दामन लिपटा है गंगा से
सर पे विराजित काशी है
हम उस सदर के वाशी हैं
भृगु जहाँ के निवासी हैं
सर पे विराजित काशी है
हम उस सदर के वाशी हैं
भृगु जहाँ के निवासी हैं
गुंज उठी द्वाबा की भूमि
बागियों के लालकारों से
लाठ्ठिया भी कम न पड़ी
बरछी और तलवारों से
बागियों के लालकारों से
लाठ्ठिया भी कम न पड़ी
बरछी और तलवारों से
सर पे गमछे की पगड़ी
तिलक सु-शोभित माटी था
बगावत का जुनूँ जिगर में
गौरवांवित् हर छाती था
तिलक सु-शोभित माटी था
बगावत का जुनूँ जिगर में
गौरवांवित् हर छाती था
रणभूमि भी खौफ मे थी
अंजाम युद्ध का क्या होगा
उधर चीखती बंदुखे थी
इधर हाथ में लाठी था
सन् ब्यालिस की शाम थी
जाग उठी अवाम थी
थर्रा उठी ब्रिटिश हुकूमत
हलक में आ गई जान थी
तोड़ जंजीरें, आज़ादी का
स्वाद चखा था बलिया ने
देश में पहली आज़ादी का
नींव रखा था बलिया ने
मंगल पांडे की धरती ने
आज़ादी का बिगुल बजाया था
सन् ब्यालिस मे ही बलिया ने
सहर्ष तिरंगा लहराया था
स्वतंत्रता की हार पहन
खिल उठी हर जाति थी
उधर चीखती बंदुखे थी
इधर हाथ में लाठी था
क्रमश:................
~ इंदर भोले नाथ
बागी बलिया उत्तर प्रदेश
# 6387948060
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