Tuesday, October 4, 2022

कैसे रहें हम प्रेम से वंचित

जागृत हुआ उन्माद हृदय में,कोटि-कोटि स्वप्न हैं संचित
जगत है नाचे इसकी धुन पे,कैसे रहें हम प्रेम से वंचित


तुम्हारा उत्तर न देना मन में सवाल जगाये बैठा है
नयन भी अश्रू का सागर विशाल बनाये बैठा है
उन्मुक्त उन्माद है सिने में पाबंदी रास नहीं आता
हृदय विरह क्रांति का मशाल जलाये बैठा है
धीरज-धैर्य-सामर्थ्य-सब्र, विवशता मे हो रहे खंडित
जगत है नाचे इसकी धुन पे,कैसे रहें हम प्रेम से वंचित


अथाह समन्दर सीमित है,कब,बांध लांघने आ जाये
असीमित स्वप्न नैनों में हैं, कब, हद्द बांधने आ जाये
पथ सदैव प्रतिक्षित हो, ध्वस्त न आस हृदय से हो
न ब्यर्थ नयन अश्रु हो, कब समन्दर मांगने आ जाये
नैन तृष्णित,हृदय अधीर, देह संग चैतन्य है दंडित
जगत है नाचे इसकी धुन पे,कैसे रहें हम प्रेम से वंचित


ब्याकुल-ब्यग्र-ब्यथित हो, सच ये कहावत करता है
कभी हाल जो था दीवानों का,ये भी यथावत करता है
कभी भाता है एकाकीपन,कभी अंधकार से लड़ता है
हृदय विरह विदारक हो नित-दिन बगावत करता है
जागृत हुआ उन्माद हृदय में,कोटि-कोटि स्वप्न हैं संचित
जगत है नाचे इसकी धुन पे,कैसे रहें हम प्रेम से वंचित


~ इंदर भोले नाथ
बागी बलिया, उत्तर प्रदेश
# 6387948060

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