Friday, August 7, 2015

"मेरे लाल"


फूलों पे बैठे
भौंरे गुनगुनाने
लगे हैं..
तितलियों के
पंख भी अब
लहराने लगे हैं..
देखो वक़्त
कितना निकल
चुका है..
उठो मेरे लाल
दिन निकल
चुका है..
देखो ठंडी हवा
भी खिड़कियों
से आने लगी है....
गुदगुदा के वो
भी तुम्हे उठाने
लगी है...
देखो तो सब
कुछ कितना
बदल चुका है..
उठो मेरे लाल
दिन निकल
चुका है..
हर जगह
कितनी रौनक
है आ गई.....
आसमान से
ज़मीं तक बहारें..
है छा गई......
एक तुम क्या
सोए हो घर
सुना सा लग
रहा है........
उठो माँ कह के
अब तो मुझे
पुकारो,ये शब्द
सुनने को
दिल मचल
चुका है...
उठो मेरे लाल
दिन निकल
चुका है..

Acct- इंदर भोले नाथ सिंह.....(IBN)

१५/०४/२००७ @ इंदर @ मेरे_अल्फ़ाज़_इंदर

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