पहले जैसा अब गुफ्तगु नहीं होता
कभी मैं नहीं तो कभी तुं नहीं होता
मिलते फिर कभी उसी ठिकाने पे
बारहा "इंदर" ऐसा क्यूं नहीं होता
कभी मैं नहीं तो कभी तुं नहीं होता
मिलते फिर कभी उसी ठिकाने पे
बारहा "इंदर" ऐसा क्यूं नहीं होता
इंदर भोले नाथ....... आधुनिक हिंदी साहित्य से परिचय और उसकी प्रवृत्तियों की पहचान की एक विनम्र कोशिश : भारत