों बाद लौटें हम,
जब उस,खंडहर से बिराने मे…
जहाँ मीली थी बेसुमार,
खुशियाँ,हमें किसी जमाने मे…
कभी रौनके छाई थी जहाँ,
आज वो बदल सा गया है…
जो कभी खिला-खिला सा था,
आज वो ढल सा गया है…
लगे बरसों से किसी के,
आने का उसे इंतेजार हो…
न जाने कब से वो किसी,
से मिलने को बेकरार हो…
अकेला सा पड़ गया हो,
वो किसी के जाने से…
लगे सिने मे उसके गम,
कोई गहरा हुआ सा हो..
वो गुज़रा हुआ सा वक़्त,
वहीं ठहर हुआ सा हो…
घंटों देखता रहा वो हमें,
अपनी आतुर निगाहों से…
कई दर्द उभर रहे थें,
उसकी हर एक आहों से…
कुछ भी न बोला वो बस,
मुझे देखता ही रहा गया…
उसकी खामोशियों ने जैसे,
हमसे सब कुछ हो कह दिया…
क्या हाल सुनाउँ मैं तुमसे,
अपने दर्द के आलम का…
बिछड़ के तूँ भी तो,
हमसे तन्हा ही रहा…
बरसों बाद मिले थें हम,
मिलके,दोनो ही रोते चले गये…
निकला हर एक आँसू,
ज़ख़्मों को धोते चले गये…
घंटों लिपटे रहें हम यूँही,
एक-दूसरे के आगोश मे…
जैसे बरसों बाद मिला हो,
बिछड़ के कोई “दोस्ताना”…
मैं और मेरे गुज़रे हुए,
मासूम सा “बचपन” का वो ठिकाना…
Acct- इंदर भोले नाथ…
२८/०१/२०१६

Friday, January 15, 2016

बड़ी ही पाकीज़ा और इमान थी
चाहतें मेरी....
देखी जो तेरी शोख निगाहें,हसरतें
बेइमान हो गई...

.......................इंदर (IBN)


कुछ यूँ जिया मैं उससे,जुदा होके…
जैसे बिखरा कोई कस्ती,तुफां मे फन्ना होके..!
जुड़ा रिस्ता कुछ इस कदर,उसकी यादों से अब…
जैसे ज़िंदगी बसी है,सांसो मे,रवाँ होके…!!
Acct- इंदर भोले नाथ…