कि मैं चलता गया वो बुलाता गया
इक चेहरा यूँ मुझ को लुभाता गया
लत्त् ऐसी लगी उसमे खोने की मुझको
मैं खुद को ही खुद से भुलाता गया
परिंदा खाबों का बैठा पलकों पे कभी
कोई पत्थर से उसको उड़ाता गया
मैं उड़ानों की सफर पे था बेशक मगर
वो बारिस वो कश्ती याद आता गया
© इंदर भोले नाथ
बाबा भृगु की नगरी
बागी बलिया, उत्तर प्रदेश
#6387948060
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