Tuesday, June 9, 2020

ये झुठी दर्द और दुहाई बयां करते लोग
गरीबी  से गरीबों को तबाह करते लोग

ये क्या जानें जलती रेत पर नंगे पांव चलने का दर्द
दो रोटी को मोहताज हो कर भूख से मरने का दर्द

कभी निकलो तपती धूप में अपने बच्चों के साथ
तुम भी गुजारो कभी  रेल की पटरी पर इक रात

ए.सी में बैठे बैठे तुमने हमारा दर्द महसूस कर लिया
हमें खबर भी नहीं और तुमने हमें महफूज कर लिया

हमारे दर्द सुना कर तुम कुछ आह भर गये
वो सुने तुम्हारे शब्द और कई वाह कर गये

क्या फर्क पड़ा तुम्हारे सुनने और सुनाने से
फिर भी तो हमारे जैसे कई बेगुनाह मर गये

किसी की पूजा है अधुरी किसी को नमाज़ की फिकर
वहां कई बेघर हो भूख से मर गये, यहाँ किसको खबर है

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