जाति मजहब के नाम पर हर रोज लुटते देखा है
इस सोने की चिड़िया को हर रोज टुटते देखा है
है देश कि अब परवाह किसे, कौन देश का अब गुणगान करे
जो खुद का ईज्जत निलाम किया, वो देश का क्या सम्मान करे
पागल थें वो दिवाने जो देश पे बलिदान हुए
मिट सी गई हस्ती उनकी, गुमनाम वो ईमान हुए
वो मसहूर हुए कुछ इस कदर, हर तरफ उन्ही का नाम है
जो देश के टुकड़े कियें, देश उन्ही का गुलाम है
इस सोने की चिड़िया को हर रोज टुटते देखा है
है देश कि अब परवाह किसे, कौन देश का अब गुणगान करे
जो खुद का ईज्जत निलाम किया, वो देश का क्या सम्मान करे
पागल थें वो दिवाने जो देश पे बलिदान हुए
मिट सी गई हस्ती उनकी, गुमनाम वो ईमान हुए
वो मसहूर हुए कुछ इस कदर, हर तरफ उन्ही का नाम है
जो देश के टुकड़े कियें, देश उन्ही का गुलाम है
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