जब डमरू डम डम बोले है
तब तन मन मेरा डोले है
तुम हाल न पूछो इंदर का
सब कुछ बम बम भोले है
इक तुम्हारे वास्ते वो क्या-क्या सहती है
तुम्हें सुलाने को रातों को जगती रहती है
तुम व्यर्थ ही मंदिरों के चक्कर लगाते हो
अरे खुद मां के पैरों में ही जन्नत बसती है
जो कहती थी कभी,इंदर मुझे भुला तो ना दोगे
आज वह गैरों के नाम की मेहंदी रचाए बैठी है
जिसकी यादों के बिन मेरा इक लम्हा भी गुजरा न हो
वो किसी रकिब की खातिर मुझे ही भुलाये बैठी है
तेरे दर पे पूरी मेरी कोई इबादत क्यों नहीं होती
ऐ इश्क़ तेरी रहमत की मुझपे इनायत क्यों नहीं होती
हर मुहल्ला मेरी बदनामी के किस्से सुनाते हैं
के तेरी बेवफाई की भी शिकायत क्यों नहीं होती
ये झुठी दर्द और दुहाई बयां करते लोग
गरीबी से गरीबों को तबाह करते लोग
ये क्या जानें जलती रेत पर नंगे पांव चलने का दर्द
दो रोटी को मोहताज हो कर भूख से मरने का दर्द
कभी निकलो तपती धूप में अपने बच्चों के साथ
तुम भी गुजारो कभी रेल की पटरी पर इक रात
ए.सी में बैठे बैठे तुमने हमारा दर्द महसूस कर लिया
हमें खबर भी नहीं और तुमने हमें महफूज कर लिया
हमारे दर्द सुना कर तुम कुछ आह भर गये
वो सुने तुम्हारे शब्द और कई वाह कर गये
क्या फर्क पड़ा तुम्हारे सुनने और सुनाने से
फिर भी तो हमारे जैसे कई बेगुनाह मर गये
किसी की पूजा है अधुरी किसी को नमाज़ की फिकर
वहां कई बेघर हो भूख से मर गये, यहाँ किसको खबर है
ये हवा जब तुम्हारी खुशबू लाये
जोश ए जुनूँ बदन में हरसू लाये
न ज़ोर चले न इस पे काबू आये
दिल को बस तेरी ही आरजू आये
न ख्याल न ज़िक्र किसीका हो अब
लबों पे बस तेरा ही गुफ्तगू आये
दर बदर फिरू के गुमनाम हो जाऊं
युँ इस क़दर नशा तेरी जुस्तज़ू लाये
©इंदर भोले नाथ
मेरी हर ग़ज़ल मे तो ज़िक्र तेरा ही होता है
हाँ ये अलग बात है के तेरा नाम नहीं होता
©इंदर भोले नाथ
मेरे इश्क़ की और इंतेहाँ क्या है
मेरी खुदी पूछती है मेरा पता क्या है
के तेरे बाद कोई असर तो रहे
मेरे दिल में यादों की बसर तो रहे
मेरी हर शाम गुजरे इसी उम्मीद मे
के तेरे आने की कोई खबर तो रहे
तुमने जो भुला दिये कहानी की तरह
किसी ने उसे रखा है निशानी की तरह
इस जहाँ से परे कोई बे-खबर तो रहे
प्यासा कहीं गुमनाम इक शजर तो रहे
© इंदर भोले नाथ
सहर ढूँढता और रात जागती रही मेरी
के तेरी तलाश में ज़िंदगी भागती रही मेरी
#इंदरभोलेनाथ
@InderBhole
ये शाम फिर वही पहचानी सी है
आंखों में फिर वही कहानी सी है
रोज खामोशियों में गुजरते हैं पल
दास्तां इश्क़ की वही पुरानी सी है
ये शाम फिर.....
तुं मुझ में है या तुझ में हूँ मैं
आज तक ये समझ पायें न हम
खामोशी है या जुबानी सी है
मुझ में तेरी कोई निशानी सी है
ये शाम फिर........
अधूरे स्वप्न कुछ तुम्हारे भी हैं
ख्वाहिशें कुछ अधूरी हमारी भी है
तेरे दिल में भी हलचल तूफानी सी है
मेरी आँखों मे भी थोड़ी पानी सी है
ये शाम फिर.....
इक आस है, जो खास है
आँखों में इक नमी सी है
हाँ मैं मुकम्मल हूँ लेकिन
कहीं तो कुछ कमी सी है
कोई तो है जो न गुजरा है
मुझमें अब भी वो ठहरा है
मैं उसे जुदा कर भी देता,वो
जीने के लिये लाज़मी सी है
लगे ज़ख़्म भी मिटा दियें तुम्हारे खत भी जला दियें
फिर भी पुछता है दिल क्या मैंने......तुम्हें भुला दियें
तब तन मन मेरा डोले है
तुम हाल न पूछो इंदर का
सब कुछ बम बम भोले है
इक तुम्हारे वास्ते वो क्या-क्या सहती है
तुम्हें सुलाने को रातों को जगती रहती है
तुम व्यर्थ ही मंदिरों के चक्कर लगाते हो
अरे खुद मां के पैरों में ही जन्नत बसती है
जो कहती थी कभी,इंदर मुझे भुला तो ना दोगे
आज वह गैरों के नाम की मेहंदी रचाए बैठी है
जिसकी यादों के बिन मेरा इक लम्हा भी गुजरा न हो
वो किसी रकिब की खातिर मुझे ही भुलाये बैठी है
तेरे दर पे पूरी मेरी कोई इबादत क्यों नहीं होती
ऐ इश्क़ तेरी रहमत की मुझपे इनायत क्यों नहीं होती
हर मुहल्ला मेरी बदनामी के किस्से सुनाते हैं
के तेरी बेवफाई की भी शिकायत क्यों नहीं होती
ये झुठी दर्द और दुहाई बयां करते लोग
गरीबी से गरीबों को तबाह करते लोग
ये क्या जानें जलती रेत पर नंगे पांव चलने का दर्द
दो रोटी को मोहताज हो कर भूख से मरने का दर्द
कभी निकलो तपती धूप में अपने बच्चों के साथ
तुम भी गुजारो कभी रेल की पटरी पर इक रात
ए.सी में बैठे बैठे तुमने हमारा दर्द महसूस कर लिया
हमें खबर भी नहीं और तुमने हमें महफूज कर लिया
हमारे दर्द सुना कर तुम कुछ आह भर गये
वो सुने तुम्हारे शब्द और कई वाह कर गये
क्या फर्क पड़ा तुम्हारे सुनने और सुनाने से
फिर भी तो हमारे जैसे कई बेगुनाह मर गये
किसी की पूजा है अधुरी किसी को नमाज़ की फिकर
वहां कई बेघर हो भूख से मर गये, यहाँ किसको खबर है
ये हवा जब तुम्हारी खुशबू लाये
जोश ए जुनूँ बदन में हरसू लाये
न ज़ोर चले न इस पे काबू आये
दिल को बस तेरी ही आरजू आये
न ख्याल न ज़िक्र किसीका हो अब
लबों पे बस तेरा ही गुफ्तगू आये
दर बदर फिरू के गुमनाम हो जाऊं
युँ इस क़दर नशा तेरी जुस्तज़ू लाये
©इंदर भोले नाथ
मेरी हर ग़ज़ल मे तो ज़िक्र तेरा ही होता है
हाँ ये अलग बात है के तेरा नाम नहीं होता
©इंदर भोले नाथ
मेरे इश्क़ की और इंतेहाँ क्या है
मेरी खुदी पूछती है मेरा पता क्या है
के तेरे बाद कोई असर तो रहे
मेरे दिल में यादों की बसर तो रहे
मेरी हर शाम गुजरे इसी उम्मीद मे
के तेरे आने की कोई खबर तो रहे
तुमने जो भुला दिये कहानी की तरह
किसी ने उसे रखा है निशानी की तरह
इस जहाँ से परे कोई बे-खबर तो रहे
प्यासा कहीं गुमनाम इक शजर तो रहे
© इंदर भोले नाथ
सहर ढूँढता और रात जागती रही मेरी
के तेरी तलाश में ज़िंदगी भागती रही मेरी
#इंदरभोलेनाथ
@InderBhole
ये शाम फिर वही पहचानी सी है
आंखों में फिर वही कहानी सी है
रोज खामोशियों में गुजरते हैं पल
दास्तां इश्क़ की वही पुरानी सी है
ये शाम फिर.....
तुं मुझ में है या तुझ में हूँ मैं
आज तक ये समझ पायें न हम
खामोशी है या जुबानी सी है
मुझ में तेरी कोई निशानी सी है
ये शाम फिर........
अधूरे स्वप्न कुछ तुम्हारे भी हैं
ख्वाहिशें कुछ अधूरी हमारी भी है
तेरे दिल में भी हलचल तूफानी सी है
मेरी आँखों मे भी थोड़ी पानी सी है
ये शाम फिर.....
इक आस है, जो खास है
आँखों में इक नमी सी है
हाँ मैं मुकम्मल हूँ लेकिन
कहीं तो कुछ कमी सी है
कोई तो है जो न गुजरा है
मुझमें अब भी वो ठहरा है
मैं उसे जुदा कर भी देता,वो
जीने के लिये लाज़मी सी है
लगे ज़ख़्म भी मिटा दियें तुम्हारे खत भी जला दियें
फिर भी पुछता है दिल क्या मैंने......तुम्हें भुला दियें
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