Tuesday, October 4, 2022

इधर हाथ में लाठी था

दामन लिपटा है गंगा से
सर पे विराजित काशी है
हम उस सदर के वाशी हैं
भृगु जहाँ के निवासी हैं

गुंज उठी द्वाबा की भूमि 
बागियों के लालकारों से
लाठ्ठिया भी कम न पड़ी
बरछी और तलवारों से

सर पे गमछे की पगड़ी 
तिलक सु-शोभित माटी था
बगावत का जुनूँ जिगर में
गौरवांवित् हर छाती था

रणभूमि भी खौफ मे थी
अंजाम युद्ध का क्या होगा
उधर चीखती बंदुखे थी 
इधर हाथ में लाठी था

सन् ब्यालिस की शाम थी
जाग उठी अवाम थी
थर्रा उठी  ब्रिटिश हुकूमत
हलक में आ गई जान थी

तोड़ जंजीरें, आज़ादी का
स्वाद चखा था बलिया ने
देश में पहली आज़ादी का
नींव रखा था बलिया ने

मंगल पांडे की धरती ने
आज़ादी का बिगुल बजाया था
सन् ब्यालिस मे ही बलिया ने
सहर्ष तिरंगा लहराया था

स्वतंत्रता की हार पहन
खिल उठी हर जाति थी
उधर चीखती बंदुखे थी 
इधर हाथ में लाठी था


क्रमश:................ 


~ इंदर भोले नाथ

बागी बलिया उत्तर प्रदेश

# 6387948060

No comments: