सियासत नाच कर रही अमीरों के इशारों पे
रियासत है गुँज रही गरीबों के चित्कारों से
शांति और उन्नति का वो चमन रहा नहीं
आवाम बिखर रहा है अब देश के गद्दारों से
मुंह खोला जब भी उसने जहर ही उगाला है
आस्तीनों में सांप हम ने ही तो पाला है
आसरा दिया उनको हालत पे तरस खाकर
क्या पता था लुट जाएंगे नेकी के विचारों से
फुर्सत मिले तो देखना कभी इस गरीब खाने में
कैसे जी रहे हैं हम दो वक्त की रोटी कमाने में
इक तुम पे ही भरोसा था तुम भी उन जैसा निकले
कर अनदेखा किसानों को जा मिले साहूकारों से
रियासत है गुँज रही गरीबों के चित्कारों से
शांति और उन्नति का वो चमन रहा नहीं
आवाम बिखर रहा है अब देश के गद्दारों से
मुंह खोला जब भी उसने जहर ही उगाला है
आस्तीनों में सांप हम ने ही तो पाला है
आसरा दिया उनको हालत पे तरस खाकर
क्या पता था लुट जाएंगे नेकी के विचारों से
फुर्सत मिले तो देखना कभी इस गरीब खाने में
कैसे जी रहे हैं हम दो वक्त की रोटी कमाने में
इक तुम पे ही भरोसा था तुम भी उन जैसा निकले
कर अनदेखा किसानों को जा मिले साहूकारों से