Sunday, April 25, 2021

कितनी उदास होती है  ये रात  सुबह आने तक
हमने महसूस किया ये हालात  सुबह आने तक

इतना  उदास के  हर पहर सिहर के गुजरता है
दफ़न हो जाते हैं कई जज़्बात सुबह आने तक

हिज़्रे आलम यूँ के सफ पे लाश सा बिछ जाते हैं
छोड़ जाते हैं  दर्द   निशानात्   सुबह आने तक

है शज़र भी खामोश परिंदे भी चुप चाप से हैं
कइयों को तोड़ जाती है ये रात सुबह आने तक

©® इंदर भोले नाथ

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