Friday, August 7, 2015


"लल्ला"


उस दिन इंटरव्यू के लिए जाना था मुझे, किसी कंपनी से कॉल आया था ! जल्दी से तैयार होकर मैं स्टेशन पहुँचा, अभी १५-२० मिनट का समय था, लोकल ट्रेन के आने मे....
टिकेट लेके मैं वेटिंग रूम मे बैठकर ट्रेन का इंतेज़ार करने लगा ! तभी एक मासूम सा बच्चा जिसकी उम्र यही कोई ६-७ साल की होगी,फटा सा कमीज़ पहने वेटिंग रूम मे आकर लोगों के आगे चन्द सिक्कों के लिए हाथ फैला रहा लगा ! या यूँ कहे के भीख माँग रहा था,
कोई उसपे ध्यान नही देता तो कोई दुत्कार देता या गलियाँ दे कर भगा देता था ! फिर भी वो बच्चा हर अगले के सामने हाथ फैला देता था ! किसी भले इंसान ने २-४ रुपये दिए भी थे....क्योंकि चन्द सिक्के उसके हाथों मे दिख रहे थे ! यूँ ही माँगते हुए वो मेरे पास आया, और मेरे पैर छू के मुझसे पैसे माँगने लगा ! मैने उसे वो खाना देना चाहा जो खाना मैं घर से लेकर चला था रास्ते मे खाने के लिए ! मैने उसकी तरफ वो खाने का थैला बढ़ा दिया ! उसने मना कर दिया खाना लेने से, और बोला भैया मुझे खाना नहीं चाहिए मुझे पैसे चाहिए,
मैने कहा पैसे से तुम खाना ही खरीद कर खाओगे..नहीं मुझे पैसे की ज़रूरत है ! फिर मैने उसे पर्स से ५ रुपये का नोट निकाल कर दिया.. वो बहुत खुश हुआ ५ रुपये का नोट देखकर, पैसे लेकर बोला भैया ये खाना भी ले लूँ...... मैने खाना भी उसे दे दिया ! खाना लेकर वो जाने लगा, दुबारा मैने उसे अपने पास बुलाया, और उसका नाम पूछा ! बोला माँ मुझे "लल्ला" कह के बुलाती है, मेरा नाम "लल्ला" है ! कहाँ है तुम्हारी माँ और क्या करती हैं.... मैने उससे पूछा........!
वो रोने लगा और रोते हुए बोला मेरी माँ को बुखार है, २ दिनों से सोई हुई है ! वो काम पर भी नहीं जाती है, खाना भी नहीं बनाती, घर मे कुछ खाने को भी नहीं है....मैने कल से कुछ नहीं खाया, बहुत भूख लगी है मुझे...........मैने पूछा तुम्हारे पापा
कहाँ है............वो बड़े मासूम से लहजे मे बोला......पापा तो मर गये, बहुत दिन पहले....माँ कहती है, तब मैं बहुत छोटा था.....उसकी ये बातें सुनके दिल भर सा आया मेरा...
मैने कहा खाना ख़ालो, उसने कहा नहीं...घर ले जाके माँ के साथ खाउँगा ! और इन पैसों से दवा ख़रीदुउँगा, माँ को बुखार है न....इसलिए.................................उस मासूम से बच्चे का अपने माँ के प्रति प्यार देख कर दिल भर गया मेरा.........
दो दिनों से तो ये भी भूखा है, इसने भी दो दिनों से कुछ नहीं खाया, फिर भी खाना अकेला न खाकर माँ के साथ ही खाउँगा कह रहा है ! इतनी सी उमर मे कितनी बड़ी सोच रखता है..धन्य है वो माँ "लल्ला" जिसने तुझे पैदा किया ! मैं अपना इंटरव्यू भूल गया..और उसके साथ मैं उसके घर गया !
एक छोटी सी बस्ती थी, मुश्किल से १० या १२ घर होंगे कुल........उसी बस्ती मे एक छोटा सा कमरा था..कुछ चीज़ें इधर-उधर बिखरी पड़ी थी ! वहीं फर्स पे एक महिला मैले-कुचले एक पुरानी सी साड़ी पहने हुए कमरे के एक कोने मे लेटी हुई थी ! जिनकी उम्र तकरीबन २५-२८ साल की होगी....पर ग़रीबी की थपेड़ों और किस्मत की मार से ५० साल की लग रही थी !
पास जाकर देखा... बहुत तेज बुखार था.....शरीर तप रहा था......
मैं कमरे से बाहर आया और स्टेशन की तरफ चल दिया, स्टेशन के बगल मे एक छोटा सा क्लिनिक था ! वहाँ से डॉक्टर साहब को लेके मैं सीधा "लल्ला" के घर आया, डॉक्टर साहब ने चेक-अप कर के एक इंजेक्सन और कुछ दवा दिए खाने को !
और कहा शाम तक ठीक हो जाएँगी, मैने डाक्टर साहब को पैसे दिए ! डाक्टर साहब के जाने के बाद, मैने "लल्ला" को बोला
"लल्ला" तुम्हारी माँ शाम तक ठीक हो जाएँगी..............कुछ देर तक मैं वहीं रहा उनकी अवस्था कुछ ठीक हुई.....
तो उन्होने बताया के उनके पति का ४ साल पहले देहांत हो गया...... पास के गाव मे बड़े लोग रहते हैं.....उन्ही के यहाँ झाड़ू-पोछा करती हूँ तो कुछ पैसे मिल जाते है !
फिर मैने कहा अच्छा अब मैं चलता हूँ..... मुझे इंटरव्यू के लिए जाने हैं........ ये कुछ पैसे हैं........रख लो आप.........
उसने बहुत सारी दूवाएँ दी मुझे और भगवान से मेरी लंबी उमर के लिए दूवाएँ मांगती रही.....

मैं बाहर आके "लल्ला" को अपने पास बुलाया और बोला "लल्ला" अब न जाना स्टेशन पर तुम्हारी माँ शाम तक ठीक हो जाएँगी ! फिर वो काम पर भी जाएँगी और तुम्हारे लिए खाना भी बनाएँगी....................

फिर मैं स्टेशन की तरफ चल पड़ा, दिल मे एक ही नाम लिए......................................"लल्ला"

Acct- इंदर भोले नाथ सिंह....(IBN)


१७/०५/२०१५ @ इंदर @ #मेरे_अल्फ़ाज़_इंदर


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