Friday, February 19, 2016

तुफां ने ली जो अंगड़ाई

तुफां ने ली जो अंगड़ाई
खत्म हर शाख हो गयें,
परिन्दे उड़ गएं शायद
घर बर्बाद हो गयें…!!
…इंदर भोले नाथ…

Tuesday, February 16, 2016

बसंत का मौसम


बसंत का मौसम
है महका हुआ गुलाब
खिला हुआ कंवल है,
हर दिल मे है उमंगे
हर लब पे ग़ज़ल है,
ठंडी-शीतल बहे ब्यार
मौसम गया बदल है,
हर डाल ओढ़ा नई चादर
हर कली गई मचल है,
प्रकृति भी हर्षित हुआ जो
हुआ बसंत का आगमन है,
चूजों ने भरी उड़ान जो
गये पर नये निकल है,
है हर गाँव मे कौतूहल
हर दिल गया मचल है,
चखेंगे स्वाद नये अनाज का
पक गये जो फसल है,
त्यौहारों का है मौसम
शादियों का अब लगन है,
लिए पिया मिलन की आस
सज रही “दुल्हन” है,
है महका हुआ गुलाब
खिला हुआ कंवल है…!!
…….इंदर भोले नाथ…….


“अब भी आता है”
ज़रा टूटा हुआ है,मगर बिखरा नहीं है ये,
वफ़ा निभाने का हुनर इस दिल को अब भी आता है…
तूँ भूल जाए हमे ये मुमकिन है लेकिन,
हर शाम मेरे लब पे तेरा ज़िक्र अब भी आता है…
हज़ारों फूल सजे होंगे महफ़िल मे तेरे लेकिन,
मेरे किताबों मे सूखे उस गुलाब से खुश्बू अब भी आता है…
न गुज़रेगी कभी तूँ इस रस्ते से लेकिन,
करना उम्मीद तेरे आने का हमे अब भी आता है…
ज़रा टूटा हुआ है मगर बिखरा नहीं है ये,
वफ़ा निभाने का हुनर इस दिल को अब भी आता है…
२७/०९/२०१० @ इंदर भोले नाथ…

भूख की आग…………
बहुत पहले की बात है किसी राज्य मे एक राजा रहता था ! राजा बहुत ही बहादुर,पराकर्मी होने के साथ-साथ घमंडी और दुष्ट प्रवृति का भी था ! उसने बहुत से राजाओं को हराकर उनके राज्य पर कब्जा कर लिया ! उसके बहादुरी और दुष्टता के किस्से दूर-दूर तक फैला हुआ था ! वो किसी भी साधु-महात्मा का कभी सत्कार नहीं करता था,बल्कि उनसे ईर्ष्या करता था !
एक बार उसने किसी राज्य पर आक्रमण किया वहाँ के राजा को बंदी बनाकर उसके राज्य पर कब्जा कर लिया ! जीत की खुशी मे उसने एक बहुत बड़ा जश्न का आयोजन किया,जिसमे उसने अन्य राज्य के राजाओं,राजकुमारों और बड़े-बड़े उद्योगपति और
ब्यापारियों को आमंत्रित किया ! उसने अपने कर्मचारियों को आदेश दिया कि जश्न मे सिर्फ़ उन्हे ही आने दिया जाए जो किसी राज्य के राजा,राजकुमार,उद्योगपति या ब्यापारी हो, अन्यथा और किसी को न आने दिया जाए ! वरना उसके साथ-साथ कर्मचारियों को भी सज़ा दी जाएगी !
उसी दिन एक महात्मा जो किसी दूर राज्य से चलकर उस राज्य मे प्रवेश किए थें ! २-३ दिनों से कुछ खाया नहीं था,भूख और प्यास से उनका बुरा हाल था ! तभी दूर वो जश्न नज़र आया उन्हे,लंबे-लंबे कदम भरते हुए वो भी उसमे शामील होने पहुँचे ! मगर राजा केकर्मचारियों ने उन्हे,अंदर जाने से मना कर दिया बोले हमारे राजा का हुक्म है कि सिर्फ़ राजा, राजकुमार, उद्योगपत्तियों और ब्यापारियों को ही अंदर जाने दिया जाए ! अन्यथा वो उसके साथ-साथ हमें भी सज़ा देंगे ! महात्मा ने बड़े अनुनय-विनय किए कर्मचारियों से,मगर वो भी क्या करें उन्हे भी तो हिदायत दी गई थी ! महात्मा वापस लौट आएँ,मगर पेट की आग उन्हे मजबूर कर रही थी, भूख की आग अब सहा नहीं जा रहा था ! और दूर से पकवान की खुश्बू उन्हे और मजबूर कर रही थी, वहाँ जाने को ! दूसरे रास्ते से कर्मचारियों से छुपते-छुपाते वो किसी तरह वहाँ पहुँच गये जहाँ पकवान खिलाया जा रहा था ! तभी किसी कर्मचारी ने उन्हे देख लिया और पकड़ के राजा के पास ले गया !
राजा ने उस महात्मा को बड़े ही घृणा भरे दृष्टि से देखते हुए, कहा तुम कैसे महात्मा हो जो थोड़ी सी भूख बर्दास्त नहीं कर पाए और चोरी से हमारे जश्न मे शामील हो गये ! तुम महात्मा नही चोर हो, और भी खरी खोटी सुनाते हुए राजा ने महात्मा को बिना खाना खिलाए ही अपने सैनिकों को आदेश दिया कि महात्मा को १०० कोडे लगाकर राज्य से बाहर कर दिया जाए !
बहुत दिनों बाद एक दिन राजा अपने सैनिकों के साथ जंगल मे शिकार खेलने गया ! घना जंगल दूर-दूर तक फैला हुआ था !
शिकार की तलाश मे राजा काफ़ी दूर निकल आया ! सैनिक भी कहीं पीछे छूट गये थें, घना जंगल था राजा रास्ता भूल गया और जंगल मे भटक गया ! काफ़ी कोशिश की राजा ने रास्ता ढूँढने की और अपने सैनिकों से मिलने की मगर नाकामयाब रहा!
जंगल मे इधर-उधर भटकते हुए राजा काफ़ी थक गया, भूख और प्यास भी लग गई थी ! राजा खाना और पानी की तलाश मे भटकता रहा,मगर नाही उसे खाने के लिए फल मिले और नाही जंगल मे कोई झरना दिख रहा था जिससे वो अपनी प्यास बुझा सके ! बुरा हाल था राजा का एक तो सफर करते-करते थक गया था,उपर से भूख और प्यास ने राजा को ब्याकुल कर दिया ! जंगल मे भटकते-भटकते रात होने लगी, तभी कहीं दूर राजा को हल्की सी रोशनी दिखाई दी ! लंबे-लंबे कदम भरते हुए राजा रोशनी के पास पहुँचा, एक छोटी सी झोपड़ी के अंदर दीपक जल रहा था ! राजा झोपड़ी के पास जाके देखा, एक महात्मा जो ध्यान मग्न थें ! राजा झोपड़ी के समीप ही मुँह के बल जमीन पे गीर गया,एक तो थका उपर से भूख और प्यास ने राजा को निर्बल बना दिया था ! राजा के गीरने की आहट सुन के महात्मा का ध्यान टूटा, बाहर आकर देखा झोपड़ी के समीप कोई इंसान अधमरा सा मुँह के बल जमीन पर गीरा पड़ा है ! महात्मा अंदर से जल लेकर आए और राजा के मुँह पे छींटे मारा, राजा होश मे आया और उनके हाथ से जल का पात्र छीन सारा जल एक ही घूँट मे पी गया !
महात्मा ने उससे पूछा…. कौन हो आप और इतनी रात गये इस जंगल मे क्या कर रहे हो ! राजा महात्मा के चरणों मे गीरते हुए बोला हे महात्मा पहले आप मुझे कुछ खाना खिलाए मैं भूख से मरा जा रहा हूँ ! उसके बाद मैं आपको सारा वृतांत बताउँगा ! महात्मा ने कहा….पहनावा और कमर की तलवार बता रही है कि आप कहीं के राजा हो, अभी मेरे पास कुछ विशिष्ट तो नहीं है आपको खिलाने के लिए ! हाँ ये (एक पात्र जिसमे कुछ फल रखे हुए थे,उसकी तरफ इशारा करते हुए बोले) कुछ फल पड़े हुए हैं जिसे बंदरों ने जूठा कर दिया है, अगर आप चाहे तो…..अभी महात्मा ने अपनी बात पूरी भी नहीं की थी, राजा उठा और फल का पात्र उठा के सारा फल खा गया,पानी पी के वहीं जमीन पर लेट गया ! महात्मा ने कहा हे राजन अगर आप चाहों तो झोपड़ी मे विश्राम कर सकते हो ! राजा ने का नहीं महात्मा आज मुझे सच्ची भूख उन फलों मे और गहरी नींद का एहसास इस जमीन पे हो रहा है ! और राजा वहीं जमीन पर सो गया !
सुबह महात्मा ने राजा को उठाते हुए कहा..हे राजन उठो सुबह हो गया, चलो झरने के शीतल जल मे स्नान कर के कुछ ताजे फल ख़ालो ! राजा ने जैसे ही आँखे खोली सामने महात्मा का चेहरा देख के हत्‍ताश सा हो गया और उनके चरण पकड़ के क्षमा माँगने लगा ! हे महात्मा क्षमा कर दीजिए हमें, हमने आपके साथ बड़ा ही दुष्ट ब्यवहार किया था, हमसे बहुत बड़ा पाप हो था उस दिन हमें क्षमा करें, हे महात्मा ! हमने आपको बीना भोजन कराए, और १०० कोडे की सजा देकर अपने राज्य से निकाला था, मैं बहुत बड़ा पापी हूँ, हे महात्मा मुझे क्षमा करें ! भूख और प्यास की आग क्या होती है, ये मुझे कल पता चला, मुझे क्षमा करें हे महात्मा, राजा घंटों तक महात्मा के चरणों से लिपटा क्षमा माँगता रहा !
महात्मा ने कहा हे राजन मेरे मन मे तुम्हारे लिए कोई द्वेष या क्रोध नहीं है ! मैने तो तुम्हे उसी दिन क्षमा कर दिया था !
महात्मा ने राजा को झरने के शीतल जल मे स्नान करा कर कुछ ताजे फल दिए खाने को, राजा फल खा रहा था , तब तक राजा के सैनिक भी राजा को ढूंढते हुए वहाँ पहुँच चुके ! राजा ने सैकड़ो बार महात्मा को अपने राज्य चलने को कहा, पर महात्मा ने मना करते हुए कहा… हे राजन आज तो नहीं मगर फिर कभी ज़रूर आउँगा आपका अतिथ्या स्वीकार करने !
राजा ने महात्मा से विदा लेते हुए अपने किए हुए दुष्ट ब्यव्हार का फिर से क्षमा माँगा और अपने सैनिकों के साथ अपने राज्य वापस लौट आया !

 फिर उसके राज्य के लोगों ने जिस राजा को देखा ये राजा वो राजा नहीं था, जिसमे घमंड और दुष्टता भरा हुआ था ! जो साधु-महात्मा का सत्कार नहीं करता और उनसे ईर्ष्या करता था ! बल्कि उस राजा को देखा जो नम्रता और अपने प्रजा के साथ अच्छा ब्यव्हार करता और साधु-महात्माओं का सत्कार और उनकी इज़्ज़त करता !
…………………………………………………....ख़त्म…..……………………………………………
………………………………………...लेखक- इंदर भोले नाथ………………….…………………..

Monday, February 15, 2016

आँखों को जो उसका दीदार हो जाए
मेरा सफ़र भी मुकम्मल यार हो जाए
मैं भी हज़ारों ग़ज़ल लिखता उसपे
काश..हमें भी किसी से प्यार हो जाए
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……......इंदर भोले नाथ…...……...

Sunday, February 14, 2016

ढूंढता फिर रहा खुद को...

कहीं गुम-सा हो गया हूँ मैं
क़िस्सों और अफ़सानों मे…
ढूंढता फिर रहा खुद को
महफ़िलों और वीरानों मे…
कभी डूबा रहा गम मे
कभी खुशियों का मेला है…
सफ़र है काफिलों के संग
पाया खुद को अकेला है…
प्यालों मे ढलते,देखा कभी
कभी मीला मयखानों मे…..
ढूंढता फिर रहा खुद को
महफ़िलों और वीरानों मे…
कभी तो रु-ब-रु हो
“ऐ-इंदर” हमसे…
हसरतों की गुज़ारिश
है मिलने की तुमसे…
कभी यहाँ,कभी वहाँ
न जाने ढूँढा,कहाँ-कहाँ…
जहाँ खो गया है तूँ
है वो कौन सी जहाँ…
मीला न तूँ मुझे कहीं
तेरे हर ठिकानों मे…
ढूंढता फिर रहा खुद को,
महफ़िलों और वीरानों मे…
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Acct-इंदर भोले नाथ…..

Wednesday, February 10, 2016

चूहों ने जब हिम्मत बनाई ,
बिल्ली को मार भगाने की…
तब बिल्ली ने ढोंग रचाई,
की तैयारी हज को जाने की…
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Acct- इंदर भोले नाथ…
२१/०१/२०१६….

Tuesday, February 9, 2016

खेदारु…. एक छोटी सी कहानी….
गंगा नदी के तट से कुछ दूर पे एक छोटा सा गाँव (चांदपुर) बसा है ! जो उत्तर प्रदेश के बलिया जिले मे स्थिति है,उस गाँव मे (स्वामी खपड़िया बाबा ) नाम का एक आश्रम है, जहाँ बहुत से साधु-महात्मा रहते हैं !
उन दिनों गर्मियों का मौसम था, एक महात्मा आए हुए थें ! जिनका नाम स्वामी हरिहरानंद जी महाराज है, बाबा हर शाम को उस आश्रम मे सत्संग (प्रवचन) सुनाया करते थें ! जिसे सुनने आस-पास के गाँव के लोग और दूर के गाँव के लोग भी आते थें !
उस दिन बाबा इंसानी प्रवृति और नशे की चीज़ों जैसे- गुटखा,खैनी,बीड़ी,सिगरेट,जर्दा,शराब आदि जैसी नशीली चीज़ो पर (जो कितना बुरा असर करते हैं इंसानी शरीर पर ) इसके बारे मे लोगों को बता रहे थें,(प्रवचन दे रहे थें) !
सभी लोग बड़े ध्यान से बाबा का प्रवचन सुन रहे थें ! तभी बाबा की नज़र उस इंसान पे पड़ी जो बिल्कुल उनके सामने (सबसे आगे चौकी के नीचे ) बैठा था ! सभी लोग तो बड़े ध्यान से बाबा का प्रवचन सुन रहे थें, पर वो इंसान बड़े ही लगन से अपने हथेली मे खैनी (तंबाकू) रगड़ने (बनाने) मे ब्यस्त था ! अचानक से बाबा की नज़र पड़ी उसपे, बाबा ने उसे अपने पास बुलाया और उससे उसका नाम पूछा !
वो बोला बाबा…..हमरा नाम खेदारु है बाबा, इहे पास के गाँव का रहने वाला हूँ !
बाबा बोलें ठीक है, ये बताओ तुम खैनी (तंबाकू) कब से खा रहे हो ! वो बोला बाबा ई त हम बचपन से जब ८-९ साल का रहा, तब से खा रा हूँ ! फिर बोला बाबा हमरा से कवनो ग़लती हो गया का, माफी चाहता हूँ बाबा ! बहुत दिन से हमहु चाहता हूँ, ई का (खैनी) को छोड़ना पर का करूँ बाबा ई (खैनी) हमरा को छोड़ती ही नहीं ! बहुतई कोशिश किया हूँ,बाबा पर ई (खैनी) हमका नहीँ छोड़ती !
उसकी बातें सुनने के बाद, बाबा बोलें- लाओ दिखाओ वो (खैनी) जो तुम्हे नहीं छोड़ती,ज़रा हम भी देखें वो क्यों नहीं छोड़ रही तुम्हे ! फिर खेदारु ने अपनी पेंट की जेब से चीनौटी (एक छोटी सी डब्बी जिसमे खैनी रखते हैं) नीकाली और बाबा को दे दिया !
बाबा चीनौटी को अपने बगल मे रख के खेदारु को बोलें जाओ और अपनी जगह पे बैठ जाओ, और हाँ जब तुम्हे इसे (खैनी) खाने का मन करे तो इसे अपने पास बुला लेना ! तुम मत आना इसके पास चल के इसे खाने के लिए ! फिर देखते हैं क़ि ये तुम्हारे पास चल के जाती है या तुम खुद चल के इसके पास आते हो !
अगर ये (खैनी) तुम्हारे पास चल के गई तो हम मानेंगे क़ि ये तुम्हे नहीं छोड़ रही,
अन्यथा तुम ही इसे नहीं छोड़ रहे हो……..
बस……….बाबा की बात खेदारु के भेजे मे समझ आ गई……………!!
……………………………………………………….ख़त्म……………………………………………………
…………………………………………….….इंदर भोले नाथ…………………………………………...

यूँ तो लगती फरेब है,
ख्वाबों ख्यालों की ये दुनिया…
मगर देखा है मैने “इंदर”,
कुछ ख्वाब मुकम्मल होते हुए…
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Acct- इंदर भोले नाथ…
बिखरे हुए ल्फ्ज़,अल्फाज़ों मे निखर गयें,
निखरे मेरे-अल्फ़ाज़,जब हम बिखर गयें…
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Acct-इंदर भोले नाथ…
08/02/2016
पर अब है,इतना वक़्त कहाँ...

फिर लौट चलूं मैं,”बचपन” मे,
पर अब है,इतना वक़्त कहाँ…
खेलूँ फिर से,उस “आँगन” मे,
पर अब है,इतना वक़्त कहाँ…
क्या दिन थें वो,ख्वाबों जैसे,
क्या ठाट थें वो,नवाबों जैसे…
फिर लौट चलूं,उस “भोलेपन” मे,
पर अब है,इतना वक़्त कहाँ…
हर रोज था,खुशियों का मेला,
हर रात थी,सपनों की महेफिल…
फिर लौट चलूं,उस “सावन” मे,
पर अब है,इतना वक़्त कहाँ…
कोई पहेरा न था,बंदिशों का,
जख्म गहेरा न था,रंजिशों का…
फिर लौट चलूं,उस जीवन मे,
पर अब है,इतना वक़्त कहाँ…
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…...….इंदर भोले नाथ...…….

Tuesday, February 2, 2016

कुछ तो बहेका होगा,
रब भी तुझे बनाने मे…
सौ मरतबा टूटा होगा,
ख्वाहिशों को दबाने मे…!!
आँखों मे है नशीलापन,
लगे प्याले-ज़ाम हो जैसे…
गालों पे है रंगत छाई,
जुल्फ घनेरी शाम हो जैसे…
सूरज से मिली हो लाली,
शायद,लबों को सजाने मे…
कुछ तो बहेका होगा,
रब भी तुझे बनाने मे…!!
मलिका हुस्न की हो या,
हो कोई अप्सरा तुम…
जो भी हो खुदा की कसम,
हो खूबसूरत सी बला तुम…
तुमसा कोई और नहीं,
अब है कहीं जमाने मे…
कुछ तो बहेका होगा,
रब भी तुझे बनाने मे…!!
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Acct- इंदर भोले भोले…