Sunday, April 25, 2021

न मिलने की ख्वाहिश न दीदार ए आरज़ू आती है
कि उसके जिस्म से अब बेवफ़ाई की बू आती है

कहाँ ख्वाहिस ए फ़िरदौस थी जहन्नुम बसाये बैठे हैं
कुछ इस क़दर नफरत को दिल से लगाये बैठे हैं

वो बे-वफ़ा हो कर भी वफ़ा की शेर कहता है,हाँ
इक शख़्स ऐसा भी है जो जामुन को बेर कहता है

आज सहमा हुआ सा है वो भी मिट्टी के उड़ानों से
जो कभी चिढ़ जाता था पैरों पे धूल के आ जाने से

बेहद हुआ तो तीर है गर हद मे रहे तो कवच भी है
कड़वा है मगर सच भी है खतरा प्यार टू मच भी है

©® इंदर भोले नाथ

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