वो शख्स नजरें चुराने का हुनर जानता है
मिल कर भूल जाने का हुनर जानता है
उसकी बातों पर क्यों न यकीं करे कोई
वो कई किरदार निभाने का हुनर जानता है
हम बे-गुनाह होकर भी गुनेहगार हो गयें
वो झूठ को सच बनाने का हुनर जानता है
दौलत और शोहरत की ख्वाहिश भी है उसे
वो फकीरी भी दिखाने का हुनर जानता है
किसी को भी न रास आई मेरी दास्ताँ "इंदर"
वो मुझसे बेहतर सुनाने का हुनर जानता है
© इंदर भोले नाथ
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