हम चलते ही रहें बे-हिस हुए
फिर दिल में ना ख्वाहिश हुए
कभी रातों के साये में ढलें
कभी तपती धूप मे हैं जलें
सावन में जलें तपन में हैं गलें
हम हर मौसम चलते ही चलें
बेहिसाब चलें लाजवाब चलें
पन्ने से बन कर किताब चलें
टुटें फिर भी जा़हिर न हुआ
दबाये दिल में हैं अज़ाब चलें
गलियों में चलें शहरों में चलें
फूलों पे चलें पत्थरों पे चलें
आंखों में नमी की न कमी रही
दिल में भी उदासी थमी रही
हम बेबस हो लाचार चलें
हम यार चलें बेशुमार चलें
हम चलते ही रहें चलते ही रहें
रस्ते युं ही कटते ही रहें
©इंदर भोले नाथ
फिर दिल में ना ख्वाहिश हुए
कभी रातों के साये में ढलें
कभी तपती धूप मे हैं जलें
सावन में जलें तपन में हैं गलें
हम हर मौसम चलते ही चलें
बेहिसाब चलें लाजवाब चलें
पन्ने से बन कर किताब चलें
टुटें फिर भी जा़हिर न हुआ
दबाये दिल में हैं अज़ाब चलें
गलियों में चलें शहरों में चलें
फूलों पे चलें पत्थरों पे चलें
आंखों में नमी की न कमी रही
दिल में भी उदासी थमी रही
हम बेबस हो लाचार चलें
हम यार चलें बेशुमार चलें
हम चलते ही रहें चलते ही रहें
रस्ते युं ही कटते ही रहें
©इंदर भोले नाथ