Monday, July 20, 2020

कविता

कभी  रिमझिम  फुहारों संग
कभी  तेज हुआ बौछारों संग

देखो लौट के वापस घर आया
है   सावन  फिर बहारों संग

गर्मी से राहत है मिली,फिर
बारिश की आहट है मिली

गरज गरज के तड़प तड़प के
फिर फोटो खींच रही बिजली

नदियाँ मे बहते धारों संग
मनमोहक लिये नजारो संग

देखो लौट के वापस घर आया
है   सावन  फिर बहारों संग  

बागों में झूले लगाने लगी
कई ख्वाब आंखों में सजाने लगी

फिर सखियों संग गोरी मिलके
सावन का राग सुनाने लगी

फिर नाव बनाकर यारों संग
रद्दी और अखबारों संग

देखो लौट के वापस घर आया
है   सावन  फिर बहारों संग

मौजों में  रवानी है
बरस रहा जो पानी है

नाच रहा है खेतों में,फिर
खिल उठा दिल किसानी है

सुख समृद्धि और सहारो संग
दुल्हन और कहारों रो संग

देखो लौट के वापस घर आया
है सावन फिर बहारों संग

कीचड़ से सनी है देह
मिट्टी से बहुत है स्नेह

खेल कबड्डी खेल रहे हैं
बरस रहा जमकर है मेह

बचपन के सब यारों संग
खाब लिये हजारों संग

देखो लौट के वापस घर आया
है  सावन फिर बहारों संग

कभी  रिमझिम  फुहारों संग
कभी  तेज हुआ बौछारों संग

देखो लौट के वापस घर आया
है   सावन  फिर बहारों संग

©भोले नाथ

Monday, July 13, 2020

ग़ज़ल

तुम मिले मिलते ही  सांस चलने लगें
इन निगाहों में फिर ख्वाब पलने लगें

फिर हवाएं आदतन तेज चलने लगी
फिर भी तूफानों में आग जलने लगें

रूबरू होकर तुमसे असर यूं हुआ
बर्फ सा आज फिर हम पिघलने लगे

तोड़कर राब्ता वो अज़ीज़ हुआ है मगर
हम निभा कर भी सबको हैं खलने लगें

दिल लगा के खता तो दिल ने की थी
इंतजार में फिर क्यूँ  देह गलने लगें

© इंदर भोले नाथ






Saturday, July 11, 2020

कविता

अब म्यान मे लिपटी हुई मुझे शमशीर रहने दो
कुछ वक़्त के लिए सही मुझे बे-पीर रहने दो

बहोत विभत्स हो चुका हूँ खुद से ही लड़कर मैं
खामखाँ जन्नत कहने वालों मुझे कश्मीर ही रहने दो

अब म्यान मे लिपटी हुई......

हर वक़्त  मेरे जख्म  मुझे  पुकारते  हैं अब
मेरे जन्नत कहाने पर मुझे धिक्कारते हैं अब

मैने जहन्नुम सा अब  खुद का तस्वीर देखा है
चित्थड़ों मे  बिखरा  हुआ  कई शरीर देखा है

सुर्ख आँखों से खुशी के मेरे  अब  नीर बहने दो
खामखाँ जन्नत कहने वालों मुझे कश्मीर ही रहने दो

अब म्यान मे लिपटी हुई......

कभी  धर्म के  नाम पर  खदेड़ा गया हूँ मैं
कभी मजहब की आड़ में उधेड़ा गया हूँ मैं

मैं कौन हूँ कहाँ हूँ मैं,कइ टुकड़ों में बंटा हूँ मैं
अब सियासत की भूख मे हो गया फन्ना हूँ मैं

बहोत जिल्लत उठा चुका हूँ अब गम्भीर रहने दो
खामखाँ जन्नत कहने वालों मुझे कश्मीर ही रहने दो

अब म्यान मे लिपटी हुई मुझे शमशीर रहने दो
कुछ वक़्त के लिए सही मुझे बे-पीर रहने दो

बहोत विभत्स हो चुका हूँ खुद से ही लड़कर मैं
खामखाँ जन्नत कहने वालों मुझे कश्मीर ही रहने दो

ग़ज़ल

सबसे अलग और सबसे जुदा लिखता
तुम शब्द होती तो तुम्हें मैं बेइंतेहां लिखता

हर शाम लिखता हर सहर लिखता
बस इक तुम्हें ही मैं हर पहर लिखता

हर पन्ने पर सजी तुम कई किताब होती
तुम मुझ में बे-हद और बे-हिसाब होती

कभी तुम्हें गुल तो कभी गुलिश्तां लिखता
तुम शब्द होती तो तुम्हें मैं बेइंतेहां लिखता

हर नज्म हर गजल से तेरी ही खुश्बू आती
हर हर्फ़ में मेरे तुम, कुछ यूं रवां हो जाती

हर किस्से कहानियों में, मेरी जुबानियों मे
सिर्फ़ तुम्ही बसर करती मेरी निशानियों मे

कभी महबूब तो तुम्हें कभी खुदा लिखता
तुम शब्द होती तो तुम्हें मैं बेइंतेहां लिखता

© इंदर भोले नाथ
#6387948060
बलिया, उत्तर प्रदेश

Wednesday, July 8, 2020

ग़ज़ल

उम्र भर तुम से अब कोई वास्ता भी नहीं रखना
हाँ ये भी सही है के जुदा तुमसे रास्ता भी नहीं रखना

मेरी जिंदगी तबाह कर के तुम आबाद रहोगे कैसे
मुझे कैद ए हयात देने वाले तुम आजाद रहोगे कैसे

मैं मिटा दूं खुद को ये मैं हरगिज़ होने नहीं दूंगा
तेरे जेहन से अपनी यादों को मैं खोने नहीं दूंगा

दिल में अधूरी अब कोई दास्ताँ भी नहीं रखना
हाँ ये भी सही है के जुदा तुमसे रास्ता भी नहीं रखना

मेरा क्या है हम अल्फाजों संग जिंदगी गुजार देंगे
ये वादा रहा तुमसे हम तुम्हारी जिंदगी बिगाड़ देंगे

सदियों से चली आई इस रीति को जड़ से उखाड़ना है
तुम जैसी बेवफाओं को अब मुझे ही सुधारना है

तुम जाओ के तुमसे अब कोई राब्ता भी नहीं रखना
हाँ ये भी सही है के जुदा तुमसे रास्ता भी नहीं रखना

उम्र भर तुम से अब कोई वास्ता भी नहीं रखना
हाँ ये भी सही है के जुदा तुमसे रास्ता भी नहीं रखना

© इंदर भोले नाथ

Friday, July 3, 2020

कविता

"सुनो हे भारत माता"

तांडव करेंगे रूद्र बनकर 
दिखा देंगे जो शौर्य हमारा है 
सुनो हे भारत माता 
हमको सौगंध तुम्हारा है

राणा की वो भाल बन के 
तांडव वो कमाल बन के
हम विध्वंश करेंगे शत्रु का
चेतक सा वो चाल बन के 

मौत ही विकल्प एकमात्र बन के 
चौहान वंश का पात्र बन के
हम विध्वंश करेंगे शत्रु का
माँ शक्ति सा कालरात्रि बन के

अशोक सम्राट महान बन के
गुप्त वंश का आन बन के
हम विध्वंश करेंगे शत्रु का
मां भारती की शान बन के

भगत सिंह की बोली बन के 
खून की होली बन के
हम विध्वंश करेंगे शत्रु का
आजाद की गोली बन के

चाणक्य की नीति बन के
रघुकुल की रीति बन के 
हम विध्वंश करेंगे शत्रु का 
महान विक्रमदित्य बन के

राम का धनुष बाण बन के 
सुदर्शन चक्र महान बन के
हम विध्वंश करेंगे शत्रु का 
झांसी की कृपाण बनके 

हिमालय सा पहाड़ बनके
सिंह सा दहाड़ बन के
हम विध्वंश करेंगे शत्रु का 
ब्रह्मास्त्र सा बाण बन के

चामुंडा  सा रक्त चाट के 
काली सा खप्पर लिये हाथ मे
हम विध्वंश करेंगे शत्रु का 
कपाली सा नर मुंड काट के

यू पी वाला तेवर बन के 
मौत का जेवर बन के
हम विध्वंश करेंगे शत्रु का
वीर सिंह कुंवर बन के

हर तरफ गूंजा यही नारा है 
जर्रे जर्रे ने यही पुकारा है 
पीठ पे वार करने वालों सुनो 
अब सुनुश्चित् विध्वंस तुम्हारा है

तांडव करेंगे रूद्र बनकर 
दिखा देंगे जो शौर्य तुम्हारा है
सुनो हे भारत माता
हमको सौगंध तुम्हारा है
©इंदर भोले नाथ

जय श्री राम ही बोलेंगे

मुंह खोलने से पहले, हम हर शब्द तोलेंगे, किन्तु
झूठी कौम की आड़ में तुम सा जहर नहीं घोलेंगे

तुम्हारी चादरों से ढकी हम हर राज खोलेंगे,उचित है
वंशज हैं हम राम के, तो जय श्री राम ही बोलेंगे

मुंह खोलने से पहले..

जो  गुजर चुका है फिर  वही  इतिहास  दोहरायेंगे
पहले दंभ करेंगे चूर, फिर  तुम्हारी चिता जलायेंगे

जो पहचान है सदियों से वही हिंदुस्तान बनाएंगे
तुम्हारे  सीने पे  फिर से  वही  भगवा  लहराएंगे

खून से सनी वो राणा की भाल हो लेंगे, उचित है
वंशज हैं हम राम के, तो जय श्री राम ही बोलेंगे

मुंह खोलने से पहले..

महाभारत की युद्ध मे तुम्हारी निशां तक दिखी नहीं
राम चरित मानस में तुम्हारी किस्सा तक लिखी नहीं

हो कौन कहाँ से आये हो,किस ग्रह किस जहाँ से हो
जो कौड़ी के मोल भी, तुम्हारी  औकात  बिकी नहीं

इक बार नहीं सौ बार नहीं हर बार यही बोलेंगे,उचित है
वंशज  हैं  हम राम के,  तो  जय श्री राम  ही बोलेंगे


मुंह खोलने से पहले..